लोकहित प्रकाशन की ज्वलंत विषयों पर दो पुस्तकें

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दिंनाक: 07 Jan 2007 00:00:00

दोनों पुस्तकों के प्रकाशक- लोकहित प्रकाशनसंस्कृति भवन, राजेन्द्र नगर, लखनऊ‚-226004 (उ.प्र.)1857 का सच यह भी हैपुस्तक का नाम – 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का प्रतिसादलेखक – श्रीधर पराडकरपृष्ठ – 110, मूल्य – 25 रुपए”1857 के स्वतंत्रता संग्राम के प्रतिसाद” पुस्तक देखी, पढ़ी, फिर पढ़ी! प्रसंग ही कुछ ऐसा है कि तत्सम्बन्धी लेख या पुस्तक हर कोई पढ़ना चाहेगा। 1857 की महान क्रांति की एक सौ पचासवीं वर्षगांठ पर देश भर में अनेक प्रकाशनों ने अनेक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इसी में श्री श्रीधर पराडकर की पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। इस पुस्तक में क्रांति की पूर्व पीठिका, क्रांति के नायकों और क्रांति की असफलता की कारण-मीमांसा गहन चिन्तन के पश्चात की गयी है। इस क्रांति के पश्च-प्रभाव क्या हुए और वीर सावरकर का प्रकाशन-पूर्व प्रतिबंधित ग्रंथ “वार आफ इण्डिपेण्डेन्स 1857” ने कैसी विलक्षण ज्वाला धधका दी थी, इस सबका भी विस्तृत विश्लेषणपरक वर्णन प्रस्तुत कृति में है। अनुशासनहीनता से इस सर्वांगपूर्ण, छिद्ररहित क्रांति की सफलता को पलीता लगा, विश्वासघात ने भी उसमें अपनी भूमिका निभायी, इस सब पर तथ्यपूर्ण एवं तर्क-संगत रीति से पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। इस क्रांति की राख में भी इतनी गरमी रही, तप्तता रही, चिनगारियां छिपी रहीं कि उनकी आंच से वासुदेव बलवन्त फड़के, रामसिंह कूका, गदर-पार्टी, लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, सुभाष चन्द्र बोस जैसे क्रांतिवीरों ने नयी-नयी ज्वालाएं ही नहीं, ज्वालामुखियों का सृजन कर अन्तत: ब्रिटिश-सत्ता को इस देश से पलायन करने को बाध्य कर दिया। इस क्रांति सम्बन्धी अनेक भ्रमों का निराकरण “निरसन एक भ्रम का” शीर्षक से अन्तिम अध्याय में किया गया है।-आनन्द मिश्र “अभय”रामसेतु बचाना राष्ट्र का धर्मपुस्तक का नाम – श्री रामसेतुसंकलन-सम्पादन – आनन्द मिश्र “अभय”, विजय कुमार, रामनारायण त्रिपाठीपृष्ठ – 52, मूल्य – 10 रुपएसेतुबन्ध रामेश्वरम् विश्व भर के हिन्दुओं का लाखों वर्षों से एक परम पावन तीर्थ रहा है। इसी सेतु को वर्तमान सरकार गत जुलाई, 2005 से “सेतु समुद्रम् परियोजना” के अन्तर्गत ध्वस्त करने पर तुली हुई है। फलत: अपनी इस अनूठी विश्व धरोहर पर प्रहार से जन-मानस उद्वेलित है।”राष्ट्रधर्म” (मासिक) ने अपने मई, 2007 अंक में वाल्मीकि रामायण से लेकर अब तक देश भर की विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित रामायणों में इस सेतु का जो वर्णन आया है, उसको लेकर विशेष सामग्री प्रकाशित की थी, उसी का सम्पादित रूप है यह 52 पृष्ठों की पुस्तक। आकर्षक भावप्रवण मुखपृष्ठ, उत्तम कागज, साफ-सुथरी छपाई एक विशेषता है इस कृति की। इस पठनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक का निश्चय ही समाज में स्वागत होगा।-समीक्षक24

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