अक्षरम् की हिन्दी ज्ञान प्रतियोगिता- पुरस्कृत अप्रवासी हिन्दी छात्रों ने कहा-
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अक्षरम् की हिन्दी ज्ञान प्रतियोगिता- पुरस्कृत अप्रवासी हिन्दी छात्रों ने कहा-

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Oct 9, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Oct 2006 00:00:00

विदेशों में बढ़ रहा है हिंदी प्रेम

गत 23 अगस्त को दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में एक अभिनंदन समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता में चयनित विदेशों से आए 9 विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् के अध्यक्ष डा. कर्ण सिंह ने स्मृति चिह्न प्रदान कर दिया। इस प्रतियोगिता का आयोजन यू.के. हिंदी समिति की ओर से यूरोप के 6 देशों में किया गया था। प्रतियोगिता में 1600 छात्रों ने भाग लिया। इनमें चयनित 9 छात्र-छात्राओं को भारत बुलाया गया था। कार्यक्रम का आयोजन अक्षरम् के तत्वावधान में किया गया था। उल्लेखनीय है कि यू.के. हिंदी समिति पिछले पांच साल से विदेशों में हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन करती आ रही है। समिति के अध्यक्ष डा. पद्मेश गुप्त ने कहा कि एक प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया प्रयास आज आंदोलन का रूप ले चुका है।

पुरस्कृत बच्चों को उपराष्ट्रपति श्री भैरों सिंह शेखावत से उनके घर ले जाकर आशीर्वाद दिलाया गया। समारोह में सम्मानित होने वाले छात्र-छात्राओं के नाम हैं- ऐमोकै तौके (रोमानिया), पुलकित शर्मा (यू.के.), अंद्रैया रौजावैल्जी (हंगरी), वरुण राज शर्मा (यू.के.), विओलेता चिबूक (रोमानिया), वान्या उर्लिचिच (क्रोएशिया), अमृत अमरनाथ (यू.के.), तात्याना कपिलोवा (रूस) और बरकाया माया (रूस)। इसके अलावा अक्षरम् युवा कविता प्रतियोगिता 2005 के पुरस्कृत प्रतियोगी सुश्री गायत्री आर्य और डा. अनुज अग्रवाल को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में ब्रिटेन में भारत के पूर्व राजदूत एवं सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता श्री लक्ष्मीमल्ल सिंघवी उपस्थित थे। इस अवसर पर प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक एवं सांसद श्याम बेनेगल, सांसद प्रभा ठाकुर, जय प्रकाश अग्रवाल, हरियाणा साहित्य अकादमी के सचिव राधेश्याम शर्मा समेत अनेक हिंदी प्रेमी और विद्वज्जन उपस्थित थे। द प्रतिनिधि

केरल

बंगलादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने कहा-

भारत में समान नागरिक संहिता हो

0 इस्लाम में सुधार लाना जरूरी

0 इस्लामी कट्टरवाद के खिलाफ लड़ती रहूंगी

– प्रदीप कुमार

बंगलादेश से निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन पिछले दिनों केरल में थीं। यहां एक साहित्यिक कार्यक्रम में भाग लेते हुए उन्होंने जहां इस्लामी कट्टरवाद, जिहादी आतंकवाद की जमकर आलोचना की, वहीं भारत में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता भी जताई। तस्लीमा अपने सुधारवादी विचारों के कारण मुल्ला-मौलवियों के गुस्से का शिकार होकर पिछले 12 वर्षों से निर्वासित जीवन जी रही हैं। इस दौरान वे जर्मनी, स्वीडन और भारत आती-जाती रही हैं। भारत ने उनका वीसा 6 महीनों के लिए बढ़ा दिया है। तस्लीमा कहती हैं कि वे भारत को अपना दूसरा घर बनाना चाहेंगी और प. बंगाल में रहेंगी क्योंकि वहां के लोग उनकी भाषा बोलते हैं। त्रिशूर में साहित्य अकादमी सभागार में मलयालम में अनुवादित अपनी विवादित पुस्तक लज्जा व अन्य रचनाओं के लोकार्पण कार्यक्रम में तस्लीमा ने कहा कि “सदियों से बंगलादेशी महिलाएं अन्याय और भेेदभाव का शिकार होती आ रही हैं। इसके खिलाफ सतत् संघर्ष जरूरी है।” मुस्लिम जमात काउंसिल की धमकियों के कारण यह कार्यक्रम कड़ी सुरक्षा में सम्पन्न हुआ था। पुस्तकों का लोकार्पण किया प्रसिद्ध मलयालम लेखक-आलोचक श्री सुकुमार एझीकोड ने। उन्होंने तस्लीमा को महाभारत के वीर अभिमन्यु की संज्ञा दी जिसने दुश्मनों से घिरे होने के बावजूद हार नहीं मानी थी।

तिरुअनंतपुरम प्रेस क्लब में “लेखक से मिलिए” कार्यक्रम में तस्लीमा ने कहा कि भारत जैसे पंथनिरपेक्ष राष्ट्र में पांथिक समानता और महिलाओं के प्रति न्याय सुनिश्चित करने के लिए समान नागरिक संहिता जरूरी है। तस्लीमा, जो इस्लाम को गैर सुधारवादी और इस्लामी कानूनों को असमानता पर आधारित मानती हैं, ने कहा कि राज्य को पंथ से अलग रखना चाहिए क्योंकि पंथ एक व्यक्तिगत विषय है। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र और मजहबी कानून साथ-साथ नहीं चल सकते। लोकतंत्र का अर्थ है सबके लिए लोकतंत्र।” उनके अनुसार, “कुरान की आयतें समय के साथ पुरानी हो गई हैं। इस्लाम को बदलने के लिए सुधारों और क्रांति की जरूरत है। मुसलमान अब भी 7वीं सदी के कानूनों पर चल रहे हैं। मजहबी पुस्तकें तो इतिहास हैं। हमें आज इस्लाम पर क्यों चलना चाहिए? एक अच्छा इनसान होने के लिए आपको मजहब की जरूरत नहीं है।”

जिहाद को एक प्रकार की मूर्खता कहने वाली यह चर्चित बंगलादेशी लेखिका मजहबी तालीम दिए जाने के खिलाफ हैं। केरल में तस्लीमा को मुस्लिम जमात काउंसिल का विरोध झेलना पड़ा। मस्जिद कमेटियों की मुख्य संस्था जमात ने सरकार से मांग की कि तस्लीमा को वापस कोलकाता भेजा जाए। मीडिया द्वारा तस्लीमा को खासा प्रचार दिए जाने पर जमात वाले नाराज थे। तस्लीमा ने कमला दास से कमला सुरैया बनीं, मलयालम लेखिका से कोच्चि में भेंट करने के बाद कहा कि कमला सुरैया ने हिन्दुत्व को छोड़कर इस्लाम में शरण ली, जो उनकी एक भूल है। उन्होंने कहा कि सुरैया को अब यह समझ में आने लगा है कि इस्लाम महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं देता। तस्लीमा ने इस्लाम कबूलने के संदर्भ में सुरैया से पूछा कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया तो सुरैया खामोश रहीं। उन्होंने फिर पूछा कि क्या अपने फैसले पर वे पछता रही हैं? सुरैया ने कहा, “हां”। तस्लीमा ने पत्रकारों को कहा कि सुरैया एक तरह से पिंजरे में कैद हो गई हैं। उन्हें आजाद होकर अपनी तरह का जीवन जीना चाहिए। इस्लाम में सुधार के अनेक लोगों के प्रयास असफल रहे हैं। इसमें सुधार आता नहीं दिखता।

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