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प्रतिभा पाटिल के गृह जिले जलगांव मेंहत्या किसने की, दबाव किसने डाला…महिला सशक्तिकरण के लिए खोले गए सहकारी बैंक तो रिजर्व बैंक के आदेश के बाद बंद हो गया… चीनी मिल 20 करोड़ के बिना उगाहे ऋण को डकारने के बाद कंगाल हो गई … हमारे अगले राष्ट्रपति के दूसरे कारनामों में भी यही सब तो दिखाई देता है। उनके जीवन परिचय में श्रम साधना ट्रस्ट का उल्लेख है जो उन्होंने स्थापित किया है। यह ट्रस्ट एक इंजीनियरिंग कालेज चलाता है। परिचय पत्र कहता है कि यह ग्रामीण युवाओं के लिए है। दस्तावेज क्या दिखाते हैं? छात्रों के लिए यहां एक चिकित्सा सहायता कोष है जो छात्रों ने ही स्थापित किया है। इसका पैसा, जाहिर है कि डाक्टरों को ही जाता है- अरे, यह क्या… यहां तो उनके भाई डा. जी.एन. पाटिल का नाम चमक रहा है। कालेज के कर्मचारी निदेशकों के घर पर काम कर रहे हैं और कुछ तो मुम्बई में भी। यहां एक अतिथि भवन भी बनवाया गया है, लेकिन इसे इस्तेमाल करते है उनके परिवार के सदस्य, न कि अध्यापक। छात्रों का जमा किया पैसा जल्दी ही कंगाल होने जा रही चीनी मिल को भेजा गया। अध्यापकों के वेतन का कुछ पैसा इस परिवार के नियंत्रण वाले सहकारी बैंक में जमा कराना जरूरी था।प्रतिभा पाटिल पर एक गंभीर आरोप है कि वह अपने भाई को हत्या के आरोप से मुक्त कराने के लिए अपने प्रभाव का प्रयोग कर रही हैं। इस कहानी में कई किरदार हैं। पहले उनके नाम और तारीखें बता दें। विश्राम जी. पाटिल-उत्तरी महाराष्ट्र विश्वविद्यालय से सम्बद्ध जलगांव के एक कालेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर। तीस साल से कांग्रेस के कार्यकर्ता। जिला कांग्रेस कमेटी के एक बार नहीं, तीन बार अध्यक्ष चुने गए। उनकी 21 सितम्बर, 2005 को हत्या कर दी गई। उनकी पत्नी रजनी पाटिल उसी कालेज में मराठी भाषा की प्रोफेसर हैं। डा. जी.एन. पाटिल-राष्ट्रपति पद के लिए संप्रग की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल के भाई और विश्राम जी पाटिल के विरोधी। उन्हें विश्राम जी पाटिल ने जिला अध्यक्ष पद की दौड़ में हराया था। उल्हास पाटिल-भूतपूर्व संसद सदस्य, जी.एन. पाटिल के करीबी। विश्राम पाटिल के विरोधी, गैर-सरकारी संस्थाओं के संचालक। राजू माली और राजू सोनावाने, वे व्यक्ति जिन्हें विश्राम पाटिल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया। राजू माली ने “आज तक” के संवाददाता को बताया कि उन्हें बलि का बकरा बनाया गया है। असली हत्यारे तो खुले घूम रहे हैं। जब उससे पूछा गया कि असली हत्यारे कौन हैं तो उसने कहा, “वे वही हैं जिनका नाम रजनी पाटिल ले रही हैं।” लेकिन वह अचानक पुलिस संरक्षण में मर जाता है। तीन दिन बाद सी.बी.आई. की टीम पहली बार जलगांव जाती है। लीलाधर नरखेड़े तथा दामोदर लोखंडे-वे दो लोग जिन्होंने कथित तौर पर विश्राम जी. पाटिल की हत्या के लिए धन उपलब्ध कराया के फोन रिकार्ड यह बताते हैं कि हत्या के एक दिन पहले, हत्या के दिन और उसके बाद के दिन इन लोगों ने जी.एन. पाटिल और उल्हास पाटिल से कई बार सम्पर्क किया। दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन चार महीने बाद छोड़ दिया गया और प्राथमिकी भी वापस ले ली गई।डा. जी.एन. पाटिल, जो प्रतिभा पाटिल के भाई हैं तथा उनके महिला सशक्तिकरण और गांव के नौजवानों के लिए आशा की किरण लाने वाले हैं, विश्राम पाटिल के कट्टर दुश्मन थे। जलगांव में सुनामी पीड़ितों के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने चंदा इकट्ठा किया, जो कभी भी मुख्यमंत्री राहत कोष में नहीं जमा कराया गया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एक बार फिर यहां चंदा इकट्ठा किया- इस बार प्रतिभा पाटिल के राजस्थान का राज्यपाल बनने पर अभिनन्दन करने के लिए। किसी को नहीं पता कि इस धन का क्या हुआ। जिला कांग्रेस कमेटी के कई पदाधिकारियों ने महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष प्रभा राव को पत्र लिखे कि वे इस गायब हुए पैसे के बारे में जांच करें। पर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।15 अगस्त, 2005 को जलगांव जिला कांग्रेस कमेटी ने नौ पदाधिकारियों ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की कि जी.एन. पाटिल (जो प्रतिभा पाटिल के भाई हैं) ने उस धनराशि का ब्यौरा नहीं दिया है जो कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रतिभा पाटिल के अभिनन्दन के लिए एकत्र की थी। विश्राम जी. पाटिल ने इस पर जांच शुरू कर दी। साथ ही उल्हास पाटिल और उनकी गैरसरकारी संस्था की अनियमितताओं के बारे में भी जांच शुरू की। उन्होंने इस मामले के बारे में प्रदेश के उच्चाधिकारियों को भी बताया। तब उन्हें तीन हाथ से लिखे गुमनाम पत्र मिले कि वे सावधान रहें, उनके नाम की सुपारी दे दी गई है। फिर भी वे जांच जारी रखते हैं। तब उनकी हत्या कर दी जाती है।स्थानीय लोगों में चर्चा और रोष के कारण पुलिस कुछ ही दिनों में “हत्यारों” को पकड़ लेती है और रजनी पाटिल को बताया जाता है कि जांच का 90 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है और जल्दी ही वह उन लोगों तक पहुंच जाएगी जिन्होंने यह हत्या करवाई है। पर अचानक सब कुछ रुक जाता है। पुलिस नई कहानी पेश करती है कि राजू माली ने विश्राम जी. पाटिल से कुछ पैसे उधार लिए थे और हत्या उसी पैसे को लेकर उठे विवाद के कारण हुई। रजनी पाटिल इस नई कहानी का खण्डन करती हैं और स्थानीय समाचार पत्र इस नई कहानी का झूठ पकड़ लेते हैं। जैसे ही यह नई कहानी सामने आती है, सारे मामले की जांच सी.आई.डी. को सौंप दी जाती है। जांच की इस स्थिति से परेशान हो 26 सितंबर, 2005 को रजनी पाटिल सोनिया गांधी को पत्र लिखती हैं कि कुछ लोग जांच में अड़चनें पैदा कर रहे हैं। 27 सितंबर, 2005 को एक स्थानीय समाचार पत्र “देशदूत” लिखता है कि राजीव पाटिल, जो कांग्रेस के प्रभारी अध्यक्ष हैं, का कहना है कि राजू माली जी.एन. पाटिल का एजेंट है। 28 सितंबर को केन्द्रीय, गृह राज्यमंत्री, माणिक राव गावित, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को लिखते हैं कि राजीव पाटिल ने पत्र द्वारा सूचित किया है कि इस हत्या के पीछे जी.एन. पाटिल और उल्हास पाटिल का हाथ है। गावित ने लिखा कि जिला कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं में हाहाकार मचा हुआ है। अत: वे राजीव पाटिल का पत्र उन्हें भेज रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि असली हत्यारों को सजा दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास करें। 5 अक्तूबर, 2005 को राजीव पाटिल मुख्यमंत्री, पुलिस महानिरीक्षक और सी.आई.डी. की पुणे शाखा के अध्यक्ष को लिखते हैं कि जांच आगे नहीं बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि जो अधिकारी इस मामले को शुरू से देख रहे हैं, उन्हें जांच सौंपी जानी चाहिए, क्योंकि उन्हें मामले से संबंधित तथ्यों का पता है। अधिकारियों के नाम भी सुझाए गए। परंतु उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। 15 अक्तूबर को राजीव पाटिल फिर से अधिकारियों को पत्र लिखते हैं कि जो लोग पकड़े गए हैं वे कांग्रेस कार्यकर्ता कभी नहीं थे। उन्हें जी.एन. पाटिल और उल्हास पाटिल जिला कांग्रेस कमेटी के चुनाव के दिन वहां लाए थे।1 दिसंबर, 2005–दो महीने और बीत गए। रजनी पाटिल ने राज्य के उप मुख्यमंत्री और गृहमंत्री आर.आर. पाटिल को लिखा कि क्योंकि असली हत्यारों की पहुंच बहुत ऊंची है, इसलिए जांच का काम आगे नहीं बढ़ रहा है। जब सिर्फ 10 प्रतिशत जांच ही शेष रह गई थी तो क्यों यह मामला पुलिस से लेकर सी.आई.डी. को सौंप दिया गया। 8 दिसंबर, 2005 को रजनी पाटिल ने दोबारा से मुख्यमंत्री और गृहमंत्री को पत्र लिखा और पुलिस की इस कहानी को खारिज किया कि हत्यारों और उनके पति के बीच कोई आर्थिक मामला था।जनवरी 2006–दिल्ली आकर रजनी पाटिल सोनिया गांधी से मिलीं और उन्हें सारे मामले से अवगत कराया। साथ ही वे अन्य कांग्रेसी नेताओं, जैसे अहमद पटेल, सुशील कुमार शिंदे, मार्गरेट अल्वा से भी मिलीं। किसी ने कुछ नहीं किया,सारी घटनाओं का वर्णन करते हुए रजनी पाटिल ने राष्ट्रपति डा. कलाम से गुहार लगाई कि कोई मेरी व्यथा पर ध्यान नहीं दे रहा है और हत्यारों को पार्टी का संरक्षण मिल रहा है। अंतत: सी.बी.आई. की टीम 4 अप्रैल को जलगांव जाती है और 7 अप्रैल को विश्राम जी. पाटिल की विधवा से पूछताछ करती है। लेकिन उसी दिन हत्यारा राजू माली पुलिस संरक्षण में मारा जाता है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि प्रतिभा पाटिल से जुड़ी घटनाएं, दस्तावेज और कानूनी कार्यवाही तभी सामने आई है जब वे राष्ट्रपति पद के लिए कहीं गुमनामी से लाकर सामने खड़ी कर दी गई हैं और जिक्र इसीलिए हो रहा है क्योंकि वे राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित की जा चुकी हैं। अब तक ये घोटाले कुछ जिले के राजनेताओं तक ही सीमित थे और वह हत्या भी जलगांव के लोगों की समस्या थी। चूंकि प्रतिभा पाटिल अब राष्ट्रपति बनने वाली हैं तो उनसे जुड़े आर्थिक घोटाले और हत्या की जांच को प्रभावित करना, ये सभी बातें इस देश के लिए महत्वपूर्ण हो गई हैं। अगर ये घोटाले और हत्या के मामले अब सामने नहीं आएंगे तो यह इस देश के साथ वास्तव में षडंत्र ही होगा।9
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