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सांसत में सपाउत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी की राह कठिन होती जा रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा पूर्वी उत्तर प्रदेश में 63 सीटें प्राप्त कर सबसे अधिक विधायकों वाली पार्टी बनी थी लेकिन इस बार उसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में भाजपा-अपना दल गठबंधन, बसपा, कांग्रेस सहित स्थानीय दलों एवं निर्दलीय प्रत्याशियों से कड़ी चुनौती मिलेगी। पार्टी में टिकट बंटवारे सहित अन्य कारणों से हो रही बगावत पार्टी की स्थिति और खराब करेगी।वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश के 27 जिलों की 159 सीटों में सपा को 63, बसपा 37, भाजपा 34, कांग्रेस 10 तथा निर्दलीय एवं स्थानीय पार्टियों को 15 सीटें मिली थीं। आंकड़े साबित करते हैं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में सपा की पकड़ काफी मजबूत थी, लेकिन पिछले 5 वर्षों में पार्टी की छवि बहुत खराब हुई है। सपा के बाहुबली सांसद अतीक अहमद तथा उनके भाई सपा विधायक अशरफ पर इलाहाबाद के बसपा विधायक राजू पाल की हत्या तथा गाजीपुर में सपा समर्थक बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी पर भाजपा विधायक कृष्ण नंद राय की हत्या के आरोप से समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश में सपा को “अपराधियों की पार्टी” की उपाधि दी गई है। इलाहाबाद में सपा सरकार में मंत्री अंसार अहमद द्वारा समर्थित अपराधियों द्वारा सपा के परम्परागत मतदाता यादव जाति के 3 व्यक्तियों की हत्या से इलाहाबाद और उसके आस-पास के यादव मतदाताओं को सपा से मुंह-मोड़ने को विवश किया है। भाजपा-अपना दल गठबंधन इलाहाबाद, कौशाम्बी, फतेहपुर, मिजापुर, प्रतापगढ़, सोनभद्र सहित एक दर्जन जनपदों में, जहां कुर्मी मतदाताओं की संख्या दस हजार से पचास हजार तक है, सपा को कड़ी चुनौती देने को तैयार है। टिकट बंटवारे को लेकर भी सपा में घमासान चल रहा है। कार्यकर्ताओं की अपेक्षा उन लोगों को तरजीह दी जा रही है जो अन्य दलों से आये हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में यह विरोध खुलेआम हो रहा है। हरि मंगल11
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