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संस्कृति-सत्य

by
Dec 3, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Dec 2006 00:00:00

आजाद का क्रांतिकारी नेतृत्व

वचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”

मेरे एक सुपरिचित क्रांतिकारी काशीराम का परिवार हरदोई नगर (उत्तर प्रदेश) में ही रहता था, किन्तु जिन दिनों चन्द्रशेखर आजाद और सरदार भगत सिंह आदि देश को स्वतंत्र कराने के ध्येय से क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न थे, काशीराम उन दिनों दिल्ली के “हिन्दू कालेज” में पढ़ते थे। तब तक क्रांतिकारी दल से उनका सम्पर्क नहीं हुआ था। इसी बीच सरदार भगत सिंह से उनका मिलना हो गया। भगत सिंह ने काशीराम को दल में लाकर क्रांति कार्यों में सक्रिय करने की बड़ी कोशिश की परंतु काशीराम क्रांति-कार्यों से अलग ही रहे। भगत सिंह ने बहुत समझाया पर काशीराम नहीं माने। हालांकि काशीराम छात्र रहते “कुमार सभा” के मंत्री के नाते कार्य करते थे। “हिन्दू कालेज” का होस्टल नं.-2 “कुदेसिया गार्डन” के समीप श्रीराम रोड पर था। काशीराम वहीं रहते थे। उसी होस्टल के एक कमरे में एक दिन चन्द्रशेखर आजाद ने भी आकर डेरा डाल दिया। कारण, भगत सिंह “असेम्बली” में बम फेंककर लाहौर की “सेंट्रल जेल” पहुंच गए थे। दल को पैसे की सख्त जरूरत पड़ी तो आजाद प्रबंध के लिए दिल्ली के हिन्दू कालेज के होस्टल में आकर ठहरे।

एक दिन संध्या के समय आजाद ने काशीराम को बुलाया काशीराम के वहां पहुंचते ही आजाद ने कहा, “बस, इन शस्त्रों को साफ करके और ठीक से जांच करके एक तरफ रख दो।” थोड़ी देर बाद वहां एक आदमी आया और आजाद से कुछ बात करके कहने लगा, “भाई! अब देर मत करो।” चलते-चलते आजाद ने काशीराम से नीचे तक चलने को कहा, और एक रिवाल्वर भी रखने को दे दी। नीचे आकर सब कार में बैठ गए लेकिन काशीराम बाहर ही खड़े रहे। “ड्राइविंग सीट” पर बैठकर आजाद ने कार चालू कर दी और काशीराम से कहा, “अरे जगदीश! तुम अभी बाहर ही खड़े हो? आओ, यहां बैठो। जरा घूम आयें।” आजाद ने ही उस दिन काशीराम का क्रांतिकारी दल का नाम जगदीश रख दिया। काशीराम यानी जगदीश आजाद की बात मानकर उनके बगल में अगली सीट पर बैठ गए। 10 मिनट में वह कार नगर निगम कार्यालय के पीछे कंपनी बाग में जाकर रुकी। सभी साथी वहां उतर गए तो बताया गया, “अभी हमें एक “एक्शन” करना है।” एक साथी कार की देखभाल के लिए वहीं रुका रहा। शेष सब लोग बाग की समीपवर्ती गली में प्रविष्ट हुए। काशीराम उस गली में चलते हुए सोच रहे थे, “जो काम भगत सिंह कई बार कह कर भी मुझसे न करा सके, आजाद ने सिर्फ एक आदेश मात्र से करा लिया।”

दिल्ली का गडोदिया बैंक उस गली के कोने पर घंटाघर के पास था। वहां पहुंचकर सब लोग जीने पर चढ़ गये। सबसे आगे विश्वम्भर थे जो इसी बैंक में मुनीम थे। वे ही सबको वहां ले गए थे। उनके पीछे थे आजाद, हाथ में पिस्तौल थामे हुए। फिर काशीराम और विद्याभूषण (एम.ए.)। भवानी सिंह तथा अन्य दो साथी पहले से ही बैंक में पहुंच चुके थे जबकि धन्वंतरी सीढ़ी के नीचे ही निगरानी के लिए खड़े हो गए। बैंक के भीतर पहुंचकर आजाद ने रिवाल्वर हवा में लहराया और खजांची से कड़ककर कहा, “चुपचाप बैठे रहो। कोई शोर मत करना। “जितने भी रुपए हैं सब हमारे हवाले करो। शोर मचाओगे तो खोपड़ी उड़ा देंगे।” बड़े खंजाची ने रुपयों से भरी थैलियां आजाद को सौंप दीं। साथियों ने वे उठाकर अपने कंधों पर रख लीं। खजांची ने भयवश तिजोरी का भी ताला खोला और स्वर्णाभूषण आदि आजाद को देते हुए कहा, “ये भी ले लो।” परंतु आजाद ने सोने के उन जेवरों की गठरी को ठोकर मारते हुए कहा, “हम डाकू नहीं, क्रांतिकारी हैं। सोने के जेवर स्त्रियों के लिए हैं, हमें नहीं चाहिए।”

इसी बीच सीढ़ियों पर मौजूद साथी की असावधानी से एक लड़का मकान की सीढ़ी के ऊपर तक जा पहुंचा और इन सबको देखकर वह छत पर भाग कर शोर मचाने लगा, “डाकू बैंक लूट रहे हैं।” पर उसके शोर मचाने की चिन्ता न कर क्रांतिकारी साथी कंधों पर नकदी से भरा थैला लादे शांन्तिपूर्वक नीचे उतर आए। गली के नुक्कड़ पर ही भारी-भरकम देह वाले एक सेठ का दुग्ध भण्डार था। वह क्रांतिकारियों के रास्ते के बीच में आ खड़ा हुआ। डांटने-डराने की नीति कामयाब नहीं हुई तो आजाद ने आदेश दिया, “नहीं हटता तो गोली मार दो।” सबसे पहले काशीराम (जगदीश) ने ही पिस्तौल निकाली और सेठ की तोंद से सटा दी। सेठ जी भागकर अपनी दुकान में घुस गए और वे सब सुरक्षित अपने ठिकाने पर पहुंच गए। कुछ दिन बाद विद्याभूषण ने काशीराम को बताया, “अगर हम चलने से पूर्व तुम्हें एक्शन की बात बता देते तो शायद तुम न जाते, इसीलिए आजाद ने मना किया था।” काशी भाई बाद में लगातार क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल रहे। वे कहते थे, “आजाद का नेतृत्व अचंभित करने वाला था। भगत सिंह बार-बार कहते रहे पर मैं नहीं माना, पर आजाद ने जब कहा तो फिर सोचने की शक्ति ही न बची।”

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