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बंगलादेश के हिन्दू

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Sep 7, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Sep 2006 00:00:00

हमलों के बीच धर्मनिष्ठा-बंगलादेश से लौटकर तरुण विजयबंगलादेश के बारे में दो पहलुओं से सोचा जा सकता है। एक, वहां के हिन्दुओं पर विभाजन के बाद से लगातार अत्याचार बढ़े हैं। 1947 में 29.7 प्रतिशत हिन्दू आबादी आज 10 प्रतिशत से कम पर सिमट आई है। राज चाहे अवामी लीग का रहा हो या खालिदा जिया की बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी- जमायते इस्लामी गठबंधन का, हिन्दुओं पर विपदाओं का कोई अंत नहीं। बल्कि वर्तमान सरकार के शासन में जिहादी तत्व और अधिक बलवान तथा सक्रिय हुए हैं। दूसरा पहलू है इन तमाम विपदाओं और भयाक्रांत करने वाले वातावरण के बावजूद वहां के हिन्दू समाज और सरकार में निरंतर घटती जा रही अपनी स्थिति बचाने के लिए संगठन और संघर्ष के लिए सिद्ध हैं। उनका कहना है कि अब तक हम पर अत्याचार ही हुए हैं, हमें मारा ही है। अगर मरना ही है तो संघर्ष करते हुए अपनी जगह बनाने के रास्ते में बलिदान देना क्या बुरा है?खालिदा जिया के पिछले चार वर्षों के शासनकाल में हिन्दुओं की हत्याएं, हिन्दू महिलाओं से बलात्कार, लूटपाट, उनकी जमीनें छीनना, अपहरण, बलात मतांतरण आदि की ग्यारह सौ से अधिक ऐसी घटनाएं हैं जिनके दस्तावेजी प्रमाण मौजूद हैं। घटना का प्रकार, पुलिस थाने में रपट, घटना की तारीख और घटना के शिकार व्यक्तियों के नाम और पते। उनमें से शायद ही किसी पर निर्णायक कार्रवाई हुई हो। बंगलादेश के प्रसिद्ध साहित्यकार और मानवाधिकारवादी श्री शहरयार कबीर ने तीन खंडों में मुख्यत: बंगलादेशी हिन्दुओं पर हो रहे भीषण अत्याचारों का दस्तावेज तैयार किया है। उनमें से प्रत्येक खंड 550 पृष्ठों का है जिसमें खालिदा जिया के शासनकाल के वर्तमान पन्द्रह सौ दिनों में बंगलादेशी अल्पसंख्यकों, जिनमें हिन्दुओं की ही संख्या अधिक है, पर लोमहर्षक अत्याचारों का विस्तार से विवरण दिया है। ये तीनों खंड बंगला भाषा में हैं। आशा की जानी चाहिए कि भारत का कोई प्रकाशन संस्थान इन तीनों खंडों का अंग्रेजी तथा हिन्दी में भी अनुवाद प्रस्तुत करेगा।बंगलादेश में ढाई करोड़ के लगभग अल्पसंख्यक हैं जिनमें हिन्दुओं की संख्या लगभग एक करोड़ से अधिक है, परंतु सभी हिन्दू अलग-अलग जगहों पर बिखरे हुए हैं। बंगलादेशी संसद के 304 निर्वाचन क्षेत्रों में से 60 ऐसे निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां हिन्दू निर्णायक स्थिति में हैं पर चाहे अवामी लीग हो या बीएनपी, वे इन स्थानों पर भी मुसलमान उम्मीदवार ही खड़े करते हैं। 304 सांसदों में से केवल 7 हिन्दू हैं और बंगलादेश सरकार में एक भी हिन्दू कैबिनेट मंत्री नहीं है। एक उपमंत्री और एक सह मंत्री जरूर बनाए गए हैं जिनमें से एक बौद्ध हैं लेकिन वे सार्वजनिक रूप से शिकायत करते हैं कि उनके पास कोई फाइल हस्ताक्षर तक के लिए नहीं भेजी जाती। यानी ढाई करोड़ अल्पसंख्यकों में से एक भी कैबिनेट मंत्री नहीं है। राष्ट्रपति भवन, सचिवालय, प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, गुप्तचर ब्यूरो तथा इस प्रकार के अन्य महत्वपूर्ण मंत्रालयों और विभागों में किसी हिन्दू को चपरासी तक की नौकरी नहीं दी जाती है। किसी भी राजनीतिक दल के महत्वपूर्ण पद पर कोई हिन्दू नहीं बिठाया जाता। नाममात्र के लिए यदि कोई सजावटी पद दिया भी जाता है तो उसका कोई अर्थ नहीं रहता। बंगलादेश के विभिन्न कोनों, किनारों तथा गांवों और नगरों में थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद हिन्दुओं पर जो हमले होते हैं उन्हें राजनीतिक विद्वेषजनित या आपराधिक आतंकवादी हमले करार देकर इनके साम्प्रदायिक रूप को दबाया जाता है। सामान्यत: हिन्दू विश्वविद्यालयों में अध्यापन, चिकित्सा एवं इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में प्रयास करते हैं परंतु वहां भी अच्छे अंक पाने के बावजूद कोशिश की जाती है कि उन्हें कम से कम सरकारी नियुक्ति न मिले।यह स्थिति दारुण है। बंगलादेशी हिन्दू भारत के हिन्दुओं से किसी भी प्रकार की आशा करना छोड़ चुके हैं। उनका कहना है कि भारत के हिन्दू स्वार्थी और हिन्दू हितों से गद्दारी करने वाले हैं। विभाजन हो या बाबरी ढांचे का ढहाया जाना, भारत की हर घटना का बंगलादेशी हिन्दुओं ने अपने प्राण, सम्पत्ति और इज्जत लुटाकर मोल चुकाया है। लेकिन भारत के कितने हिन्दू संगठन या हिन्दू राजनीतिज्ञ बंगलादेशी हिन्दुओं के बारे में सोचते हैं? विडम्बना यह है कि ईसाई बहुल यूरोपीय देश तथा अमरीका के राजदूत बंगलादेशी हिन्दुओं के बारे में खुलकर बोलते हैं और उनकी स्थिति सुधारने के लिए बंगलादेश सरकार पर दबाव डालते हैं। यूरोपीय देशों के राजदूत बंगलादेश में अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचारों के बारे में इतने मुखर हैं कि उनके कारण अनेक जिहादियों को गिरफ्तार किया गया है और बंगलादेश के विदेश मंत्री ने तंग आकर इन राजदूतों पर बंगलादेशी मामलों में दखल तक के आरोप लगाए हैं। लेकिन भारत में चाहे भाजपा के नेतृत्व में सरकार रही हो या वर्तमान में कांग्रेस नीत सरकार, वहां के अल्पसंख्यकों पर अत्याचारों के संदर्भ में एक शब्द भी बोलना “सेकुलर पाप” समझा जाता है। बंगलादेश के हिन्दू मानवाधिकारवादी नेताओं ने कहा कि भारत में भाजपा नीत सरकार के समय बंगलादेश में अवामी लीग की सरकार थी, जो भारत मित्र मानी जाती थी। उस दौरान भारत के अनेक सर्वोच्च अधिकारी और राजग के नेता बंगलादेश की यात्रा पर आए लेकिन ढाका आने पर उन्होंने किसी भी बंगलादेशी हिन्दू नेता से मिलना उचित नहीं समझा। यहां तक कि वे बंगलादेश के पर्यटन स्थलों पर गए लेकिन ढाकेश्वरी मंदिर में आने का उनमें से किसी को भी समय नहीं मिला। जबकि बंगलादेश के किसी भी राजनीतिक दल का कोई भी नेता जब भारत जाता है तो वह अजमेर शरीफ और दिल्ली में निजामुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर नि:संकोच भाव से जरूर जाता है। भारत के राजनेताओं के इस प्रकार के रवैये को देखकर बंगलादेश के अल्पसंख्यकों का भारत के प्रति अब विशेष आदर नहीं है। वे अपने कष्टों के समाधान के लिए यूरोप के ईसाई देशों की ओर देखना अधिक परिणामकारी मानते हैं।बंगलादेश में हिन्दू बौद्ध क्रिश्चिन ऐक्य परिषद् एक महत्वपूर्ण मानवाधिकारवादी संगठन के रूप में सामने आया है। इसके अध्यक्ष बंगलादेश सेना के पूर्व मेजर जनरल चित्तरंजन दत्त हैं। उनका कहना है कि हम बंगलादेश में सर्व पंथ समभावी सेकुलर लोकतांत्रिक राष्ट्रवादी एवं समाज के सभी वर्गों के लिए समान रुप से प्रतिबद्व सरकार चाहते हैं और इसलिए बंगलादेश के वर्तमान संविधान में परिवर्तन कर उसे 1971 में बनाए गए संविधान के अनुरूप बनाना चाहते हैं। वर्तमान संविधान में इस्लाम को बंगलादेश का राजकीय मजहब घोषित किया गया है और संविधान का प्रारंभ बिस्मिल्लाह उर-रहमान रहीम से किया गया है। इस संविधान में ऐसे अनेक शत्रुतापूर्ण संशोधन किए गए हैं जिनके कारण बंगलादेशी हिन्दुओं की सम्पत्ति पर सरकारी कब्जा किया जाता है और गैर मुस्लिमों को समान अवसरों से वंचित किया गया है।ऐक्य परिषद् द्वारा पिछले चार वर्षों में बंगलादेश में अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों का सिलसिलेवार वार्षिक दस्तावेज तैयार किया गया है जो अंग्रेजी में है। इसके पहले पृष्ठ की ही सारणी देखने से पता चलता है कि स्थिति कितनी भयानक है।बंगलादेश सरकार के मंत्रिमंडल में 60 मंत्री हैं जिनमें एक भी हिन्दू कैबिनेट मंत्री नहीं। संसद में 345 स्थान हैं, इनमें से 45 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। 45 महिला सांसदों में एक भी महिला हिन्दू नहीं है। और न ही अवामी लीग और बीएनपी ने किसी हिन्दू महिला को सांसद बनने लायक समझा। 300 सांसदों में से बीएनपी के तीन और अवामी लीग के चार गैर मुस्लिम सांसद हैं, इनमें से बीएनपी की ओर से 2 हिन्दू तथा एक बौद्ध तथा अवामी लीग की ओर से 2 हिन्दू, एक ईसाई और एक बौद्ध है।दुनिया के विभिन्न देशों में बंगलादेश के 140 राजदूत हैं, उनमें से एक भी हिन्दू राजदूत नहीं है। सरकार के किसी भी आयोग तथा निगम का कोई अध्यक्ष हिन्दू नहीं है। किसी भी बैंक या सरकारी निकाय का एक भी हिन्दू प्रबंध निदेशक नहीं है।चटगांव में कुछ समय पहले पुलिस इंस्पेक्टरों की भर्ती के लिए परीक्षाएं हुईं। उनमें से प्रथम 10 स्थान गैर मुस्लिमों ने प्राप्त किए। वे सभी साक्षात्कार में किसी न किसी बहाने असफल कर दिए गए।सरकार ने भ्रष्टाचार समाप्ति के लिए गठित दुर्नीति दमन ब्यूरो को पुनर्गठित किया और निरपेक्ष भ्रष्टाचार निरोधक आयोग (न्यूट्रल एंटी करप्शन कमीशन) बनाया। नये आयोग में दुर्नीति दमन ब्यूरो के लगभग सभी कर्मचारी वापस लिए गए। उक्त ब्यूरो में 25 हिन्दू कर्मचारी थे, उन सभी 25 को नये आयोग में नियुक्ति देने से मना कर दिया गया। वे अदालत में गए और उन्होंने स्थगनादेश प्राप्त किया।हिन्दुओं को व्यापार करने में भी दिक्कतें आती हैं। बैंक में निर्यात के लिए लैटर आफ क्रेडिट देते समय बैंक मैनेजर हिन्दुओं से सौ प्रतिशत डिपोजिट मांगता है जबकि मुस्लिमों को दस प्रतिशत डिपोजिट पर ही एल.सी. दे दी जाती है!!बंगलादेश सरकार में एक भी सचिव स्तर का अधिकारी हिन्दू नहीं है। बंगलादेश में 8 सरकारी तथा 50 निजी विश्वविद्यालय हैं। किसी भी विश्वविद्यालय में कोई हिन्दू कुलपति या उप कुलपति नहीं है।सरकारी विद्यालयों में इस्लामी तालीम भी दी जाती है, लेकिन हिन्दू विद्यार्थियों के लिए हिन्दू धर्म की शिक्षा का भी प्रावधान है। अधिकांश विद्यालयों में हिन्दू धर्म की शिक्षा भी मुस्लिम प्राध्यापकों द्वारा दी जाती है, जिन्हें हिन्दू धर्म के बारे में बहुत कम जानकारी होती है।हालांकि अवामी लीग के बारे में धारणा है कि वह भारत मित्र है और बंगलादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की आवाज भी मुखर करती है। पर 1996 और 2001 के मध्य उसकी सरकार के समय भी अवामी लीग ने किसी हिन्दू को कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया। फिर स्वाधीनता स्तंभ के लिए ढाका में रमणाकाली मंदिर और मां आनंदमयी आश्रम की देवोत्तर भूमि का भी हिस्सा ले लिया। उल्लेखनीय है कि ये दोनों हिन्दू श्रद्धा केन्द्र 1971 में पाकिस्तानी सेना द्वारा बुलडोजर द्वारा नष्ट कर दिए गए थे। अवामी लीग सरकार के समय भी यहां रमणाकाली मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं किया गया।बंगलादेश सर्वोच्च न्यायालय के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सुब्रातो चौधरी का कहना है कि बंगलादेश के संशोधित संविधान द्वारा अल्पसंख्यकों पर जबरन इस्लामी मूल्य थोपे गए हैं। 1947 से 71 तक बंगलादेश के अल्पसंख्यकों ने पाकिस्तान के दमन, दुर्नीति और मजहबी अत्याचारों का सामना किया। 1971 में बंगलादेश के अल्पसंख्यक मुक्ति योद्धा हुए और उन्होंने मुक्ति संग्राम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। शेख मुजीबुर्रहमान की सरकार ने बंगलादेश में लोकतंत्र, सेकुलरवाद, राष्ट्रवाद और समाजवाद के आधार पर शासन चलाने का संकल्प किया था और उन्होंने चार अधिष्ठानों पर संविधान निर्मित किया था। लेकिन मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद जिया उर रहमान के फौजी शासन में संविधान को बदला गया और उसकी शुरुआत बिस्मिल्लाह उर- रहमान रहीम से की गई। जिया के शासन में तीव्र गति से इस्लामीकरण हुआ। जिया उर रहमान पाकिस्तान परस्त फौजी शासक थे। उन्होंने शासन संभालते ही पश्चिमी पाकिस्तान में जितने बंगाली सैनिक थे उन्हें बंगलादेशी सेना में भर्ती कर लिया। संविधान के पांचवें संशोधन द्वारा जिया उर रहमान के फौजी शासन में किए गए सभी गैरकानूनी संशोधन स्वीकार कर लिए गए। जिया उर रहमान के बाद फिर सत्ता पलट हुआ और जिया उल हक ने सत्ता संभाली तथा संविधान में आठवें संशोधन द्वारा इस्लाम को राजकीय मजहब के रुप में स्वीकार किया गया।श्री सुब्रात चौधरी कहते हैं कि इस बीच ढाका उच्च न्यायालय ने मून सिनेमाहाल मामले में दिए गए अपने फैसले में पांचवें संशोधन को अवैध करार दिया और कहा कि लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार हटाकर जिया उर रहमान द्वारा स्थापित सरकार और तदंतर किए गए संविधान संशोधन अवैध हैं। लेकिन विचित्र बात यह रही कि इस निर्णय में यह भी कहा गया कि जिया शासन के दौरान उक्त अवैध संशोधन के अन्तर्गत सभी कार्य वैध मान लिए गए।श्री सुब्रात चौधरी कहते हैं कि बंगलादेश के अल्पसंख्यकों पर सबसे भयानक तलवार वेस्टेड प्रोपर्टी एक्ट (अर्पितो सम्पत्ति अधिनियम)की है। हालांकि कानूनी दृष्टि से यह अधिनियम मृत हो चुका है, इसके बावजूद इसका सहारा लेकर जहां-तहां हिन्दुओं की सम्पत्ति सरकारी नियंत्रण में ली जा रही है। उनके अनुसार मूलत: यह अधिनियम भारत के साथ 1965 में हुए युद्ध के समय पूर्वी पाकिस्तान छोड़कर गए लोगों की सम्पत्ति की रक्षा के लिए बनाया गया था और इस अधिनियम का प्रभावकाल 6 सितम्बर 1965 (6 सितम्बर को युद्ध प्रारंभ हुआ) से लेकर 16 फरवरी 1969 तक माना जाता है। इस अवधि के दौरान युद्ध के कारण पूर्वी पाकिस्तान छोड़कर गए लोगों की केवल व्यापारिक सम्पत्ति ही सरकार द्वारा उन लोगों के वापस आने तक सुरक्षा की दृष्टि से अपने नियंत्रण में रखे जाने का प्रावधान है। इस अधिनियम के अन्तर्गत कृषि योग्य भूमि या घर को नियंत्रण में नहीं लिया जा सकता। लेकिन वास्तविक स्थिति यह है कि इस अधिनियम का प्रयोग आज की तारीख तक केवल अल्पसंख्यकों की सम्पत्ति, घर और खेत सरकारी नियंत्रण में लेने के लिए किया जा रहा है। बंगलादेश में सम्पत्ति के संदर्भ में एक कानून सम्मत शब्द प्रयोग है- को-श्येरर। इसका अर्थ है भागीदार या सम्पत्ति में समान रूपेण हिस्सेदार। अजीब बात यह है कि बंगलादेश में अपने भाई-बहन, माता-पिता या किसी भी रिश्तेदार के हक में किसी उस हिन्दू द्वारा दाखिल की गई कोई भी पावर आफ अटार्नी मान्य नहीं है जो बंगालदेश से भारत चला आया है। अगर वह भारत के अलावा दुनिया के किसी भी अन्य देश में बस गया है केवल तब ही उसकी पावर आफ अटार्नी स्वीकार की जाएगी, यह विचित्र प्रावधान है। श्री सुब्रात चौधरी बताते हैं कि पावर आफ अटार्नी के संदर्भ में भारत और बंगलादेश के मध्य कोई समझौता नहीं है। श्री चौधरी के अनुसार वेस्टेड प्रोपर्टी एक्ट को बंगलादेश उच्च न्यायालय (बंगलादेश में केवल एक उच्च न्यायालय और एक सर्वोच्च न्यायालय है जिनके अधिकार और कार्यक्षेत्र बांट दिए गए हैं क्योंकि बंगलादेश भारत की तरह संघीय गणराज्य नहीं बल्कि एक केन्द्रीय राज्य व्यवस्था के अन्तर्गत संचालित होता है।) द्वारा मृत घोषित किया गया है। इसके बावजूद इसका सहारा लेकर पिछले दिनों सिल्हट में वहां के सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और “47 से पूर्व कांग्रेस के नेता रहे सिंह बाबू के परिवार की पूरी सम्पत्ति और मकान पर सरकार ने कब्जा लिया और उस सम्पत्ति को 2004 में स्थानीय प्रशासन द्वारा एक मुस्लिम को लीज पर दिए जाने की कोशिश की गई थी । फिलहाल उस पर अदालत से स्थगनादेश प्राप्त किया गया है परंतु सिल्हट का सिंह परिवार इस कारण काफी मानसिक संताप में जी रहा है।इस अधिग्रहण के विरुद्ध पूरे सिल्हट में हिन्दुओं द्वारा हड़ताल की गई। पोस्टर चिपकाए गए, पेम्फलेट बांटे गए। वे इतनी ही हिम्मत दिखा सकते हैं। लेकिन सवाल है कि इसके बावजूद भी कोई सुनवाई न हो तो कोई क्या करे?अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त और ढाका विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर श्री गोविंद देव को 1971 में पाकिस्तानी सेना ने गोली मार दी थी। वे ढाका विश्वविद्यालय के हिन्दू छात्रों और अध्यापकों के संकुल जगन्नाथ हाल में रहते थे और मूलत: सिल्हट के निवासी थे। हालांकि आज भी सिल्हट में उनका परिवार रह रहा है, लेकिन उनकी पूरी सम्पत्ति को सरकार ने वेस्टेड प्रोपर्टी एक्ट के अंतर्गत अपने कब्जे में कर लिया है। इसी प्रकार अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ीं स्वतंत्रता सेनानी सुहासिनी देवी की पैतृक सम्पत्ति को अप्रैल, 2006 में सरकारी कब्जे में कर लिया गया।फरवरी, 2005 में कुश्तिया में पाल परिवार की सम्पत्ति को वेस्टेड प्रोपर्टी एक्ट के अन्तर्गत लाकर बीएनपी के राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं को लीज पर दे दिया गया। फैनी जिले में एक हिन्दू भक्त द्वारा अपनी सम्पत्ति स्थानीय बांसवाड़ा दुर्गावाड़ी के काम के लिए दान में देने के बाद वह सम्पत्ति सरकार ने वेस्टेड प्रोपर्टी एक्ट के अन्तर्गत अपने कब्जे में करने की घोषणा करते हुए दानदाता के विरुद्ध एक आपराधिक मामला दर्ज कर दिया, जिसमें कहा गया कि आपने सरकारी भूमि पर गैरकानूनी कब्जा कर लिया था।8

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