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पंजाब की चिट्ठी

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May 8, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 May 2007 00:00:00

प्यासी धरती की कराहपंजाब में तेजी से घट रहा है भूजल स्तर-राकेश सैनपांच दरियाओं की धरती पंजाब में आजकल भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। कृषि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर स्थिति सुधारी नहीं गयी तो आने वाले तीस वर्ष में देश के इस अन्न भडार “ग्रेन बाउल” में केवल खजूर ही पैदा हो पाएगा।पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के आंकड़ों के अनुसार आज से 43 साल पहले राज्य के केन्द्रीय जिलों के 24 फीसदी भूभाग में भूजल स्तर 5 से 10 फुट मात्र था। इसी तरह राज्य के 11 प्रतिशत हिस्से में यह स्तर 10 से 20 फुट से कुछ ही अधिक था। आज राज्य के मोगा, मानसा, बठिंडा, संगरूर व फिरोजपुर जिलों का भूजल स्तर बहुत नीचे उतर गया है। इन जिलों में भूमिगत पानी के पंपों की खुदाई 300-350 फुट तक जा पहुंची है। कई प्रखण्डों में पानी का स्तर 3 फुट प्रतिवर्ष के हिसाब से गिर रहा है। किसी समय पानी की उपलब्धता की दृष्टि से संपन्न कहे जाने वाले माझा इलाके के अमृतसर, तरनतारन और दोआबा के जालंधर, होशियारपुर, नवांशहर, होशियारपुर में आज हैंडपंप लगाने के लिए 200 फुट तक कुआं खोदना पड़ रहा है।पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के भूमि व जल संरक्षण विभाग के डा. एम.पी. कौशल का कहना है कि 1973 में मात्र तीन प्रतिशत क्षेत्र में पानी की गहराई 30 फुट से अधिक थी, परन्तु 2003 तक 90 प्रतिशत भाग में जल स्तर खतरनाक गति से नीचे गिरा। 1993 से 2004 के बीच जल स्तर 55 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से गिरा। 2005 में यह गति 74 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष तक जा पहुंची। आज मोगा जिले में 3 फुट, संगरूर- पटियाला में ढाई फुट और अमृतसर जिले में 2 फुट प्रतिवर्ष की अत्यंत खतरनाक गति से पानी का स्तर गिर रहा है। राज्य के दक्षिणी-पश्चिमी जिलों में विगत कुछ साल पहले जल भराव के कारण इस क्षेत्र का 40 फीसदी तक भूजल क्षारीय व प्रदूषित हो चुका है। यह जल अब न तो पीने के काम में और न ही सिंचाई के लिए प्रयोग हो सकता है। आशंका है कि अगर राज्य के बाकी हिस्सों में इसी गति से भूजल स्तर गिरता रहा तो इस प्रदूषित भूजल का बहाव बाकी हिस्सों की तरफ हो सकता है। यह स्थिति अपने आप में अत्यंत खतरनाक होगी।भूजल स्तर नीचे गिरने का सबसे बड़ा कारण धान की फसल को माना जा रहा है। 1960 तक राज्य में 6 प्रतिशत हिस्से में धान की बुआई होती थी जो आज बढ़कर 10 गुणा के करीब 58.90 प्रतिशत हो गई है। इस फसल के लिए पानी की कितनी आवश्यकता है इसका अनुमान सहज ही इन तथ्यों से लगाया जा सकता है कि धान की बुआई से कटाई तक 35 बार पानी लगाना पड़ता है। जबकि गेहूं की फसल के लिए मात्र 12 बार पानी लगाने की जरूरत पड़ती है। राज्य में धान की फसल की होने वाली अग्रिम बुआई ने कोढ़ में खाज का काम किया है। धान की अग्रिम बुआई गेहूं के तुरन्त बाद मई महीने में की जाती है। इन दिनों गर्मी के कारण धान की फसल में खड़े पानी का 74 फीसदी वाष्पीकरण होता है जबकि यह बुआई इसके निर्धारित समय 16 से 25 जून के बीच की जाए तो वाष्पीकरण का प्रतिशत 62 फीसदी रह जाता है। इसके एक ही पखवाड़े बाद अर्थात् 10 जुलाई तक राज्य में मानसून सक्रिय हो जाता है जिससे फसल के लिए जरुरी पानी प्राप्त करने के लिए भूजल पर अधिक निर्भर नहीं करना पड़ता। परन्तु पंजाब में एक साल में तीन फसलें प्राप्त करने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। इसके तहत अप्रैल के अंतिम और मई के पहले सप्ताह के बीच 60 दिन में पकने वाली धान की बुआई की जाती है। यह फसल जुलाई के मध्य तक काट ली जाती है और साथ ही साथ धान की एक और फसल रोप दी जाती है जिसे स्थानीय भाषा में पिछेती फसल कहते हैं। यह प्रचलन चाहे अभी दोआबा व माझा इलाके के कुछ क्षेत्रों तक सीमित है परन्तु इसका दायरा निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। विशेषज्ञ बताते हैं कि मई महीने में गर्मी और शुष्क मौसम के कारण धान की फसल को इतने जल की जरुरत पड़ती है कि इससे 60 सेंटीमीटर भू-जल स्तर प्रति फसल नीचे गिरता है जबकि नियमित समय पर की गई बुआई से मात्र 10 सेंटीमीटर जल स्तर ही गिरता है। विशेषज्ञों की तमाम चेतावनियों के बाद भी आज धड़ल्ले से राज्य में धान की अगेती बुआई हो रही है। आज पंजाब में 8.50 लाख बिजली संचालित नलकूप व 1.50 लाख डीजल चालित नलकूप जमीन से पानी खींच रहे हैं। राज्य सरकार के पास अभी 3.50 लाख नलकूपों के लिए बिजली कनेक्शन के आवेदन लंबित हैं। अगर इनका निपटारा जल्द ही कर दिया जाता है तो देश के हरे-भरे इस भू-भाग के रेगिस्तान बनने की प्रक्रिया और तेज हो जाएगी।गांवों में बड़ी संख्या में तालाब भी मिट्टी से भरे जा रहे हैं। जबकि यही तालाब कभी गांवों में जल का मुख्य रुाोत थे। इससे न केवल अतिरिक्त बरसाती पानी का भंडारण किया जाता था बल्कि ये पूरे साल पानी उपलब्ध करवाते थे। जल विशेषज्ञ श्री राजेन्द्र सिंह ने भी पंजाब में गिरते जल स्तर को लेकर चिन्ता जताई है।राज्य के कृषि मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह ने पाञ्चजन्य को बताया कि हमें धान और गेहूं के फसली चक्र को बदलने की जरुरत है। इससे न केवल राज्य की जमीन में पोषक तत्व कम हो रहे हैं बल्कि पानी की भी बर्बादी हो रही है। उन्होंने कहा कि कृषि में विविधता लाने, धान की बजाय मक्की, दालें, सब्जियां बोने पर जोर दिए जाने की जरुरत है। कृषि मंत्री ने कहा कि उनकी प्राथमिकता किसानों को गिरते भूजल स्तर के प्रति जागरुक कर उन्हें कृषि विभिन्नता के लिए प्रेरित करना है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार बरसाती पानी का अधिकाधिक प्रयोग करने, भूजल को बढ़ाने की दिशा में किसानों को प्रशिक्षित करेगी।33

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