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मुम्बई बम काण्ड-12 मार्च, 1993? 257 मारे गए ? 1400 घायल ? कुल आरोपी- 100-मुम्बई प्रतिनिधिन्यायमूर्ति प्रमोद दत्ताराम कोडेहर परिस्थिति में तटस्थ1993 के मुम्बई बम धमाकों के लिए सी.बी.आई. ने कुल 124 लोगों को अभियुक्त बनाया था। 100 को दोषी माना गया। इन 100 में से 12 को फांसी, 20 को उम्र कैद एवं अन्य को 2 से लेकर 15 साल तक सजा हुई है। भारत के सबसे चर्चित इस मुकदमे की सुनवाई 30 जून, 1995 को शुरू हुई थी। 12 साल चले इस मुकदमे से सरकारी वकील श्री उज्ज्वल निकम शुरू से जुड़े रहे। सी.बी.आई. के पक्ष को न्यायालय में दृढ़ता से रखने के कारण श्री निकम काफी चर्चित हुए। लेकिन इस मुकदमे के न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रमोद दत्ताराम कोडे की भी खूब प्रशंसा हुई। मुकदमे की सुनवाई के दौरान कानून की दृष्टि से वे सख्त रहे तो मानवीय दृष्टि से नरम। न्यायमूर्ति कोडे ने 10 साल से भी अधिक समय इस मामले की सुनवाई की। इस दौरान उन्होंने अभियुक्तों को हज पर जाने, गर्मी के समय जेल में पंखा लगाने और देशभक्ति की फिल्में देखने की अनुमति दी। अपने काम के प्रति न्यायमूर्ति कोडे कितने सजग रहे इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जून के अन्तिम सप्ताह में उनके हाथ की हड्डी टूट गयी, किन्तु उन्होंने कभी मुकदमे से छुट्टी नहीं ली। अपने माता-पिता के निधन पर भी उन्होंने अवकाश नहीं लिया। अपने पिता का अन्तिम संस्कार करने के बाद भी वे सीधे अदालत पहुंचे। वहीं ऐसे भी अवसर आए कि किसी अभियुक्त को अपने बीमार संबंधी या मृत रिश्तेदार के अन्तिम संस्कार में भाग लेने की अनुमति देने के लिए उन्होंने अवकाश के दिन भी न्यायालय में काम किया। न्यायमूर्ति कोडे देश के एकमात्र ऐसे न्यायाधीश हैं जिनका 25 लाख रुपए का बीमा कराया गया है और जेड श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध कराई गई है।इनको हुई फांसीमुम्बई बम कांड में जिन बारह लोगों को फांसी हुई उनके नाम इस प्रकार हैं- याकूब मेमन, जाकिर हुसैन, अब्दुल खान, फिरोज मलिक, असगर मुकादम, शाहनवाज कुरैशी, परवेज शेख, इस्माइल तुर्क, मुश्ताक तरानी, यूसुफ शेख, मोहम्मद घनसार और फारुख पावले।31 जुलाई को मुम्बई में विशेष टाडा अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रमोद दत्ताराम कोडे ने अभिनेता संजय दत्त को छह साल की सजा सुनाकर अपनी एक ऐतिहासिक जिम्मेदारी पूरी की। सच्चाई यह है कि संजय दत्त तो इस मुकदमे के एक छोटे से अंश थे, वास्तव में यह भारत की संप्रभुता को चुनौती देने वाली शक्तियों के खिलाफ मामला था, जिहाद करने वाली शक्तियों को परास्त करने की यह कोशिश थी।12 मार्च, 1993 को मुंबई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों से शुरू हुआ यह अध्याय पूरे 12 साल और 4 महीने बाद गत 31 जुलाई को पूरा हुआ। 100 दोषियों में से 12 लोगों को फांसी तथा 20 लोगों को उम्रकैद देने वाला यह फैसला केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में शायद अपनी तरह का पहला निर्णय है।सेकुलर मीडिया ने मुम्बई बम विस्फोटों को बाबरी ध्वंस तथा उसके बाद हुए दंगों का परिणाम तथा प्रतिक्रिया बताया था। उल्लेखनीय है कि लगभग सभी आरोपियों ने भी अपने बयानों में यही दलील दी थी।जानकारों का कहना है कि यह मुद्दा केवल जनता को भ्रमित करने के लिए ही उठाया गया था। वास्तव में भारतीय मन को, अर्थात् हिन्दू समाज को भयभीत करने का, देश को आर्थिक दृष्टि से खोखला बनाने का यह एक विश्वव्यापी षडंत्र था। पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी आईएसआई की इस पूरे मामले में सक्रिय भूमिका थी। दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील, अबू सलेम, इकबाल मिर्ची जैसे कुख्यात अपराधियों ने इस पूरे कांड को अंजाम दिया था। इसी दृष्टि से इस कांड को देखा जाना चाहिए था। हालांकि अदालत ने यही दृष्टिकोण रखा भी था, पर मीडिया ने इसे “मुस्लिमों का प्रतिशोध” तथा “हिन्दू बनाम मुस्लिम” तक सीमित रखने का प्रयास किया। हालांकि अदालत ने इस मुकदमे का निपटारा तो कर दिया है किन्तु लोगों के मन में इस लंबी न्यायिक प्रक्रिया के प्रति कई तरह के प्रश्न खड़े हो रहे हैं। कोई हमारे देश के खिलाफ जंग छेड़ता है, हमारे ही कुछ लोगों को बगावत करने पर मजबूर करता है, सैकड़ों लोगों की जान लेता है और फिर पकड़े जाने पर सालों साल उसे दोषी तक सिद्ध नही किया जाता। दोषी सिद्ध होने पर भी उसे सजा सुनाने में महीनों लग जाते हैं। जो निर्दोष इस षडंत्र में मारे हुए, जो जख्मी हुए, जिनकी रोजी-रोटी छिन गयी, जिनका बेटा, पति, भाई इस हादसे में चल बसा- उन तमाम पीड़ितों के मन पर क्या बीतती है, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है।बाबरी ढांचा ढहने के बाद मजहब के आधार पर समाज को विभाजित करने का षडंत्र देशद्रोही तत्वों ने रचा था। मुम्बई बम विस्फोट उसी षडंत्र का नतीजा था। “इस्लाम खतरे में” का नारा देकर कट्टरवादी मुसलमानों को संगठित किया गया। उनका उद्देश्य था भारत में अशांति फैलाना। इसके लिए उन्हें पैसे, हथियार तथा अन्य सामग्री की कोई कमी नहीं थी। टाडा अदालत में अनेक दोषियों ने यह बात स्वीकारी है। अनेक आरोपियों ने कहा कि उन्हें फंसाया गया, उन्हें गलतफहमी में रखा गया। इन आरोपियों के बयानों से स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि क्या मुस्लिम समाज मुम्बई विस्फोट प्रकरण से कोई सीख लेगा?इस पूरे मामले का एक दिलचस्प पहलू था अभिनेता संजय दत्त। मुम्बई में बम विस्फोट के लिए पाकिस्तान से आए शस्त्र तथा विस्फोटक कोंकण के रायगढ़ जिले में उतारे गये थे और बाद में मुम्बई में मेमन परिवार के घर में रखे गये थे। संजय दत्त का कहना है कि मुम्बई में दंगों के कारण तथा उसको मिली धमकी की वजह से वह परेशान था। इसलिए, उसके अनुसार, उसने अपनी सुरक्षा के लिए एक एके-56 रायफल तथा पिस्तौल रखी थी। संजय को यह रायफल मिली केवल उसके माफिया के साथ संबंधों की वजह से। अब यहां सवाल उठता है कि जो आदमी अंडरवल्र्ड से इतनी घनिष्ठ मित्रता रखता हो उसका समाज में स्थान क्या होना चाहिए? जिस रायफल से एक मिनट में सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतारा जा सकता है ऐसी रायफल संजय को अपने घर में रखने की क्या जरूरत थी, यह कोई समझ नहीं पा रहा है।संजय की सजा पर सबसे ज्यादा मुखर हुईं सायरा बानो, दिलीप कुमार (यूसुफ खान), नाना चुडासामा आदि। इधर केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी जब कहते हैं कि संजय देशभक्त है तो फिर लोगों के मन में कई तरह के सवाल पैदा होने लगते हैं। जो आदमी देश के शत्रु दाऊद इब्राहिम की पार्टी में शामिल होता है, उसके कहने पर अपने पास घातक शस्त्र रखता है, उस आदमी को देशभक्त बताने वालों के विवेक पर तरस आता है।सेकुलर मीडिया तो संजय दत्त को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साह में है। उससे जुड़ी हर चीज ऐसे प्रस्तुत की जा रही है मानो उस पर अन्याय हो रहा है। “संजूबाबा ने बिना पंखे कोठरी में रात कैसे बितायी, संजूबाबा ने दाल-रोटी खायी, संजू ने ये किया, वो किया…” ये खबरें ऐसे छापी और दिखाई जा रही हैं मानो देश में इनसे महत्वपूर्ण और कोई खबर ही नहीं है।8
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