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सम्पादकीय

by
Aug 7, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Aug 2007 00:00:00

लाठियां खाकर बहादुरी से मरना न आए, तो भी कायर बनकर भागना नहीं चाहिए। अहिंसा से या हिंसा से दुश्मन का सामना करना सीखना चाहिए।-सरदार पटेल (सरदार पटेल के भाषण, पृ. 499)जी, हुकुमविकृत राजनीति का विषफलदृष्टि जब राष्ट्रपति चुनने पर नहीं बल्कि ताबेदार, चोबदार और हुकुम बजाने वाले मनसबदार रखने पर टिकी हो तो वही दृश्य दिखता है जो आज राष्ट्रपति चुनाव के समय प्रकट हो रहा है। जिस पद पर आज तब किसी ने गलत उंगली उठाने का साहस नहीं किया था उसी पद का चुनाव नगर पालिका चुनावों से भी बदतर दिखने लगा है। इस पद की गरिमा करोड़ों भारतीयों के स्वाभिमान का प्रश्न है। सब चाहते हैं राष्ट्रपति कोई भी बने, लेकिन अब तक की परम्परा का साफ एवं श्रेष्ठ प्रतिनिधि हो। जिस पद पर कभी डा. राजेन्द्र प्रसाद, डा. राधाकृष्णन, डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे श्रेष्ठ विद्वान रहे हों उस पद के गुरुतर सम्मान के साथ यूपीए ने छल क्यों किया? कांग्रेसी और कम्युनिस्ट इतने डरे और आतंकित लोग हैं कि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार पर लगे आरोपों को ऐसे ही नजरअंदाज किया जा रहा है जैसे मंत्रिमंडल में किसी दागदार मंत्री को रखा जा रहा हो।जैसा कि हमने पिछले अंक में भी लिखा था राष्ट्रपति का पद राजनीतिक दायरों एवं क्षुद्र स्वार्थ के मापदण्डों से परे होना चाहिए। चुनाव कराने की नौबत ही न आए तथा सभी राजनीतिक दल सर्वानुमति से एक श्रेष्ठ भारतीय को राष्ट्रपति चुनें तो सबसे अच्छा। राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख होता है, इसलिए उसके चुनाव में राजनीतिक स्वार्थ से ऊ‚पर उठते हुए सोचने का अवकाश होता है। परन्तु यदि किसी कारणवश सर्वानुमति नहीं भी बन पाती है तो भी चुनाव दो श्रेष्ठ लोगों में ही होना चाहिए। यह लोकतंत्र है और राजनीतिक दलों को अपने प्रतिनिधि खड़े करने का अधिकार है। परन्तु दुर्भाग्यवश जिस प्रकार के आरोप श्रीमती प्रतिभा पाटिल पर लगे, उन्हें देश की प्रतिष्ठा की कीमत पर ही नजरअंदाज किया जा सकता है। हम डा. मनमोहन सिंह एवं सभी वरिष्ठ कांग्रेस जन से अपील करते हैं कि वे राष्ट्रपति पद की गरिमा के साथ ऐसा खिलवाड़ न होने दें और ऐसा उम्मीदवार सामने लाएं जो उनकी मर्जी का हो, लेकिन दागदार न हो।सीआईए के दस्तावेज और नेहरु का स्वप्निल संसारअमरीकी गुप्तचर एजेंसी सीआईए दुनिया के विभिन्न देशों में षडंत्रों, तख्ता पलट, राजनीतिक प्रभाव को अमरीकी हितों के लिए इस्तेमाल जैसे कामकाज के लिए कुख्यात है। अगर वह अपने पुराने दस्तावेज जारी करती है तो उसे कितना महत्व दिया जाना चाहिए और वह भी उस स्थिति में जब वह हमारे ही देश के एक नेता और पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में ऐसी जानकारी दे रही हो जो दुखद ही कही जा सकती है? निश्चित रुप से अपने देश के नेता के सम्मान और गौरव को सीआईए के हाथों क्षरित होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए भले ही उस नेता से हमारा कितना ही तीव्र मतभेद क्यों न रहा हो। सीआईए हमारे लिए अधिक विश्वास की एजेंसी और अपने नेता उसके दस्तावेजों के आधार पर निंदा किए जाने योग्य, ऐसा मानना हम उचित नहीं समझते। लेकिन चीन के साथ हमारे संबंध जिन आरोहों और अवरोहों से गुजरे हैं उनमें 62 का युद्ध एक कटु याद दिलाने वाला मोड़ है। इस युद्ध में हम हारे थे। हम इसलिए हारे थे क्योंकि हमारे नेता एक स्वप्न लोक में विचर रहे थे। उन पर वामपंथी विचारधारा का असर था। वे रा.स्व. संघ, जनसंघ व अन्य अनेक देशभक्त संगठनों द्वारा बार-बार चेताए जाने के बावजूद चीन की दुरभि संधि के प्रति सावधान नहीं हुए। नतीजा यह निकला कि तिब्बत खोया, दलाईलामा और हजारों तिब्बतियों को भारत में शरण लेने आना पड़ा। चीन ने अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया। वह नेफा में घुस आया। लेह के समीप उसकी सेनाएं आ गईं। चुशूल में हमने त्रिशूल पहाड़ियों को खो दिया। बड़ी मात्रा में हमारे सैनिक वीर गति को प्राप्त हुए। यानी लोग खोए, जमीन खोई, इज्जत खोई। यह सब इस कारण हुआ था कि पं. नेहरु एक स्वप्न लोक में विचर रहे थे। उन्हीं के समय कृष्णमाचारी रक्षा मंत्री थे। वामपंथी। उनके घोटाले- जीप खरीदी कांड और बाकी तमाम भीषण गलतियां देश के मानस को आज भी उद्वेलित और परेशान करती हैं। सीआईए के दस्तावेजों में यही बताया गया है कि चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने पं0 नेहरु को किस तरह मूर्ख बनाया। पर यह बात तो देश पहले से ही जानता है।कांग्रेस और नरसिंह रावगत 28 जून को नई दिल्ली में कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. नरसिंह राव की 87वीं जयंती मनाई गई। लेकिन इस जयंती के प्रति कांग्रेस पार्टी का वही अपमानजनक व्यवहार रहा जो अपमान उसने स्व. राव के देहांत के समय किया था। इससे उन कांग्रेस जनों की आंखे भी खुल जानी चाहिए जो व्यक्ति निष्ठा को निजी स्वार्थों के पूरा करने और राजनीति में आगे बढ़ने का एकमात्र जरिया मानते हैं। जो पार्टी अपने ऐसे नेता की मृत्यु के बाद भी उनकी तिरस्कार पूर्ण उपेक्षा करती हो, जो नेता गैर परिवारी होते हुए पांच साल का कार्यकाल पूरा कर गए और कांग्रेस जिन नीतियों को ठीक मानती रही उन नीतियों को लागू किया। तो बाकी का क्या हाल होगा? जब हैदराबाद का हवाई अड्डा उनके नाम पर किये जाने की कोशिश हुई तो कांग्रेस ने ही उसका विरोध करते हुए हवाई अड्डे का नाम राजीव गांधी के नाम पर रख दिया। जो कांग्रेस अपने परिवार जनों की जयंतियों एवं बरसियों पर महत्वपूर्ण एवं बड़े स्तर पर स्मृति कार्यक्रम आयोजित करती है जिसे अखबारों और चैनलों पर प्रमुखता से दिखाया भी जाता है उसी कांग्रेस के नेता नरसिंह राव का जन्मदिन ऐसे बीत गया मानों कुछ हुआ ही न हो। मीडिया में भी यह समारोह अनुपस्थित ही रहा। यही होता है कांग्रेस में किसी गैर परिवारी व्यक्ति के बड़े होने की कोशिश का नतीजा।5

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