मंगलम, शुभ मंगलम

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दिंनाक: 06 Jan 2008 00:00:00

पाठकों को स्मरण होगा कि “मंगलम, शुभ मंगलम” स्तंभ कुछ समय पूर्व तक प्रकाशित होता रहा था। स्थानाभाव के कारण यह अल्पकाल के लिए प्रकाशित नहीं हो पाया। अब पुन: हम इसे आरंभ कर रहे हैं। -सं.इस स्तम्भ में दम्पति अपने विवाह की वर्षगांठ पर 50 शब्दों में परस्पर बधाई संदेश दे सकते हैं। इसके साथ 200 शब्दों में विवाह से सम्बंधित कोई गुदगुदाने वाला प्रसंग भी लिखकर भेज सकते हैं।माध्यमिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर अभी मैंने महाविद्यालय में इण्टरमीडिएट में नामांकन कराया ही था कि अचानक एक दिन पता चला कि मेरा विवाह तय हो गया है। घर वालों के सामने “नहीं” की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। लेकिन मन में एक प्रश्न था कि पता नहीं आगे की पढ़ाई पूरी होगी या नहीं? अन्त में सब कुछ परिवार वालों पर छोड़कर मैं शादी के लिए तैयार हो गई। 25 जून, 1982 को मेरा विवाह हुआ और मैं अपने अरमानों को ह्मदय में छुपाकर ससुराल पहुंची। अरमान एक ही था पढ़ाई जारी रखना। शादी के समय मेरे पति श्री रामकिशोर सिंह बी.एससी. में पढ़ते थे। शादी हुए अभी कुछ दिन हुए थे कि सास-ससुर और परिवार के अन्य सदस्यों ने कहा कि हम दोनों पढ़ाई जारी रख सकते हैं। घर वालों के इस स्नेहपूर्ण समर्थन से हम दोनों को पढ़ाई की नई ऊ‚र्जा मिली और मैंने बी.एड., एम.एड. तक की उपाधि प्राप्त की। मेरे पति भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद सहारा इण्डिया से जुड़ गए। एम.एड. करने के पश्चात् शिक्षिका के रूप में मेरा चयन हुआ। घर से बड़ी दूर पहले असम फिर सिक्किम के जवाहर नवोदय विद्यालय में अध्यापन कार्य किया। लगभग 7 साल पूर्वोत्तर में रहने के बाद इन दिनों जवाहर नवोदय विद्यालय, शिवहर (बिहार) में कार्यरत हूं। हमारे एक पुत्र और एक पुत्री हैं। पुत्री बी.फार्मा कर रही है और पुत्र “निफ्ट” में पढ़ाई कर रहा है। मेरे पति झंझारपुर (बिहार) में नौकरी कर रहे हैं। नौकरी की वजह से अधिकांश समय हम दोनों एक-दूसरे से अलग रहते हैं। पर कभी भी किसी प्रकार का शिकवा-शिकायत नहीं। मैं तो मानती हूं कि अपने पति और घर वालों के अपार सहयोग से ही मैं कुछ कर पाई हूं। ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसा पति और ससुराल हर महिला को मिले।-राजू कुमारीशिक्षिका, जवाहर नवोदय विद्यालय,शिवहर (बिहार)20

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