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सेकुलर वामपंथियों के निशाने पर

by
Jan 7, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Jan 2007 00:00:00

पहले सरस्वती और अब श्रीराम सेतु-हरेन्द्र प्रतापरामेश्वरम और श्रीलंका के बीच एक रामसेतु है और यह नासा के चित्र ने सिद्ध किया है। किन्तु देश के एक प्रमुख टी.वी. चैनल ने यह दुष्प्रचार शुरू किया है कि नासा के पास ऐसा कोई चित्र नहीं है। जिस टी.वी. चैनल ने 18 मई को इस दुष्प्रचार की शुरुआत की वह यह भी भूल गया कि कई पत्रिकाओं में यह चित्र प्रकाशित किया गया था, जिसमें रामसेतु के अवशेष साफ-साफ दिखाई पड़ रहे थे। 13 अक्तूबर, 2002 को दैनिक हिन्दुस्तान में भी श्री रामसेतु का चित्र प्रकाशित हुआ था और उसमें यह दावा किया गया था कि यह सेतु सत्रह लाख साल पुराना है। इस देश का अपना एक इतिहास है। उस इतिहास को समझने के लिए पश्चिमी चश्मे को उतार कर भारतीय चश्मा लगाना होगा।इस देश पर जब अंग्रेजों का शासन स्थापित हुआ तो उनके सामने बड़ा संकट था मानव अस्तित्व और मानव विकास की अवधारणा से जुड़ी भारत की विकास यात्रा की प्रचलित मान्यता का। वर्षों तक पश्चिमी जगत ईसाई मान्यता के अनुसार यह मानता रहा कि पृथ्वी स्थिर है और सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता है। इटली में जन्मे गैलीलियो ने जब बाइबिल के इस विचार के विपरीत अपना विचार रखा कि पृथ्वी ही सूर्य की परिक्रमा करती है तो इटली में उस पर आक्रमण होने लगे। वह भागकर 1616 में रोम आ गया। एक प्रकार से उसके वैज्ञानिक कार्यों के प्रकाशन पर ईसाइयत ने न केवल रोक लगायी, बल्कि उसे उसके घर में ही नजरबंद कर दिया गया।भारतीय इतिहास और भारतीय धर्मग्रन्थों के बारे में अधिकृत लेखक के रूप में मैक्समूलर का नाम प्रचारित किया जाता था। मैक्समूलर ने वेदों का काल ईसा पूर्व 1200 से 1500 वर्ष ही रखा। पश्चिम के एक और विद्वान डा. हाब ने वेद का काल 2000 से 2400 ईसा पूर्व कहा। मैकडानल और कीट ने भी वेदों का काल 1200 से 2000 के बीच ही माना, क्योंकि पश्चिमी लेखकों के समक्ष यह सबसे बड़ा संकट था कि वह किसी भी हालत में 6000 वर्ष से पीछे भारत के इतिहास को स्वीकार ही नहीं कर सकते थे, क्योंकि गैलीलियो पर किया गया अत्याचार उन्हें बार-बार उनकी सीमा रेखा की याद दिला रहा था।मैक्समूलर इतिहासकार कम ईसाई मत के कट्टर प्रसारक अधिक थे। इसके प्रमाण इस प्रकार हैं-1866 में उन्होंने अपनी पत्नी को एक पत्र लिखा जिसमें लिखा-“मेरा यह संस्करण और वेद का अनुवाद कालान्तर में भारत के भाग्य को दूर तक प्रभावित करेगा। यह उनके धर्म का मूल है। मेरा यह निश्चित मत है कि उन्हें यह दिखाना कि “मूल” कैसा है, गत 3000 वर्षों में इससे उत्पन्न होने वाली सब चीजों को जड़ समेत उखाड़ फेंकने का एकमात्र उपाय है।” (लाइफ एण्ड लेटर्स ऑफ मैक्समूलर्स-खंड-15, पृष्ठ-34)।मैक्समूलर ने भारत के इतिहास और धर्मग्रन्थों को क्यों गलत तरीके से रखा, उसके लिए निम्न उदाहरण काफी है-“भारत का प्राचीन धर्म अब नष्टप्राय: है और ईसाइयत उसका स्थान नहीं लेती तो यह किसका दोष होगा।” (खण्ड-16, पृष्ठ-378।)आजादी के बाद भारत में पुरातत्व के क्षेत्र में जो प्रयास होने चाहिए थे, वे नहीं के बराबर हुए। गुजरात के द्वारिका में डा. एस.आर. राव ने खुदाई शुरू की तो उन्हें डूबी हुई द्वारिका मिल गई। फिर भी भारत के इतिहास को 6000 वर्ष से पीछे स्वीकार करने हेतु ये वामपंथी तैयार नहीं थे। चेन्नै के “राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान” ने गुजरात में समुद्री प्रदूषण की खोज करते हुए खम्बात के पास विलुप्त एक विकसित नगर के अवशेष देखे। 13 फरवरी, 2002 को “इंडिया टुडे” में सचित्र प्रकाशित खम्बात के इस विशाल नगर पर खोज शुरू हुई। वहां से प्राप्त लकड़ी के अवशेषों की कार्बन डेटिंग द्वारा यह पता चला कि यह नगर ईसा पूर्व 7500 वर्ष पहले विलुप्त हुआ है। (पटना दैनिक हिन्दुस्तान, 19 जुलाई, 2004, पृष्ठ -10) यानी ईसा पूर्व 9500 वर्ष पूर्व का प्रमाणित दस्तावेज अब भारत के पास उपलब्ध हुआ।वैज्ञानिकों के प्रयासों से यह प्रमाणित हो गया कि इस देश में सरस्वती नदी बहती थी और यह सरस्वती महाभारत काल के पूर्व ही विलुप्त हुई है। सरस्वती के किनारे अनेक जगहों पर “सरस्वती प्रकल्प” के तहत खुदाई शुरू हुई और अनेक प्रमाणित दस्तावेज प्राप्त होने लगे। किन्तु संप्रग सरकार ने सरस्वती प्रकल्प योजना को बन्द कर दिया है।विलुप्त सरस्वती, गुजरात में खम्बात की खुदाई और अब श्रीराम सेतु, ये ऐसे प्रामाणिक और पुरातात्विक दस्तावेज हैं, जो न केवल भारत की प्राचीनता को प्रमाणित करते हुए अपनी गवाही दे रहे हैं, बल्कि आर्यों के भारत आगमन के मिथक को भी तोड़ रहे हैं। इतिहास के तथाकथित पश्चिम दलालों को एक करारा चाटा लग रहा है। इसलिए वे तिलमिला गए हैं। रामसेतु वामपंथियों के अस्तित्व पर एक प्रश्नचिह्न खड़ा न करे अत: वे गोलबंद हो गए हैं और संप्रग सरकार उनके सामने झुकने को बाध्य है।इस ऐतिहासिक और प्रामाणिक रामसेतु को ध्वस्त किया जाता है तो यह राष्ट्र को स्वीकार नहीं होगा। राष्ट्रीय स्वाभिमान को कुचल कर राष्ट्र का विकास संभव नहीं है। अत: यह लड़ाई राष्ट्रीय स्वाभिमान की है और हर देशभक्त नागरिक इस लड़ाई का समर्थन करेगा। सरस्वती प्रकल्प को पुन: शुरू किया जाए। रामसेतु की रक्षा की जाए। भारत के पुरातत्व विभाग को सक्रिय किया जाए। अगर पोप अपनी गलती स्वीकार कर सकते हैं, तो वामपंथियों को भी अपनी गलती स्वीकारनी चाहिए।8

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