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कानून का उल्लंघन करने वाले को दो वर्ष की कैद या 25 हजार रु. का जुर्माना”हिमाचल प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम- 2006″ अपने आप में ऐतिहासिक और अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अधिनियम के उद्देश्यों और कारणों के बारे में कहा गया है, “समाज के विभिन्न वर्ग बल प्रयोग तथा प्रलोभन से मतांतरण कराए जाने पर नियंत्रण के लिए सरकार से मांग कर रहे थे। यह भी देखा गया है कि प्रलोभनों में सामान्यत: वृद्धि हुई है। यदि समय रहते रोकथाम न की गई तो कहीं यह विभिन्न जातीय और पांथिक समूहों के बीच आपसी विश्वास और भरोसे को समाप्त न कर दे। राज्य में बलपूर्वक मत परिवर्तन की रोकथाम के लिए और शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखने के लिए यह विधान लाने का निश्चय किया गया।”राज्य में पहली बार लागू किए जा रहे इस कानून में बलपूर्वक, लोभ अथवा लालच से किए जाने वाले मतांतरण को संज्ञेय अपराध घोषित किया गया है। इस कानून के अंतर्गत किसी व्यक्ति को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से बल प्रयोग या उत्प्रेरणा द्वारा या कपटपूर्वक एक पंथ से दूसरे पंथ में परिवर्तित करने पर रोक लगाई गई है। इसमें मतांतरण का प्रयास करना या दुष्प्रेरित करना भी शामिल है। इसका उल्लंघन करने वाले को दो वर्ष की कैद या 25 हजार रुपए तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।कानून के अनुसार यदि किसी अवयस्क, महिला, अनुसूचित जाति या जनजाति से जुड़ा मतांतरण का मामला हो तो सजा की अवधि तीन वर्ष तक और जुर्माने की राशि 50 हजार रुपए तक हो सकती है। ये अपराध संज्ञेय होंगे और इनकी पुलिस निरीक्षक से नीचे के अधिकारी से जांच नहीं कराई जाएगी। किसी भी अपराध का अभियोजन जिलाधिकारी या ऐसे अधिकारी, जो उपमंडल अधिकारी से नीचे का न हो, की मंजूरी के बिना नहीं किया जाएगा।एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह किया गया है कि मतान्तरण के इच्छुक व्यक्ति द्वारा जिलाधिकारी को इस आशय का आवेदन एक महीने पहले देना होगा। जिलाधिकारी इसकी छानबीन पुलिस अधीक्षक अथवा जिले के किसी अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी से कराएंगे। उसकी रपट के आधार पर वे निर्णय लेंगे। यदि कोई व्यक्ति एक महीने के नोटिस के बिना मतांतरण करता है तो उस पर एक हजार रुपए जुर्माना लगाया जाएगा और ऐसे व्यक्ति को या लोभ-लालच अथवा बलपूर्वक मतांतरित व्यक्ति को मतांतरित हुआ नहीं माना जाएगा। कानून में कहा गया है कि अपने मूल धर्म में वापसी को मतांतरण नहीं माना जाएगा और उन मामलों में जिलाधिकारी को एक महीना पूर्व आवेदन देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह ने विधानसभा को आश्वासन दिया है कि वर्तमान समय में प्रावधानों को और सख्त बनाने की जरूरत नहीं है, परंतु कानून को कुछ समय तक लागू करने के बाद यदि जरूरत हुई तो प्रावधानों को और कड़ा करने के लिए सरकार जरूरी कार्रवाई करेगी।10
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