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आखिर बदरुद्दीन परेशान क्यों?भाजयुमो ने कहा- असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट बंगलादेशी घुसपैठियों का पैरोकार-बासुदेब पालअसम की भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) इकाई ने प्रदेश में “बंगलादेशी निकालो” अभियान की शुरुआत कर दी है। जहां प्रदेश के आम नागरिक इस अभियान से संतुष्ट हैं और अपना हर प्रकार का सहयोग देने का मन बना रहे हैं वहीं कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं और वोट बैंक की राजनीति करने वालों में इसके प्रति खासा रोष दिखा है। भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष श्री नाबारून मेधी ने “बंगलादेशी निकालो” अभियान की घोषणा गत 22 जुलाई को गुवाहाटी में एक प्रेस वार्ता में की। उन्होंने कहा, “हर भारतीय का यह अधिकार है कि वह प्रशासन से संदिग्ध लोगों की नागरिकता की पहचान करने को कहे और अगर वह अवैध घुसपैठिया है तो उसे देश से बाहर निकाला जाए। भाजयुमो का यही अभियान है कि संदिग्ध लोगों की पहचान करके प्रशासन को उनकी जानकारी दी जाए ताकि उन्हें देश से बाहर किया जा सके। मगर कुछ कट्टरवादी तत्वों को इससे परेशानी महसूस हो रही है।हाल ही में गठित असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (बंगलादेशी घुसपैठियों का कथित समर्थन प्राप्त कट्टरवादी मुस्लिमों का राजनीतिक दल) और उसके अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल, जो असम में विधायक हैं, ने एक बयान जारी करके भाजयुमो के “बंगलादेशी निकालो” अभियान की निंदा की है। बयान में कहा गया है कि यह बंगलादेशियों को देश से बाहर निकालने के नाम पर वैध भारतीय नागरिकों को परेशान करने की योजना है। अगर भाजयुमो यह अभियान जारी रखता है तो उनकी पार्टी लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन छेड़ेगी।उधर इस मुस्लिम फ्रंट के बयान पर टिप्पणी करते हुए श्री मेधी ने कहा कि यह पार्टी उनके अभियान से इसलिए परेशान है क्योंकि इससे उनका वोट बैंक (यानी बंगलादेशी मुस्लिम) खत्म हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि इस कट्टरवादी मुस्लिम पार्टी ने बंगलादेशी घुसपैठियों के वोटों के बल पर विधानसभा की दस सीटें जीती थीं। श्री मेधी ने एक बार फिर पूरे जोरदार तरीके से घोषणा की कि जब तक राज्य में बसे करीब 70 लाख बंगलादेशी घुसपैठिए पहचानकर निकाल नहीं दिए जाते तब तक उनका यह अभियान थमेगा नहीं।भाजयुमो के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री अशोक शर्मा ने कहा है कि “बंगलादेशी निकालो” अभियान भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है अत: उन्हें इससे घबराने की बिल्कुल भी जरुरत नहीं है। बदरुद्दीन का मुस्लिम फ्रंट सभी मुस्लिमों को इस अभियान का डर दिखा रहा है, जो गलत है। वह साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना चाहते हैं। उनका कहना था कि यह मुस्लिम फ्रंट कथित आई.एस.आई. के इशारे पर काम करता हुआ बंगलादेशी घुसपैठियों के वोट पक्का करना चाहता है ताकि आगे चलकर षडंत्र के अनुसार यहां इस्लामी राज्य बना लिया जाए। बंगलादेश से बड़े पैमाने पर घुसपैठ के कारण 126 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग 38 में घुसपैठिए निर्णायक स्थिति में आ गए हैं जबकि राज्य के 10 जिले तो पूरी तरह मुस्लिम बहुल जिले बन गए हैं।भाजयुमो के राज्य सचिव श्री चंदन शर्मा का कहना था कि असम में इस वक्त कम से कम 16 जिहादी गुट सक्रिय हैं। “बंगलादेशी वोटों” पर पलने वाला मुस्लिम फ्रंट स्वीकारता है कि प्रदेश में बड़ी संख्या में बंगलादेशी बसे हुए हैं पर वह कभी भी उनको देश से बाहर निकालने की मांग नहीं उठाता है। श्री शर्मा ने तो बदरुद्दीन की नागरिकता पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि अगर बदरुद्दीन वैध भारतीय नागरिक हैं तो 7 दिन के भीतर अपनी नागरिकता के कागजात और अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी सार्वजनिक करें। उन्होंने कहा, “असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट साफ-साफ बताए कि वह किसके इशारे पर निचले असम में अल्पसंख्यकों के लिए एक अलग स्वायत्त परिषद की मांग कर रहा है।” इस फ्रंट के कार्यकारी अध्यक्ष अब्दुल हफीज चौधरी के उस बयान पर कि अरुणाचल, नागालैण्ड और मिजोरम से आने वाले मुस्लिम भारतीय हैं और उनमें से करीब आधे को वे जानते हैं, पर प्रतिक्रिया करते हुए राज्य भाजयुमो नेताओं सांख्यज्योति डेका और दिबोन डेका ने सवाल किया कि “आखिर हफीज ने संबंधित सरकारों से उन भारतीयों पर हुए अत्याचारों की कोई शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई? हम जानते हैं कि यह फ्रंट उस कांग्रेस की बी-टीम है जो खुद असम में बंगलादेशी वोट बैंक पक्का करना चाहती है।”31
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