1857 की क्रांति में गूंजा
July 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

1857 की क्रांति में गूंजा

by
Jun 5, 2007, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 05 Jun 2007 00:00:00

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का स्वर-राकेश सिन्हा1857 में ब्रिटिश साम्राज्यवाद को भारत के लोगों की खुली चुनौती के प्रभाव, प्रकृति एवं प्रकार का श्रेष्ठतम मूल्यांकन विनायक दामोदर सावरकर ने किया है। उन्होंने इसे भारतीय स्वतंत्रता का “प्रथम युद्ध” कहा। इस युद्ध के कई आयाम थे, जिसके राजनीतिक और आर्थिक आयामों का तो मूल्यांकन होता रहा है परन्तु सांस्कृतिक आयाम प्राय: उपेक्षित रहा है। राजनीतिक स्तर पर 1857 की क्रांति की एक असामान्य विशेषता यह थी कि राष्ट्रीयता का स्वर शासकों या कुलीनों तक सीमित नहीं रहा। यह किसी उत्तेजना में से उत्पन्न आंदोलन नहीं था बल्कि आम लोगों एवं भारतीय शासकों ने विदेशी हुकूमत की वैधानिकता, नैतिकता और चरित्र पर ही सवाल खड़ा किया था।उत्तर प्रदेश में अगस्त, 1857 को जारी घोषणा पत्र में साम्राज्यवादी व्यवस्था के दुष्प्रभावों को चित्रित किया गया था। इसमें कहा गया है कि “भारत में अंग्रेजी वस्तुओं को लाकर यूरोप के लोगों ने जुलाहों, दर्जियों, बढ़ई, लुहारों और मोचियों को बेरोजगार कर दिया है और उनके पेशों को हड़प लिया है। इस प्रकार प्रत्येक (भारतीय) दस्तकार भिखारी की हालत में आ गया है।” इस घोषणा पत्र का सूत्रधार विद्रोही राजकुमार फिरोजशाह था। इस प्रकार 1857 की क्रांति ने स्वदेशी के सिद्धान्त को मजबूती के साथ स्थापित किया था।क्रांतिकारियों ने भारतीय राज्य में विदेशी अधिकारियों की नियुक्ति के खिलाफ संगठित विरोध दर्ज किया था। उत्तर प्रदेश में जारी घोषणा पत्र में साफ तौर पर कहा गया था कि सभी सरकारी पदों पर सिर्फ भारतीयों की ही नियुक्ति होगी और व्यापारिक अवसरों को भी देश के लोगों के लिए सुरक्षित रखा जाएगा। इस प्रकार पहली क्रांति ने आर्थिक स्वावलंबन, स्वदेशी शासन और अर्थव्यवस्था, रोजगार के अवसरों का भारतीयकरण आदि प्रश्नों को सरलता किन्तु गंभीरता के साथ उभारने का ऐतिहासिक काम किया था।उस समय ब्रिटिश सेना में 1,39,807 भारतीय सिपाही के रूप में काम कर रहे थे जबकि अधिकारियों के पदों पर सिर्फ यूरोपीय ही थे जिनकी, संख्या 2,689 थी। क्रांतिकारियों के लिए विदेशी अधिकारियों की उपस्थिति राष्ट्रीय शर्म के समान थी, अत: इन पदों का पूर्ण भारतीयकरण भी क्रांति का एक आधार बना। सिपाहियों की क्रांति में भागीदारी ने ब्रिटेन के शासकों एवं रणनीतिकारों को चिंतन की स्थिति में ला खड़ा किया। अत: 1857 के बाद से भारत के प्रति उनकी नीति, रणनीति और दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन आ गया। उन्होंने अपने साम्राज्य को मजबूत करने के लिए उन सभी तौर-तरीकों का सहारा लेना शुरू कर दिया जिससे भारतीय राष्ट्रीयता कमजोर पड़ जाए। इसी का परिणाम था कि मुस्लिमों में पनप रहे राष्ट्रवादी मन एवं महत्वाकांक्षा को साम्प्रदायिक मन और अलगाववादी महत्वाकांक्षा में बदला गया।1857 के डेढ़ सौ साल पूरे होने पर इस आंदोलन प्राय: को इस रूप में देखा जा रहा है कि यह हिन्दू-मुस्लिम एकता का सुन्दर प्रदर्शन था, परन्तु यह इतिहास की मूल भावना का सतही रूप है। 1857 की क्रांति का विवेचन, व्याख्या और विश्लेषण जिस सत्य को उजागर करता है उस पर इतिहासकारों ने जाने-अनजाने में पर्दा डाल रखा है। अगर सावरकर अपनी प्रतिभा दृष्टि के आधार पर इसे स्वतंत्रता का पहला समर नहीं कहते तो ब्रिटिश और माक्र्सवादी इतिहासकार इसे क्षणिक सिपाही विद्रोह, धार्मिक उत्तेजना के वशीभूत अनुशासनहीनता, राजाओं का अपने स्वार्थ के लिए संघर्ष की संज्ञा देते रहते।1857 के पूर्व भारतीय शासन की बागडोर सांकेतिक ही सही, मुगलों के हाथों में थी। मुगल शासन के राज में हिन्दू जनता, हिन्दू मन, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू राजनीति की दशा क्या थी, यह प्रत्येक हिन्दू जानता था। पीढ़ियों के अनुभवों, पीड़ा एवं संघर्षों के वे स्वयं गवाह थे। परन्तु उन्होंने भारतीय मुसलमानों को सहवासी, पड़ोसी और राष्ट्रीय रूप में स्वीकार कर लिया था। यही कारण है कि अंतिम मुगल बादशाह को तात्कालिक रूप से भारतीय संप्रभुता का प्रतिबिम्ब मान लिया गया। हिन्दू राजनीतिक दृष्टिकोण में राष्ट्र हित और धर्म या जाति हित में कोई अन्तर नहीं समझा गया है। हिन्दुओं ने राष्ट्रीय हित में ही अपने सर्वस्व हित का साक्षात्कार किया है। इसके विपरीत मुसलमानों के शासकों, धार्मिक नेताओं एवं कुलीनों ने हमेशा अपने मजहब, सम्प्रदाय और जाति हितों को प्रधानता दी है। वे राष्ट्रहित के साथ तब तक एकस्वर नहीं होते जब तक कि साम्प्रदायिक आधार पर राज्य सिंहासन पर उनका कब्जा न हो जाए। राजसत्ता में बैठने के बाद भी वे दूसरे धर्म-पंथ के साथ हीनता एवं क्रूरता का बत्र्ताव करते रहे। मुगल शासकों का इतिहास, कुछ अपवादों को छोड़कर, इसका जीवंत उदाहरण है। लेकिन 1857 में पहली बार भारत की राष्ट्रीयता के अखिल भारतीय सांस्कृतिक आधार के प्रति उन्होंने समर्पण के भाव को प्रत्यक्ष रूप में दिखाया था। वे राष्ट्र की पवित्रता, सर्वोच्चता, लोगों के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक बंधनों एवं परंपराओं के प्रति स्वत:स्फूर्त नतमस्तक हुए थे। उनके अवचेतन मन में हिन्दू दृष्टिकोणों और व्यवहारों का निश्चित ही प्रभाव रहा होगा। मुस्लिम मन एवं महत्वाकांक्षा में परिवर्तन का उदाहरण इस बात को दर्शाता है कि वे अपने भारतीयकरण एवं संस्कृतिकरण के लिए इच्छित भी थे और बाध्य भी-इसका एक उदाहरण दिल्ली से प्रकाशित “पायमे आजादी” के पहले अंक (8 फरवरी, 1857) में प्रकाशित निम्नलिखित पंक्तियां हैं, जिसे मुस्लिम राष्ट्रगान तक मानने लगे थेहम हैं इसके मालिक हिन्दुस्तान हमारा,पाक वतन है कौम का जन्नत से भी न्यारा।ये है हमारी मिल्कियत, हिन्दुस्तान हमारा,इसकी रूहानियत से रोशन है जग सारा।कितना कदीम कितना नईम सब दुनिया से प्यारा।करती है जरखेज जिसे गंगो-जमुन की धाराऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा,नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा।इसकी खानें उगल रही हैं सोना, हीरा, पारा,इसकी शानो-शौकत का दुनिया में जयकारा।आया फिरंगी दूर से ऐसा मंतर मारा,लूटा दोनों हाथ से, प्यारा वतन हमारा।इस पत्र के संपादक अजीमुल्ला खां और प्रकाशक एवं मुद्रक बहादुरशाह जफर के पुत्र केदार बख्त थे। अजीमुल्ला खां नाना साहब पेशवा के सहयोगी थे। इस गीत में मजहब के नाम पर मरने वालों को “शहीद” माना गया। हिन्दू मन के लिए तो यह सामान्य बात है परन्तु मुस्लिम मानिसकता के लिए असाधारण बात थी। वे जब देश की मिट्टी, इतिहास, भौगोलिक रूप-रंग की पवित्रता का जयकार करते हैं तो वही राष्ट्र अराधना है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की यह पहली किन्तु मजबूत सीढ़ी है। मुसलमानों ने फारसी के प्रति अपने आग्रह को त्यागना शुरू कर हिन्दी के प्रति अपना झुकाव दिखाना शुरू कर दिया था। घोषणा पत्रों को हिन्दुस्तानी भाषा में जारी किया जाने लगा था। आजमगढ़ घोषणा पत्र में मुस्लिम नेताओं ने अपने अपील में यहां तक कहा था- “म्लेच्छ अंग्रेजों के दमन तथा हजरत मुहम्मद व भगवान महावीर की खोई प्रतिष्ठा की पुन: स्थापना हेतु उन कट्टरपंथियों का भी आह्वान करता हूं जो हमारे पूर्वज रह चुके हैं और आज भी हमारे अभियान में सहयोगी हैं।”मुस्लिम कुलीनों ने विदेशी जातियों के वंशज होने का दावा छोड़कर यह स्वीकार किया कि वे हिन्दुओं के ही वंशज हैं। अर्थात् समान पूर्वज की भावना से वे एकता की खोज और उसके स्थायित्व का दर्शन करने लगे थे। रूहेलखंड में जारी स्वाधीनता के घोषणा पत्र में “गोमाता” शब्द का प्रयोग प्रतिष्ठित रूप में किया गया। इस्लामी कट्टरपंथी परंपरा से हटकर “गीता”, “कुरान” को समान रूप से पवित्र मानने लगे।यदि देखा जाए तो इसकी एक व्याख्या यह भी हो सकती है कि अपनी खोई सत्ता को प्राप्त करने के लिए वे हिन्दुओं को साथ रखना चाहते थे, अत: उनकी भाषा, शब्दावली, दृष्टिकोण में कृत्रिम परिवर्तन आया। परन्तु इसका एक सकारात्मक पक्ष भी था-मुस्लिमों के मन में हिन्दुओं और उनकी परम्पराओं एवं अपने मूल पूर्वजों के प्रति आया परिवर्तन। वह एक सुखद अवसर था जब जिहाद और जजिया के बल पर मजहब का झण्डा लेकर चलने वाले राष्ट्रीयता का पैगाम और शहादत की प्रेरणा लेकर भारतीय होने का गर्व महसूस करने की प्रक्रिया में स्वप्रेरणा एवं स्वेच्छा से गुजर रहे थे।1857 की एकता का आधार खोई सत्ता की वापसी या आर्थिक शोषण मात्र नहीं था। यह समान पूर्वजों की संतानों का पवित्र राष्ट्र के गौरव, संसाधनों एवं संप्रभुता की रक्षा के लिए एक संघर्ष था। इसी संघर्ष ने मुसलमानों को भारतीयता का बोध कराया। उन्हें हिन्दुओं के साथ सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्तरों पर समरस होने की प्रेरणा दी। स्वतंत्रता के सभी घोषणा पत्रों में समान इतिहास, भूगोल, समान हित की बात कही गई। यह एक असामान्य उपलब्धि मानी जा सकती है। परन्तु साम्राज्यवादियों ने मुसलमानों को इस सांस्कृतिक प्रवाह से अलग रखने के लिए हिन्दू हित और मुस्लिम हित के बीच भेद करना शुरू किया। इसीलिए 1871 में हंटर कमीशन बनाया गया, जिसने मुसलमानों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक आवश्यकताओं एवं हितों को राष्ट्रीय हितों से अलग स्थापित किया। भारत के विभाजन के लिए यह पहला दस्तावेज साबित हुआ जो 1947 तक अलगाववादियों के काम आता रहा। आज 1857 की 150 वीं जयंती पर हम अपने देश में उसी साम्राज्यवादी व्यवहार एवं नीतियों का संचार होता देख रहे हैं। हंटर की जगह सच्चर कमेटी बन गई। इसके निष्कर्ष, दार्शनिक आधार और मान्यताएं वहीं हैं जो हंटर कमीशन की थीं। पुन: हिन्दू हित और मुस्लिम हित एवं हिन्दू आधिपत्य बनाम वंचित मुस्लिम समाज की बात कर अलगाववादी मान्यता स्थापित की जा रही है। छद्म पंथनिरपेक्षतावादी ताकतें 1857 से नहीं, मंगल पांडे से नहीं, 1871 से और हंटर से प्रेरणा ले रही हैं। मुस्लिम समाज के लिए भी यह आत्मालोचन का अवसर है कि उन्हें 1857 की बुनियाद पसंद है या 1871 की बुनियाद? वे “पायमे आजादी” के झंडा गीत को गाना चाहते हैं या खिलाफत की जिहादी मानसिकता में जीना चाहते हैं? इस ऐतिहासिक अवसर पर इस ऐतिहासिक सवाल का जवाब तो उन्हें ही ढूंढ़ना होगा।1857 में पहली बार भारत की राष्ट्रीयता के अखिल भारतीय सांस्कृतिक आधार के प्रति उन्होंने समर्पण के भाव को प्रत्यक्ष रूप में दिखाया था। वे राष्ट्र की पवित्रता, सर्वोच्चता, लोगों के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक बंधनों एवं परंपराओं के प्रति स्वत:स्फूर्त नतमस्तक हुए थे।1857 की एकता का आधार समान पूर्वजों की संतानों का पवित्र राष्ट्र के गौरव, संसाधनों एवं संप्रभुता की रक्षा के लिए एक संघर्ष था। इसी संघर्ष ने मुसलमानों को भारतीयता का बोध कराया।सिपाहियों की क्रांति में भागीदारी ने ब्रिटेन के शासकों एवं रणनीतिकारों को चिंतन की स्थिति में ला खड़ा किया। उन्होंने अपने साम्राज्य को मजबूत करने के लिए उन सभी तौर-तरीकों का सहारा लेना शुरू कर दिया जिससे भारतीय राष्ट्रीयता कमजोर पड़ जाए।16

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

‘अचानक मौतों पर केंद्र सरकार का अध्ययन’ : The Print ने कोविड के नाम पर परोसा झूठ, PIB ने किया खंडन

UP ने रचा इतिहास : एक दिन में लगाए गए 37 करोड़ पौधे

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नामीबिया की आधिकारिक यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डॉ. नेटुम्बो नंदी-नदैतवाह ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया।

प्रधानमंत्री मोदी को नामीबिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, 5 देशों की यात्रा में चौथा पुरस्कार

रिटायरमेंट के बाद प्राकृतिक खेती और वेद-अध्ययन करूंगा : अमित शाह

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

‘अचानक मौतों पर केंद्र सरकार का अध्ययन’ : The Print ने कोविड के नाम पर परोसा झूठ, PIB ने किया खंडन

UP ने रचा इतिहास : एक दिन में लगाए गए 37 करोड़ पौधे

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नामीबिया की आधिकारिक यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डॉ. नेटुम्बो नंदी-नदैतवाह ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया।

प्रधानमंत्री मोदी को नामीबिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, 5 देशों की यात्रा में चौथा पुरस्कार

रिटायरमेंट के बाद प्राकृतिक खेती और वेद-अध्ययन करूंगा : अमित शाह

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

लोन वर्राटू से लाल दहशत खत्म : अब तक 1005 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

यत्र -तत्र- सर्वत्र राम

NIA filed chargesheet PFI Sajjad

कट्टरपंथ फैलाने वाले 3 आतंकी सहयोगियों को NIA ने किया गिरफ्तार

उत्तराखंड : BKTC ने 2025-26 के लिए 1 अरब 27 करोड़ का बजट पास

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies