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सावरकर के बारे में कांग्रेसी मित्र गुमराह हुए-वसंत साठे, वरिष्ठ कांग्रेसी नेतापुस्तक परिचय”कालजयी सावरकर” पुस्तक सार्थक प्रकाशन (10 ए, गौतम नगर, नई दिल्ली) से प्रकाशित हुई है। पहले इसका प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट करने वाला था। किन्तु 2004 में केन्द्र में सरकार बदलने के बाद ट्रस्ट ने पुस्तक को प्रकाशित करने से मना कर दिया, जबकि सारी प्रक्रियाएं पूरी हो गई थीं। 166 पृष्ठों वाली इस पुस्तक में वीर सावरकर के हर पहलू को समेटा गया है। पुस्तक की कीमत 250 रुपए है।”वीर सावरकर को लेकर वामपंथी बुद्धिजीवियों ने लोगों को गुमराह करने का प्रयास किया है। और मुझे अफसोस है कि हमारे कुछ कांग्रेसी मित्र भी गुमराह हो गए।” यह कहना था पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री वसंत साठे का। श्री साठे गत 26 फरवरी को नई दिल्ली में “कालजयी सावरकर” पुस्तक के लोकार्पण समारोह को सम्बोधित कर रहे थे।उन्होंने आगे कहा कि सेलुलर जेल में बनी क्रांतिकारियों की स्मृति ज्योति से वीर सावरकर की नाम-पट्टिका हटाने से पूर्व हमारे कांग्रेसी मित्र उनके बारे में कुछ पढ़ लेते तो शायद उनका भी ह्मदय-परिवर्तन हो जाता। उन्होंने कहा कि इतिहासकारों एवं अन्य लेखकों की बातें हमारे कांग्रेसी मित्र न भी मानें, पर गांधीजी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एवं श्रीमती इन्दिरा गांधी की बातों को वे क्या नहीं मानेंगे? उन्होंने कहा कि गांधी जी स्वयं वीर सावरकर से मिलने गए थे और उन्होंने उनसे कहा था कि वे हमारे साथ आएं। 1940 में नेताजी ने भी वीर सावरकर से भेंट की थी। वीर सावरकर ने ही नेता जी को कहा था वे बाहर जाकर देश की आजादी के लिए कुछ करें। श्री साठे ने कहा कि जिस स्मृति-ज्योति से वीर सावरकर का नाम हटाया गया उसके निर्माण के लिए श्रीमती इन्दिरा गांधी ने व्यक्तिगत खाते से 10 हजार रुपए देते हुए कहा था, “वीर सावरकर भारत की एक महान विभूति थे और उनका नाम साहस और देशभक्ति का पर्याय है। वे एक आदर्श क्रान्तिकारी के सांचे में ढले थे और अनगिनत लोगों ने उनके जीवन से प्रेरणा ली।” समारोह में पूर्व रक्षा मंत्री श्री जार्ज फर्नांडीस ने वीर सावरकर को अपना गुरु बताते हुए कहा कि जब भी उन्हें किसी तरह की परेशानी होती थी तो सावरकर जी के पास पहुंच जाते थे। वे उनकी हर समस्या का समाधान करते थे।उन्होंने कहा कि वे अभी भी किसी उलझन में फंसते हैं तो वीर सावरकर को याद कर संबल प्राप्त करते हैं। श्री फर्नांडीस ने कहा कि वीर सावरकर ने देश को आजाद कराने के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया था, किन्तु उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। दु:ख होता है कि इस देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने संसद में वीर सावरकर के चित्र लगाने जैसे पुनीत कार्य का भी विरोध किया था।प्रसिद्ध स्तम्भकार श्री वेद प्रताप “वैदिक” ने कहा कि वीर सावरकर का नाम देशभक्ति का पर्याय है। आज उनके जैसा साहसी, त्यागी, विद्वान, लेखक, पत्रकार एवं विचारक नहीं दिखता। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर पहले भारतीय थे जिन्होंने 50 साल बाद 1907 में 1857 की लड़ाई को स्वातंत्र्य समर कहा था। उन्होंने यह भी कहा कि वामपंथियों को यह बताया जाना चाहिए कि वीर सावरकर से पहले कार्ल माक्र्स ने भी 1857 के युद्ध को स्वतंत्रता संग्राम कहा था। इस सम्बंध में उनके तीन लेख भी छपे थे।भारत में मारीशस के उच्चायुक्त श्री मुकेश्वर चुन्नी ने कहा कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री रामगुलाम 1964 में मुम्बई में वीर सावरकर से मिले थे और हमें 1968 में आजादी मिली। मारीशस की आजादी की लड़ाई के पीछे सावरकर भी थे।समारोह को पुस्तक के लेखक डा. हरीन्द्र श्रीवास्तव एवं प्रो. तेजनाथ धर ने भी सम्बोधित किया। लोकार्पण समारोह से पूर्व वीर सावरकर की अन्तिम यात्रा पर आधारित एक वृत्तचित्र भी दिखाया गया। इस अवसर पर पूर्व राज्यपाल श्री ओमप्रकाश कोहली, श्री बालेश्वर अग्रवाल सहित अनेक गण्यमान्यजन उपस्थित थे। प्रतिनिधि29
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