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पाठकीय

by
Jul 9, 2008, 12:00 am IST
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दिंनाक: 09 Jul 2008 00:00:00

बदलो ये सेकुलर राजजिहादी आतंकवाद की सूची में अमदाबाद तथा सूरत का नाम भी जुड़ गया। पर हम ऐसी हर कार्रवाई के बाद अपनी पीठ थपथपाकर खुश हो जाते हैं कि ये घटनाएं जिहादियों की हताशा का परिणाम हैं। हर विस्फोट के बाद वही घिसापिटा कर्मकाण्ड-संदिग्धों के रेखाचित्र जारी करना, कुछ लोगों को गिरफ्तार करना, पाकिस्तान और बंगलादेश को घटनाओं के पीछे खड़ा बताना, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना आदि। आतंकवादी विचारधारा क्या सिर्फ पाकिस्तान और बंगलादेश में है? क्या भारत के कट्टरपंथियों की सोच उनसे अलग है? क्या यह सच नहीं कि मसूद अजहर और तालिबान को पैदा करने वाला मदरसा दारुल उलूम देवबंद भारत में ही है? क्या यह सच नहीं है कि विभिन्न राज्यों में स्थानीय सहयोग से जिहादी संरक्षण पा रहे हैं? इस सच को स्वीकार किये बिना जिहादी आतंकवाद से लड़ने की घोषणा, कायर की प्रतिज्ञा है।-अभिजीत “पिं्रसव्इन्द्रप्रस्थ, मझौलिया, मुजफ्फरपुर (बिहार)आतंकवाद के क्रूर और नापाक कदमों ने पूरे देश को रक्तरंजित किया है। पंथनिरपेक्षता की दुहाई देने और साम्प्रदायिकता को लेकर सतत आग उगलने वाले राजनीतिक दल और राजनेता इस्लामिक आतंकवाद को लेकर मौन हैं। उनका आग्रह है कि इसे इस्लाम से न जोड़ें। किन्तु जिहाद के नाम पर दुनिया में दहशत फैलाने वाले कट्टरवादी अपने को “सच्चा मुसलमानव् बता रहे हैं।-मनोहर “मंजुलव्पिपल्या-बुजुर्ग, प.-निमाड़ (म.प्र.)प्रत्येक आतंकवादी विस्फोट के बाद सेकुलर नेताओं के मुंह से जब यह सुनने को मिलता है कि आतंकवादी कुछ भी कर लें, देश की जनता का मनोबल, साहस एवं सहिष्णुता को नहीं तोड़ पाएंगे तो मुझे आश्चर्य होता है। देश की जनता का साहस, मनोबल एवं सहनशक्ति तो राजनीतिज्ञों ने आतंकी एवं देशद्रोहियों के हाथों गिरवी रख दिया है। वैसे भी भारी सुरक्षा ताम-झाम के साथ रहने वाले इन नेताओं को उन बच्चों, महिलाओं और माता-पिता का दर्द क्या पता, जिनके सिर से पिता का साया उठ गया, जो विधवा हो गईं और जिनके लाडले बम विस्फोट में मारे गए।-शत्रु प्रसाद19/2, आर्ष नगर, पो.- पीपलगांव, प्रयाग (उ.प्र.)प्रताप तो प्रताप हैंश्री देवदत्त शर्मा “दाधीचव् के लेख “माई ऐहड़ा पूत जण…व् में महाराणा प्रताप की दिग-दिगन्त फैली गाथा प्रस्तुत हुई है। पर लेख में महाराणा को उदय सिंह के पुत्र प्रताप सिंह लिखा गया है। थोड़े समय से मेवाड़ के महाराणा प्रताप को कुछ लेखक प्रताप सिंह लिखने लगे हैं। प्रभु श्रीराम के पिता दशरथ का नाम वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड) में “राज सिंहव् दिया गया है। परन्तु लोकनायक राम को वाल्मीकि, व्यास से तुलसी तक किन्हीं ने भी “राम सिंहव् नहीं लिखा। इसी प्रकार इतिहास में उदय सिंह, शक्ति सिंह तो लिखा मिलता है लेकिन प्रताप सिंह नहीं। प्रताप वस्तुत: प्रताप हैं, लोकनायक, लोकदेव, हैं, जन-जन के पूज्य पूर्वज बन गए हैं, स्वतंत्रता के मान्य प्रतीक हैं। ऐसे महान पुरुष को जातीय उपाधि में अब के समय में बांधना ठीक नहीं है।-डा. श्रीकृष्ण सिंह सोंढ़ग्रा. व पो. – चित्तरपुर, जिला-रामगढ़ (झारखण्ड)धन की बन्दरबांटलगता है हमारे देश के सेकुलर राजनेताओं ने भारतीय संस्कृति के प्रतीकों को नष्ट करने की कसम खा ली है। तभी तो रामसेतु के बाद अब भारत की पहचान गंगा को “गंगा एक्सप्रेस वेव् परियोजना के नाम पर समाप्त करने का षड्यंत्र चल रहा है। उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार की 40,000 करोड़ रुपए की लागत वाली यह महत्वाकांक्षी परियोजना राजनेताओं, नौकरशाहों और एक औद्योगिक समूह के बीच जनता के धन की बन्दरबांट की येाजना है।-दीनानाथ विद्याप्रेमीग्राम-राघोपुर, पो.-बख्तियारपुर, जिला-पटना (बिहार)सशक्त नेतृत्व चाहिएसेकुलरवाद की दुहाई देने वाली केन्द्र सरकार की नाक के नीचे कश्मीरी जिहादियों ने पांच लाख हिन्दू कश्मीरियों को घाटी से बाहर जाने के लिए मजबूर किया। केन्द्र की छद्म पंथनिरपेक्षता और आगे बढ़ी। राज्य के शेष भाग में हिन्दुओं से सौतेला बर्ताव किया जाता रहा। हिन्दू-बहुल जम्मू क्षेत्र की जनसंख्या 60 लाख है, जबकि कश्मीर घाटी की जनसंख्या 58 लाख, फिर भी जम्मू से केवल 2 सांसद लिए जाते हैं, जबकि कश्मीर से 3 सांसद। अधिक जनसंख्या वाले जम्मू से केवल 37 विधायक और कश्मीर घाटी से 46 विधायक। घाटी में बजट का 70 प्रतिशत किन्तु जम्मू के लिए मात्र 30 प्रतिशत ही खर्च किया जाता है। क्या यह सेकुलर भेदभाव नहीं? आज बाकई देश को सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता है।-डा. कैलाश चन्द्र331, सुनहरी बाग अपार्टमेंट, सेक्टर-13, रोहिणी (दिल्ली)जम्मू के लोगों ने हिन्दुओं को नई राह दिखाई है। दुनिया के हिन्दू समाज के लिए जम्मू के हिन्दू-सिख भाई एक मिसाल बन सकते हैं कि किस प्रकार कान में रुई डालकर बैठी सरकारें हिन्दू समाज के जागरूक होकर आक्रामक बनने से ही सुधर सकती हैं। यदि पूरे देश का हिन्दू जम्मूवासियों की तरह जागरूक हो जाए, तो किस सरकार की हिम्मत है कि वह देश की 85 करोड़ हिन्दुओं की बात अनसुनी करे। सच्चर कमेटी, समान नागरिक संहिता, धारा 370 जैसे मुद्दों पर हिन्दू समाज को एकजुट होकर लड़ना चाहिए। अन्यथा देश के प्रधानमंत्री फिर दोहराते रहेंगे कि भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।-राजीव बिल्लौरेलोकमान्य नगर, इंदौर (म.प्र.)‚मंत्री जी का साहसिक बयानपाचजन्य (10 अगस्त, 2008) में “यह आक्रमणकारी सालार मसूद की मजार हैव् शीर्षक से एक रपट छपी थी। दरअसल यह उ.प्र. के परिवहन मंत्री श्री रामअचल राजभर का बयान था। 26 जुलाई को बहराइच में उन्होंने कहा था, “बहराइच में जिस सालार मसूद गाजी की मजार है, वह एक विदेशी आक्रमणकारी था, जिसका वध राजा सुहेलदेव ने किया था।व् उनके इस साहसिक बयान को पढ़कर राष्ट्रीय योद्धा स्मारक समिति, जगाधरी (हरियाणा) के अध्यक्ष श्री दर्शन लाल जैन ने उन्हें एक पत्र लिखा, जिसका सम्पादित अंश यहां प्रस्तुत है।प्रिय महोदय,साप्ताहिक पाचजन्य में आपके 26 जुलाई को बहराइच में दिये गए भाषण के अंश पढ़े कि “यहां जिस सालार मसूद गाजी की मजार है, वह एक विदेशी आक्रमणकारी था, जिसका वध राजा सुहेलदेव ने किया था। सुहेलदेव को पासी और राजभर समाज के लोग अपना पूर्वज मानते हैं। इन दोनों जातियों को न जाने क्यों और कब से छोटा मान लिया गया।व् आपका यह वक्तव्य अत्यंत साहसिक एवं सराहनीय है। आप बधाई के पात्र हैं। हमारी समिति का गठन इसी हेतु हुआ है कि हम अपने उन वीर योद्धाओं का सम्मान करें, उनके स्मारक बनायें, जिन्होंने देश की रक्षा में अपना बलिदान दिया।आपका चिन्तन देश-हित में है और हम आपसे अनुरोध करते हैं कि न केवल बहराइच में राजा सुहेलदेव की प्रतिमा स्थापित की जाये, बल्कि जहां-जहां भी अपने वीर योद्धाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों का प्रतिरोध किया है और अपने प्राण न्योछावर किए हैं, उनके स्मारक बनाए जाएं।हरियाणा में हमारा प्रयास एक स्मारक पृथ्वीराज चौहान का तरावड़ी में (तरायण युद्ध 1192), दूसरा स्मारक श्री सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य का पानीपत में (पानीपत द्वितीय युद्ध 1556), तीसरा स्मारक सदाशिव भाऊ‚ का (पानीपत तृतीय युद्ध 1761) बनाने का है। साथ-साथ हम यह भी प्रयास कर रहे हैं कि सड़कों के नाम बाबर, हुमायूं, अकबर आदि आक्रमणकारियों से बदलकर राणा सांगा, राणा प्रताप, गुरु गोबिन्द सिंह आदि राष्ट्रीय महापुरुषों के नाम पर किये जाएं।इतिहास से मुंह मोड़ने का परिणाम!पुरस्कृत पत्रकश्मीर चौदहवीं शताब्दी तक पूर्णरूपेण हिन्दू राज्य था। राजा भी हिन्दू, जनता भी हिन्दू। फिर आया खौफनाक दौर। 1394 ई. में सिकन्दर नामक सुल्तान गद्दी पर बैठा और उसने हिन्दुओं के सामने तीन विकल्प रखे- इस्लाम स्वीकारें, देशत्याग करें अर्थात् कश्मीर खाली करें या मृत्यु स्वीकार करें।पिछले छह सौ वर्षों में कश्मीर में यह प्रक्रिया अनवरत जारी रही, चाहे शासन किसी का भी रहा। भारत की तथाकथित पंथनिरपेक्ष सरकार की नाक के नीचे सुल्तान सिकन्दर का उद्देश्य पूर्ण हुआ है। समूची कश्मीर घाटी हिन्दू-विहीन कर दी गयी। जिन हिन्दुओं ने इस्लाम स्वीकार कर लिया था उनके ही कुछ उत्तराधिकारियों ने बाबा अमरनाथ और उनके भक्तों का आज तिरस्कार प्रारंभ कर दिया। इन मुसलमानों के हिन्दू पूर्वजों ने कभी कितनी श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा-अर्चना की होगी, क्या आज कोई इसकी कल्पना भी कर सकता है? आज उन्हीं मतान्तरित हिन्दुओं की मुस्लिम संतानें हिन्दू और शिव विरोधी होने के साथ-साथ राष्ट्रविरोधी भी हो गयी हैं। यही कारण है कि एक हिन्दू के धर्मान्तरण करने से एक हिन्दू ही कम नहीं होता है, बल्कि भारत का एक शत्रु भी बढ़ जाता है। पाकिस्तान और बंगलादेश को हम इसी आधार पर खो चुके हैं। कश्मीर घाटी और नागालैण्ड की भीषण समस्या का आधार भी यही है। लेकिन हमने सदैव ही इस सच्चाई से मुख मोड़ा है और आज इसके परिणाम हमारे सामने हैं। भारत के हिन्दू अपनी ही भारतभूमि में सौ एकड़ बंजर भूमि भी केवल इसलिए प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि कुछ मुसलमान अलगाववादियों को इस पर आपत्ति है। यानी हमारी सरकार अलगाववादियों की सुनती है, भारत की देशभक्त जनता की आवाज को नहीं। इन सबका कारण है कश्मीर के इतिहास को भुला देना, केवल छह सौ वर्ष के मुस्लिम शासनकाल को याद रखना। जैसे छह सौ वर्ष से पहले भारतभूमि पर कोई कश्मीर नामक स्थान रहा ही न था। आवश्यकता इस बात की है कि कश्मीर को छह सौ वर्ष की कैद से बाहर निकाला जाए और हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति को भी उचित सम्मान प्रदान किया जाए।-कुमुद कुमारए-5, आदर्श नगर, नजीबाबाद, बिजनौर (उ.प्र.)हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.पचांगसंवत् 2065 वि. – वार ई. सन् 2008 भाद्रपद शुक्ल 8 रवि 7 सितम्बर, 2008 ´´ 8 सोम 8 ´´ (तिथि वृद्धि) ´´ 9 मंगल 9 ´´ ´´ 10 बुध 10 ´´ ´´ 11 गुरु 11 ´´ ´´ 12 शुक्र 12 ´´ ´´ 13 शनि 13 ´´ खतरे में लखटकियाखतरे में है पड़ गयी, वह लखटकिया कार नैनो जिसका नाम था, नजरें गड़ी हजार। नजरें गड़ी हजार, रोज होते आंदोलन कैसे संभव होगा फिर उसका उत्पादन? कह “प्रशांतव् हैं बुद्धदेव फिरते घबराये टाटा को रोकें या फिर सरकार बचायें।।-प्रशांत20

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