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साम्प्रदायिक नफरत और दूरियां बढ़ाने की राजनीति?अपने जनाधार को लगातार खिसकता देख कांग्रेस को लगा कि इसका एक मुख्य कारण “अल्पसंख्यकों”, क्षमा करें केवल मुसलमानों का कांग्रेस से दूर होना है। अत: जैसे ही संप्रग सरकार बनी इसने मुसलमानों को लुभाने के लिए कई योजनाओं पर अमल करना शुरू किया। इसकी शुरुआत में ही आंध्र प्रदेश में नई बनी कांग्रेस सरकार ने सरकारी नौकरियों में मुसलमानों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद यह घोषणा केवल घोषणा ही रह गई। इसके बाद मानव संसधान विकास मंत्री अर्जुन सिंह की पहल पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में व्यावसायिक पाठयक्रमों में मुसलमानों को 50 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की, किन्तु यहां भी न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण इस सरकार को सफलता नहीं मिली। इसी बीच अद्र्धसैनिक बलों और सेना में भी अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने की बात चली। हालांकि अभी इस मामले पर चर्चा गर्म नहीं है किन्तु सूत्रों का कहना है कि यह सरकार की कार्यसूची में शामिल है। इसी तरह दंगारोधी बल के गठन की भी चर्चा है, जिसमें अल्पसंख्यकों को तरजीह देने की बात कही गई है। अब 29 जनवरी को हुए केन्द्रीय मंत्रिमण्डल के विस्तार में पहली बार एक अल्पसंख्यक मंत्रालय का गठन हुआ है। इसका प्रभार महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले को सौंपा गया है। ये वही अंतुले हैं जिन्हें घोटाले के आरोपों के बाद मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। इस देश में जहां पहले से ही अल्पसंख्यकों के लिए अल्पसंख्यक आयोग, अल्पसंख्यक वित्त निगम, वक्फ बोर्ड, हज समिति, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन एक विशेष अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ है, वहां अल्पसंख्यक मंत्रालय का औचित्य समझ से बाहर है। इस संबंध में हमने देश के कुछ प्रमुख लोगों से बातचीत की और उनसे ही जानना चाहा कि आखिर सरकार के इस कदम के पीछे मंशा क्या है। प्रस्तुत हैं उनके विचारों के संपादित अंश। सं.प्रस्तुति: जितेन्द्र तिवारी, राकेश उपाध्याय एवं अरुण कुमार सिंहअल्पसंख्यक-बहुसंख्यक का भेद खत्म हुएबिना कल्याण संभव नहीं-नजमा हेपतुल्लाराज्यसभा की पूर्व उपसभापतिसंप्रग की अध्यक्ष- सोनिया गांधीसंप्रग सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के विकास के नाम पर एक अलग मंत्रालय का गठन वस्तुत: अल्पसंख्यकों को बेवकूफ बनाने के सिवाय कुछ और नहीं है। सरकार अगर वास्तव में अल्पसंख्यकों का विकास करना चाहती है तो उसके लिए अलग मंत्रालय क्यों?दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक देशों में क्या इस प्रकार के मंत्रालय हैं? हां, पाकिस्तान में जरूर अल्पसंख्यकों के लिए मंत्रालय है लेकिन वहां अल्पसंख्यकों की हालत जितनी बदतर है उसे देखकर अल्पसंख्यक मंत्रालय की भूमिका मुझे समझ में आ जाती है। आजादी के समय भारतीय मुसलमानों के लिए न आरक्षण की कोई बात उठी थी और न इस प्रकार के मंत्रालय की, लेकिन आज सरकार कह रही है कि मुसलमान पिछड़ गए हैं अत: उनके विकास के लिए यह सब उपाय किए जा रहे हैं। मेरा कहना है कि आजादी के समय में जिन चीजों की जरूरत महसूस नहीं हुई, वह आज यदि महसूस की जा रही है तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है? उसी कांग्रेस की, जिसने 58 साल में 45 साल इस देश पर राज किया। इस प्रकार का मंत्रालय बनाने का संदेश साफ है कि आजादी के बाद मुसलमानों की आर्थिक-शैक्षिक उन्नति जिस प्रकार होनी चाहिए थी, वह नहीं हुई। मुसलमानों के दिलो-दिमाग में बार-बार उनके अल्पसंख्यक होने, कमजोर होने जैसी बातें भरी गयीं। मेरा मानना है कि मुसलमान खुद को अल्पसंख्यक मानने और अन्य लोग उन्हें अल्पसंख्यक कहने की आदत छोड़ें। जब तक ये बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक का विभाजन रहेगा, कभी मुसलमानों की आर्थिक-सामाजिक-शैक्षिक उन्नति नहीं होगी। मैं यहां मौलाना अबुल कलाम आजाद का कथन उद्धृत करना चाहूंगी जो उन्होंने 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में रामगढ़ अधिवेशन में व्यक्त किया था। उन्होंने कहा था, “मुझे मुसलमान होने का गर्व है और इस बात का भी कि मैं भारत का हिस्सा हूं, भारत मेरा वतन है, इसकी विरासत मेरी विरासत है और इसके निर्माण में भी मेरा उतना ही योगदान है जितना कि अन्यों का।”आज जरूरत यह है कि सरकार व समाज के स्तर पर मुसलमानों को शेष समाज से अलग करने की कोशिशें समाप्त हों और मुसलमान भी ऐसा बर्ताव रखें ताकि उनके कंधे पर रखकर जो राजनीति की बन्दूक चलाने का रिवाज वर्षों से इस देश में चल रहा है, वह बन्द हो सके। आखिर देश की राजनीति में क्यों ऐसी स्थिति बन गई है कि जो मुसलमानों के पक्ष में बोले वह पंथनिरपेक्ष और जो देशहित का ध्यान रखकर बोले, वह साम्प्रदायिक।अल्पसंख्यकों को मिला सब कुछ-सरदार तरलोचन सिंहसांसद एवं अध्यक्ष, राष्ट्रीय अल्संख्यक आयोगदेश में यह पहली बार हुआ है कि अल्पसंख्यक मंत्रालय बनाया गया, क्योंकि अभी तक सरकार में अल्पसंख्यकों के लिए कोई विभाग था ही नहीं। अब जब अल्पसंख्यक मंत्री बना दिया है तो उसका मंत्रालय भी बनेगा और उसके विभाग भी। अब यह मंत्रालय ही देखेगा कि अल्पसंख्यकों के लिए क्या-क्या योजनाएं बनायी जाएं और क्या काम शुरू किए जाएं। जहां तक अल्पसंख्यक आयोग की बात है तो हम सरकार के अधीन नहीं, स्वतंत्र हैं। हम लोग आपसी समझबूझ और तालमेल के आधार पर सरकार के साथ काम करते हैं। हमारा नैतिक दबाव हो सकता है, कानूनी या संवैधानिक नहीं। यह बात सही है कि केन्द्र सरकार ही अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को नियुक्त करती है, पर हम पर सरकार का कोई अधिकार नहीं होता। ठीक वैसे ही जैसे न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार ही करती है पर वे सरकार के अधीन नहीं होते।हां, यह बात जरूर दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में अल्पसंख्यक का अर्थ केवल एक कौम अर्थात् मुस्लिम से लिया जाता है, जबकि सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध आदि सब अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आते हैं। पर हमारे यहां सोच यही है कि अल्पसंख्यक यानी मुसलमान। यह सोच और भावना सरकार और मीडिया के लोग ही बदल सकते हैं।यह बात सही है कि सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में दिए गए अपने एक निर्णय में कहा है कि सरकार कुछ ऐसा करे जिससे ऐसी जरूरत ही न पड़े कि अल्पसंख्यकों -बहुसंख्यकों के लिए अलग-अलग सोचना पड़े और उनमें भेद पैदा हो। न्यायालय ने अल्पसंख्यकों – बहुसंख्यकों के बीच खाई पाटने हेतु सुझाव दिए थे। अल्पसंख्यक मंत्रालय के गठन से वह खाई पटेगी या बढ़ेगी, इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता।हां, यह बात जरूर उल्लेखनीय है कि इस देश के वर्तमान राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं सेनाध्यक्ष सहित अनेक महत्वपूर्ण एवं शीर्ष पदों पर वे व्यक्ति विराजमान हैं जो अल्पसंख्यक वर्ग से आते हैं। जब प्रधानमंत्री पद पर डा. मनमोहन सिंह आए तो देशभर के लोगों ने प्रसन्नता व्यक्त की, कहीं से कोई आपत्ति नहीं की गई। यह इस बात का प्रमाण है कि किसी भी महत्वपूर्ण पद पर अल्पसंख्यक वर्ग का व्यक्ति हो उससे इस देश के बहुसंख्यक वर्ग को कोई आपत्ति नहीं होती है। इस देश में अल्पसंख्यकों को जितने अधिकार दिए गए हैं उतने विश्व के किसी भी देश में नहीं हैं। विश्व का बड़े से बड़ा लोकतांत्रिक देश भी अपने यहां के अल्पसंख्यकों को वह स्थान नहीं दिला पाया जो भारत के अल्पसंख्यकों को मिला है। और यह तब है जब हमारे पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं। इसलिए भारत के अल्पसंख्यकों को इस बात का गर्व होना चाहिए कि यहां उनके लिए सब कुछ है और सब कुछ मिला है।अल्पसंख्यक मंत्रालय के मंत्री अब्दुल रहमान अंतुलेयह अल्पसंख्यक विरोधी कदम-सैयद शाहनवाज हुसैनपूर्व केन्द्रीय मंत्रीनवगठित अल्पसंख्यक मंत्रालय न तो देशहित में है और न ही मुसलमानों के हित में। यह मुस्लिम तुष्टीकरण का ही एक हिस्सा है, पर असल में यह अल्पसंख्यकविरोधी कदम है। वास्तव में इस मंत्रालय की कोई जरूरत ही नहीं थी, क्योंकि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति जैसे विभाग हैं ही। दरअसल कांग्रेस की यह नीति रही है कि वह अल्पसंख्यकों को टकराव की स्थिति में लाकर खड़ा कर देती है, इस मंत्रालय के गठन के पीछे भी कुछ ऐसी ही मंशा दिखती है। सचाई यह है कि कांग्रेस मुसलमानों की चिन्ता नहीं, सिर्फ उसका दिखावा करती है। अगर कांग्रेस वास्तव में मुसलमानों की चिंता करती तो आजादी के 58 वर्ष बाद भी मुसलमानों की ऐसी खराब स्थिति नहीं रहती। उनकी इतनी बड़ी आबादी राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग-थलग नहीं रहती। कांग्रेस जान-बूझकर अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच दूरी बनाए रखना चाहती है। मेरा मानना है कि राजग सरकार द्वारा बनाए गए सौहार्दपूर्ण माहौल को यह सरकार बिगाड़ना चाहती है।पिछली राजग सरकार के समय भी अल्पसंख्यकों के शैक्षिक एवं आर्थिक विकास के लिए अनेक काम किए गए थे, किन्तु उनमें से एक भी ऐसा काम नहीं था, जिसके कारण समाज में नफरत बढ़ी हो, दूरियां बढ़ी हों। मुसलमान भी इस विशाल देश के नागरिक हैं। उनके विकास के लिए उठाए गए हर कदम का मैं स्वागत करता हूं, पर नफरत फैलाने वाले कदमों का विरोध करता हूं। मेरी तो यही विनती है कि कृपया मुसलमानों को शेष समाज से अलग-थलग न करें।कांग्रेस विभाजनकारी मानसिकता बढ़ा रही है-तनवीर हैदर उस्मानीराष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चामुसलमानों का पुन: भावनात्मक शोषण करने का यह नया “फार्मूला” है अल्पसंख्यक मंत्रालय। कांग्रेस ने आजादी के बाद से लगातार मुसलमानों का भावनात्मक शोषण किया है, मुसलमानों को हमेशा अपना वोट बैंक और बंधुआ मजदूर समझकर व्यवहार किया। वास्तव में इस मंत्रालय की कोई जरूरत नहीं थी। ऐसा ही एक अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग भी गठित किया गया है। इस सबसे भले ही कुछ मुसलमानों को सरकार संतुष्ट कर लेगी, पदों पर बैठाएगी, लेकिन एक समाज के रूप में इससे मुसलमानों या अन्य अल्पसंख्यक वर्गों का कुछ भला होने वाला नहीं है।कांग्रेस ने हमेशा मुसलमानों को अल्पसंख्यक होने का अहसास कराकर उनका भयादोहन ही किया है। कांग्रेस ने हमेशा मुसलमानों को “दबे-कुचले”, “पिछड़े”, “सताए गए” आदि शब्दों से विभूषित किया। देश में बराबरी का दर्जा देने, राष्ट्रीय विचारधारा या देश की मुख्यधारा से मुसलमानों को जोड़ने का कभी कोई ईमानदार प्रयत्न नहीं किया। हां, इसके विपरीत जाकर उसने मुसलमानों को उनके पैरों पर कभी खड़े न होने देने की कोशिश की। देश में अल्पसंख्यकों के पिछड़ेपन एवं समाज में गैरबराबरी की नींव कांग्रेस ने डाली।मजहब के नाम पर नौकरियों में आरक्षण, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आरक्षण, अब अल्पसंख्यक मंत्रालय, ये सब मुसलमानों को देश की मुख्यधारा से अलग रखने की साजिश नहीं तो और क्या है? पर देश का मुसलमान सब समझ रहा है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव ने शुक्रवार को नमाज के लिए मुसलमानों को छुट्टी की घोषणा कर दी। क्या नतीजा निकला? मुसलमानों ने ही एक स्वर से इसे नकार दिया।जहां तक रहा मुसलमानों के विकास का सवाल, तो पहले यह सरकार नीयत ठीक करे। हमें अल्पसंख्यक होने का अहसास कराना बन्द करे। हमारा वतन भारत है, हमारे पुरखे इसी धरती पर पैदा हुए, यहीं दफन हुए, सो यह देश जितना किसी और का है, उतना ही हमारा भी है। सरकार को चाहिए कि वह मुसलमानों में अशिक्षा दूर करे। मुस्लिम बच्चों में इसके लिए वैसे ही प्रयास हों जैसे सर्वशिक्षा अभियान में किए गए। अलग से प्रयास करेंगे तो अलगाव ही बढ़ेगा।और यह कहना है आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड का-संविधान से समान नागरिक संहिता का प्रावधान ही खत्म होअ लीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सन्दर्भ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को पलटने की मांग का क्रियान्वयन करने की जुगत में लगी संप्रग सरकार को देश में मुसलमानों के सर्वोच्च प्रतिनिधि संगठन आल इण्डिया पर्सनल ला बोर्ड ने एक और फरमान सुना दिया है। फरमान है- संविधान के अनुच्छेद 44 के अन्तर्गत समान नागरिक संहिता को पूरी तरह समाप्त करने का। आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने गत 31 जनवरी को नदवा कालेज परिसर (लखनऊ) में आयोजित एक बैठक में केन्द्र सरकार को सुझाया है कि वह संविधान में नीति निर्देशक सिद्धांतों में से समान नागरिक संहिता को या तो हटा दे या फिर मुसलमानों को इससे अलग कर दे। बोर्ड के महासचिव मौलना निजामुद्दीन के अनुसार, “संविधान के इस प्रावधान से मुसलमानों के पर्सनल ला पर हमेशा खतरा मंडरातारहता है। अगर भारत सरकार मुसलमानों को भयमुक्त रूप से सामाजिक एवं पारिवारिक जिन्दगी गुजारने देना चाहती है तो फिर संविधान से ऐसे विवादित प्रावधान को ही हटा देना चाहिए।”हमारी मांग मान ली-सैयद शहाबुद्दीनपूर्व सांसदअल्पसंख्यकों के लिए अलग से मंत्रालय बनाने की हमारी मांग बहुत पुरानी है। हम तो 1991 से लगातार इस बात को कहते आ रहे हैं कि मुसलमानों के लिए क्या किया जा रहा है, इसकी देख-रेख के लिए अलग से एक मंत्रालय हो। बार-बार यह प्रचारित किया जाता है कि फलां सरकार मुसलमानों के लिए बहुत कुछ कर रही है। अनेक संस्थाओं और विभागों के नाम गिनाए जाते हैं, पर यह पता ही नहीं चलता था कि कौन किस क्षेत्र में क्या कर रहा है। पर अब मंत्रालय बन जाने से उस सबकी जानकारी एक ही स्थान पर मिल सकेगी और मुसलमानों के लिए योजनाएं भी बन सकेंगी। हमें खुशी है कि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने हमारे आग्रह को स्वीकार करते हुए अल्पसंख्यक मंत्रालय बना दिया है। हालांकि अभी यह पता नहीं है कि इस मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र क्या होगा।”विकास मंत्रालय” होगा यह-शाहिद सिद्दिकी,राज्यसभा सदस्य, समाजवादी पार्टीयह सही है कि हमारे यहां एक अल्पसंख्यक आयोग बखूबी काम कर रहा है। लेकिन फिर भी अल्पसंख्यक मंत्रालय की जरूरत थी, क्योंकि विभिन्न विभागों, जैसे अल्पसंख्यक आयोग, वक्फ बोर्ड, अल्पसंख्यक वित्त आयोग, हज समिति आदि द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए किए जा रहे कार्यों को एक जगह लाकर बेहतरी प्रदान करना आवश्यक था। उल्लेखनीय है कि अल्पसंख्यक वित्त आयोग, वित्त मंत्रालय और हज समिति विदेश मंत्रालय के अधीन काम करती है। इन सबके कामों को गति देना, उनके काम के तरीकों में बदलाव लाने के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय आवश्यक था।पिछले 15 साल से हम लोगों की यह मांग थी। यह मांग 1991 में सबसे पहले मैंने ही तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के सामने रखी थी। चन्द्रशेखर जी जब प्रधानमंत्री थे तब उनके सामने भी मैंने यह मांग की थी। 1991 के चुनाव घोषणापत्र में कांग्रेस ने हमारी इस मांग को शामिल भी किया था। अब कांग्रेस ने अपने उस वायदे को पूरा किया है। मेरे विचार से इस मंत्रालय से अल्पसंख्यकों के विकास से सम्बंधित जो मामला कहीं अटका रहता था, अब नहीं अटकेगा।इस मंत्रालय के कारण अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच दूरियां नहीं बढ़ेंगी बल्कि एक पिछड़े समाज का भला हो जाएगा। किसी भी लोकतांत्रिक समाज के भीतर बुनियादी बात यह है कि सबको दौड़ने के लिए एक समतल मैदान दिया जाए। अगर कोई कमजोर है, तो उसकी ओर हाथ बढ़ाया जाए, बीमार है तो उसकी बीमारी दूर की जाए, ताकि दौड़ में सबकी बराबर की हिस्सेदारी हो सके। अभी जितने जितने भी सर्वेक्षण हुए हैं, उन सबमें यह साबित हो गया है कि आज मुसलमानों की स्थिति वंचितों से भी बदतर है। सरकारी नौकरियों में मात्र 1.5 प्रतिशत और निजी संस्थानों में सिर्फ 2 प्रतिशत मुसलमान काम करते हैं। इस मंत्रालय के बनने से इस स्थिति में बदलाव आने की आशा की जा सकती है।11
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