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डा. लोहिया ने कहा था-

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Apr 2, 2007, 12:00 am IST
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दिंनाक: 02 Apr 2007 00:00:00

मैं वोटों के लिए मुस्लिम पर्सनल ला में बदलाव के अपने विचारों को कैसे छोड़ दूं?प्रखर राष्ट्रभक्त, स्वाधीनता सेनानी तथा समाजवादी चिन्तक डा. राम मनोहर लोहिया सत्ता-सुख की अपेक्षा सिद्धातों को सर्वोपरि मानते थे। आज लोहिया जी का अनुयायी होने का दावा करने वाले कुछ दल किस प्रकार पग-पग पर सत्ता में बने रहने के लिए सिद्धान्तों का हनन करने में नहीं हिचकिचाते, यह किसी से छिपा नहीं है।लोहिया जी ने सन् 1965 में सार्वजनिक रूप से “मुस्लिम पसर्नल ला” में परिवर्तन करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था- “यदि हिन्दू समाज कुछ पुरानी व गलत परम्पराओं को त्यागने की पहल कर सकता है, विधवा विवाह निषेध का त्याग करने को तत्पर हो सकता है, बाल विवाह जैसी कुप्रथा को छोड़ सकता है तो मुस्लिम समाज को गलत सामाजिक परम्पराओं को त्यागने में क्या आपत्ति है? मेरे दृष्टिकोण से बहुविवाह, बात-बात में तलाक देने जैसी घातक कुरीतियों को तुरन्त त्याग देना चाहिए। मुल्ला-मौलवियों के प्रत्येक फतवे की मानने से इनकार कर देना चाहिए। जो भी भारत का नागरिक है, उसके लिए समान कानून होना चाहिए।”दो वर्ष बाद 1967 में लोहिया जी फरुखाबाद (उ.प्र.) संसदीय क्षेत्र से लोकसभा प्रत्याशी थे। कांग्रेसी लोहिया जी को किसी भी प्रकार हराने के लिए कृत संकल्प थे। वे चुनावी सभाओं में लोहिया जी को मुस्लिम विरोधी सिद्ध करने के लिए उनके मुस्लिम पर्सनल ला सम्बन्धी विचारों के पम्पलेट छपवाकर बंटवा रहे थे। सभाओं में कह रहे थे “लोहिया यदि संसद में पहुंच गए तो मुस्लिम कानून को बदलवाने का प्रयास करेंगे, इसलिए प्रत्येक मुसलमान का फर्ज है कि वह उन्हें हराने के लिए जुट जाए”।चुनाव प्रचार के दौरान लोहिया जी की एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया। संसोपा के नेता सत्यप्रकाश मालवीय ने लोहिया जी के सभा में पहुंचने से पूर्व उनसे मिलकर कहा- “कांग्रेसी व मुल्ला मौलवी आपके मुस्लिम पर्सनल ला सम्बंधी विचारों को मुद्दा बना रहे हैं। सभा में आपसे प्रश्न किया जा सकता है कि मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के बारे में आपका क्या मत है। मेरे विचार से यदि आपने अपनी पुरानी बात दोहराई तो चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा। इससे मुसलमान न आपको वोट देंगे न राज्यभर में किसी संसोपा प्रत्याशी को। अत: हम सबका विचार है कि आप इस प्रश्न का गोल-मोल उत्तर दें।”लोहिया जी ने मालवीय जी को उत्तर दिया- “क्या आप चाहते हैं कि मैं वोट पाने के लिए, लोकसभा में पहुंचने के लिए सच्ची बात कहने से हिचकूं? समझ लो कि मैं वोट पाने के लिए अपनी बात नहीं बदला करता। मैं वही उत्तर दूंगा जो देता आया हूं।” लोहिया जी ने सभा में पूछे जाने पर स्पष्ट कहा “मुस्लिम औरतों का भला इसी में है कि उनके लिए कानूनों में सुधार लाया जाए। बहुविवाह तथा तलाक जैसे पुराने पड़ चुके कानूनों को बदला जाए।”उस चुनाव में लोहिया जी को कट्टरपंथी संकीर्ण मुसलमानों के वोट भले ही नहीं मिले किन्तु बहुसंख्यक हिन्दू मतदाताओं ने उनके राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित होकर उन्हें विजयी बनाया।इसी प्रकार कुछ ही महीने बाद जब संत प्रमुख प्रभुदत्त ब्राह्मचारी जी ने वृन्दावन में गोहत्या बन्दी की मांग को लेकर अनशन किया तो लोहिया जी अपने साथी कप्तान अनवर अली को साथ लेकर वृन्दावन गए। उन्होंने गोहत्या बन्दी की मांग का समर्थन किया तथा कहा- “देश का बहुसंख्यक हिन्दू समाज गोवंश के प्रति श्रद्धा रखता है। गोवंश भारत की कृषि व्यवस्था की रीढ़ है। गोहत्या बन्द होनी ही चाहिए।” और अब अपने को लोहिया जी का अनुयायी बताने वाले उ.प्र. के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव मुस्लिम वोटों के लालच में आतंकवादियों के संगठन “सिमी” को देशभक्त होने की क्लीन चिट देने में नहीं हिचकिचाते तो कभी आतंकवादियों के अड्डे बने मदरसों को ज्ञान का केन्द्र तथा राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाने वाला बताते हैं और दूसरी तरफ सरस्वती शिशु मंदिरों को कोसने में पीछे नहीं रहते। -शिव कुमार गोयल20

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