मृदुला गर्ग के "कठगुलाब" और चंद्रकांता के "कथा सतीसर" को व्यास सम्मान
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मृदुला गर्ग के "कठगुलाब" और चंद्रकांता के "कथा सतीसर" को व्यास सम्मान

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Oct 9, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Oct 2006 00:00:00

मानवीय सरोकारों की डगर-विनीता गुप्ताश्रीमती चंद्रकांता (बाएं) और श्रीमती मृदुला गर्ग (दाएं) को व्यास सम्मान अर्पित करती हुईं श्रीमती शीला दीक्षित29 अगस्त की शाम नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार में हिन्दी की दो सुविख्यात लेखिकाओं-मृदुला गर्ग और चन्द्रकान्ता की कृतियों को सुप्रतिष्ठित व्यास सम्मान से अलंकृत किया गया। उल्लेखनीय है कि तीसरी बार भी व्यास सम्मान प्राप्त करने वाली कृति उपन्यास ही रही। 2003 में श्रीमती चित्रा मुद्गल के उपन्यास “आवां” को यह सम्मान दिया गया था। इस समारोह में 2004 का व्यास सम्मान श्रीमती मृदुला गर्ग के उपन्यास “कठगुलाब” को और वर्ष 2005 का व्यास सम्मान श्रीमती चन्द्रकांता के उपन्यास “कथा सतीसर” को दिया गया।एक भव्य समारोह में दोनों लेखिकाओं को यह सम्मान प्रदान करते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ने कहा कि जिस प्रकार के.के. बिरला फाउंडेशन द्वारा तीन बार लगातार महिला रचनाकारों की कृतियों को व्यास सम्मान के लिए चुना गया उससे स्पष्ट हो जाता है कि चिंताओं और विचारों को नारी मन कितने महीन तरीके से दर्ज करता है। इस मामले में लेखक बन्धुओं को आरक्षण देना पड़ेगा।व्यास सम्मानस्वरूप कृतिकार श्रीमती मृदुला गर्ग और श्रीमती चन्द्रकांता को ढाई-ढाई लाख रुपए की राशि का चेक, शाल, प्रशस्ति पत्र और श्रीफल प्रदान किए गए।सम्मान ग्रहण करने के बाद श्रीमती मृदुला गर्ग ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह सम्मान मुझे नहीं बल्कि कृति को मिला है। कृति और कृतिकार में फर्क करना बहुत जरूरी है, क्योंकि कृति निर्विकार होती है, अपने लिए कुछ नहीं चाहती, जबकि मोहाबिष्ट कृतिकार चाहता है कि उसका मान हो। “कठगुलाब” कभी काठ की तरह निर्जीव होते और कभी गुलाब की तरह खिलते-महकते सम्बंधों की कथा है। उपन्यास में लेखिका ने स्त्री चेतना की परतों को एक के बाद एक उघाड़ा है। इसमें स्त्री-पुरुष संबंधों की परख नैतिक मूल्य परकता और मानवी सहृदयता के आधार पर की गई है। यह काल के विस्तृत फलक पर उकेरी गई, व्यक्ति के माध्यम से समाज को और समाज के माध्यम से व्यक्ति को परखने की गाथा है।व्यास सम्मान से अलंकृत होने वाली दूसरी कृति श्रीमती चन्द्रकान्ता का उपन्यास “कथा सतीसर” कश्मीर के दर्द का दस्तावेज है। प्राचीन पुराण गाथाओं और नूरूद्दीन उपाख्य नुंद ऋषि जैसे विलक्षण चरित्रों से परिचय कराता हुआ इतिहास आधुनिक युग में कबाइली हमलों, जिन्ना द्वारा अलग पाकिस्तान की मांग, देश विभाजन के करुण दृश्यों और शेख अब्दुल्ला की राजनीति से गुजरता हुआ आतंकवाद के मौजूदा दौर में चला आता है, फिर धीरे-धीरे विस्थापित कश्मीरियों के दर्द को अपने सीने में समेट लेता है। लेखिका ने पिछले इतिहास से लेकर वर्तमान स्थितियों के लिए उत्तरदायी तत्वों को पूरी ईमानदारी से खंगालते हुए वर्तमान समय के यथार्थ को कश्मीर की संस्कृति और मानवीय सरोकारों से जोड़ा है।सम्मान ग्रहण करने के बाद एक संक्षिप्त बातचीत में श्रीमती चन्द्रकान्ता ने कहा कि इस सम्मान ने सुधी जनों का ध्यान कश्मीर की समस्याओं और आतंकवाद के शिकार कश्मीरियों की मान्यताओं की ओर खींचा है। “कथा सतीसर” एक छोटा सा गवाक्ष है, जहां से कश्मीर की वास्तविक तस्वीर देखी जा सकती है। उन्होंने आगे कहा कि उपन्यास पूरा करने में मुझे आठ वर्ष लगे, जिनमें मैंने अतीत, वर्तमान और भविष्य की यात्राएं साथ-साथ कीं। अंत में स्टीफन सेंडर के शब्दों में उन्होंने कहा, “समय की रक्तकीच में धंसकर समय का ज्वलन्त साक्ष्य प्रस्तुत किया है।”कार्यक्रम में के.के. बिरला फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री कृष्ण कुमार बिरला और चयन समिति के अध्यक्ष प्रो. सत्य प्रकाश मिश्र, फाउंडेशन के निदेशक श्री बिशन टंडन, हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की प्रबंध निदेशक श्रीमती शोभना भरतीया सहित अनेक साहित्यकार और विद्वान उपस्थित थे।18

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