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सरोकार

by
Dec 2, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Dec 2006 00:00:00

ऐसे रोकें जंगली जानवरों को

बिजनौर जिले में जंगली जानवर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। क्या इनको मारे बिना नुकसान रोका जा सकता है?

जानवरों का जंगल से बाहर आने का एक कारण यह भी है कि वन विभाग वाले जंगल में झड़ी हुई पत्तियों में आग लगा देते हैं ताकि इनके कारण जंगल में भयंकर आग न लग पाए। एक दूसरा कारण यह भी है कि अवैध रूप से जो पेड़ काटे जाते हैं, उसकी जानकारी लोगों को न हो। लेकिन इस आग से नई पौध ही नहीं, बल्कि जानवरों का भोजन भी नष्ट हो जाता है। इस कारण मोर, बन्दर, नील गाय एवं जंगली सूअर आदि जंगल से बाहर भाग जाते हैं। इस आग के कारण सांप भी मारे जाते हैं जो कि चूहों पर नियंत्रण रखते हैं। इस आग से चिड़िया के घौंसले भी जल जाते हैं। जंगली जानवरों को रोकने का पहला कदम यह हो सकता है कि जिला प्रशासन से बात करके जंगल में आग लगाने का प्रचलन रोका जाए। इस तरह की आग को रोकने के बाद आप निश्चय ही स्थिति में बदलाव महसूस करेंगे।

मुकेश कुमार गुप्ता, ग्राम सादाफल, बिजनौर (उ.प्र.)

क्या अस्थमा के रोगियों को हैदराबाद का प्रसिद्ध मछली इलाज करवाना चाहिए?

इसका कोई पर्याप्त सबूत नहीं है कि हैदाराबाद की मछली दवा से कोई अस्थमा का रोगी ठीक हुआ है। इसके आयोजक भी यह मानते हैं कि केवल 2 प्रतिशत लोगों को ही इसका फायदा हुआ है। साथ ही परहेज करने की सूची भी देते हैं, जैसे धूम्रपान न करें, तेल वाला भोजन न खाएं, मांसाहार न करें, शराब न पिएं इत्यादि। यह परहेज करें और आप हैदराबादी मछली न भी खाएं तो भी अस्थमा अपने आप ही ठीक हो सकता है। परन्तु कोलकाता में एक जगह है, जहां से मैंने अस्थमा के रोगियों के लिए दवा ली है, जिससे उन्हें हर बार फायदा हुआ है। यह होमियोपैथिक दवा है जो 24 घंटे के अन्दर असर करती है और जिसे रोज लेना चाहिए। इस जगह का नाम “बिल्ली का मंदिर” है, जो बेहला के हिन्दी कन्या विद्यालय के सामने है। इसे आजमाकर देखें।

प्रकाश कुमार “खिवाड़ा”, आबू रोड, जिला सिरोही (राजस्थान)

सन् 1857 ई. में कारतूस पर गाय और सूअर की चर्बी लगाने के कारण क्रांति का सूत्रपात हुआ था। आजकल जिलेटिन और कैप्सूल में इसके प्रयोग के खिलाफ कोई आवाज क्यों नहीं उठती?

नि:संदेह इन भयानक चीजों को रोकने के लिए जोर देना चाहिए। जिलेटिन और कैप्सूल कम्पनियों के मालिक हिन्दू हैं जो कि हड्डियों को वध गृह से खरीदते हैं। भारत के एक बड़े हिन्दू धनी व्यक्ति की जिलेटिन कम्पनी गुजरात में बड़ौदा के निकट है। यहां तक कि सिख भी, जैसे राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला के पुत्र, इस प्रकार बनने वाले कैप्सूल फैक्ट्री के मालिक हैं। आप जैसे लोगों को इसके खिलाफ आन्दोलन चलाने की जरूरत है। अगर आप अपने इलाके की किसी दवा की दुकान को बन्द करा सकें, जो जिलेटिन और ऐसे कैप्सूल, जिसके बनाने में मांस का प्रयोग होता है, बेचती है तो यह आन्दोलन पूरे भारत में फैल सकता है। आखिरकार ऐसे ही तो 1857 का आन्दोलन शुरु हुआ था।

सतीश कुमार मिश्रा, सुभाष नगर, भूपलागंज, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

पशु कल्याण आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक पाठक

श्रीमती मेनका गांधी से 14, अशोक रोड,

नई दिल्ली-110001 के पते पर अथवा

gandhim@parlis.nic.in पर सम्पर्क कर सकते हैं।

इस स्तम्भ में हर पखवाड़े प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और शाकाहार कीे समर्पित प्रसारक श्रीमती मेनका गांधी शाकाहार, पशु-पक्षी प्रेम तथा प्रकृति से सम्बंधित पाठकों के प्रश्नों का उत्तर देती हैं। अपना प्रश्न भेजते समय कृपया निम्नलिखित चौखाने का प्रयोग करें।

श्रीमती मेनका गांधी

“सरोकार” स्तम्भ / द्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्य

संस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-110055

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