गहरे पानी पैठ
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गहरे पानी पैठ

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Sep 7, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Sep 2006 00:00:00

आतंकवादियों के विदेशी आका

उत्तर-पूर्वी राज्यों में सुरक्षाबलों की सख्ती से जब विद्रोही गुटों के पैर लड़खड़ाने लगे तो सीमा पार बैठे उनके आकाओं का परेशान होना स्वाभाविक ही था। पुष्ट सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों बंगलादेश के एक बड़े आतंकवादी गुट ने, जो त्रिपुरा के एन.एल.एफ.टी. और ए.टी.टी.एफ. को हथियार देकर भारत को तोड़ने में जुटा था, उक्त दोनों गुटों को आपस में एक होकर नए सिरे से आतंक फैलाने के निर्देश दिए। इस बंगलादेशी गुट, जिसे आई.एस.आई. का संरक्षण प्राप्त है, का दीर्घकालीन लक्ष्य यही है कि पूर्वोत्तर में इतनी अराजकता फैला दी जाए कि भारतीय सुरक्षा बल यहां अधिक व्यस्त हो जाएं, ताकि कश्मीर में आतंकवादी सुगमता से गतिविधियां चला सकें। लेकिन त्रिपुरा के दोनों विद्रोही गुटों का मेल नहीं हो पाया बल्कि इस बात का खुलासा जरूर हो गया कि किस तरह एन.एल.एफ.टी. न केवल ईसाई मिशनरियों बल्कि विदेश में बैठे अपने आकाओं के हाथों का खिलौना बना हुआ है। सूत्रों के अनुसार कुछ समय पहले बंगलादेश के चटगांव हिल्स जिले में सातछड़ी नामक स्थान पर एन.एल.एफ.टी. और ए.टी.टी.एफ. के प्रमुख नेताओं की गुप्त बैठक में विलय संबंधी बातचीत हुई थी। लेकिन ईसाई बहुल वाले एन.एल.एफ.टी. गुट को जनजातीय बहुल ए.टी.टी.एफ. से मिलना रास नहीं आया। इस गुट के शीर्ष नेता जानबोर देववर्मा और तपन कलाई ईसाई हैं। इन पर ईसाई मिशनरियों के विदेशी आकाओं के प्रभाव की पुष्टि पिछले साल तब भी हुई थी जब एन.एल.एफ.टी. के शीर्ष नेताओं-मंटू कलाई, कामिनी देववर्मा, विष्णु प्रसाद जमातिया आदि ने हथियार डालकर आम जिंदगी स्वीकार की थी। राज्य पुलिस की विशेष शाखा द्वारा पूछताछ के दौरान इन्होंने स्वीकार किया था कि एन.एल.एफ.टी. पर विदेशी ईसाई तत्व हावी हैं। यही कारण है कि इस गुट के मौजूदा 90 प्रतिशत आतंकवादी ईसाई हैं। एक तथ्य यह भी है कि आज तक इस गुट ने कभी किसी चर्च या ईसाई नेता के प्रति न तो हिंसा की और न कभी जबरन धन उगाही ही की।

उत्कृष्ट जिहादी, निकृष्ट जिहादी

आजादी की बात करने वाले पृथकतावादी कश्मीरियों को कितनी “आजादी” मिलेगी, यह जानने के लिए उनकी मानसिकता समझना भर पर्याप्त है जो “कश्मीरियों की आजादी” के लिए तथाकथित “जिहाद” कर रहे हैं। जम्मू के कोट भलवाल में बंद देशी-विदेशी आतंकवादियों के बीच झड़प ने फिर पाकिस्तान की उस मानसिकता को उजागर कर दिया जो हिन्दुस्थानी मुसलमान को दोयम दर्जे का मानती है। पाकिस्तान व अन्य देशों के आतंकवादी जेल के भीतर बंद कश्मीरी आतंकवादियों पर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। वे अपने को आला दर्जे (उच्च स्तर) का मुसलमान मानते हैं और कश्मीरी यानी हिन्दुस्थानी मुसलमान को दोयम दर्जे (निचले स्तर) का। जब कुख्यात पाकिस्तानी आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर को कोट भलवाल जेल में रखा गया था तब कश्मीरी आतंकवादियों ने चुप रहने में ही भलाई समझी और विदेशी आतंकवादियों का जेल में बंद कैदियों पर वर्चस्व कायम हो गया। कंधार विमान अपहरण काण्ड में जेल से रिहा किए जाने के बाद 1999 में मसूद अजहर पाकिस्तान पहुंच गया और वहां उसने जैश ए मोहम्मद का गठन कर लिया और यहां जेल में उसके नजदीकी गुर्गों ने कब्जा जमा लिया। लेकिन अब कश्मीरी आतंकवादियों को पाकिस्तानी आतंकवादियों की दादागिरी सहन नहीं हो रही है इसलिए जेल में आए दिन झड़प होती है। देशी-विदेशी आतंकवादियों के बीच कुछ मुद्दों को लेकर मतभेद भी हैं, जैसे पर्यटकों पर हमला और सूफी संत फाकिर अहद पर हमला। इसी कारण कश्मीरी आतंकवादियों ने पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा जेल के भीतर नियमित रूप से आयोजित बैठक में भी हिस्सा लेना बंद कर दिया। क्योंकि उस बैठक में पाकिस्तानी आतंकवादी हिन्दुस्थानी मुसलमानों की यह कहकर निंदा करते थे कि वे खुलकर जिहादियों का साथ नहीं दे रहे हैं। 27 जून को हुई ऐसी ही एक झड़प में जमकर पथराव हुआ जिसमें 7 कैदी घायल हो गए। झगड़े की शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जेल के भीतर राहिल हाशमी को अपना नेता चुना। इसे चुनौती देते हुए कश्मीरी आतंकवादियों ने मोहम्मद अल्ताफ को अपना नेता चुन लिया। पाकिस्तानी आतंकवादियों को कश्मीरियों की यह चुनौती बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने हमला बोल दिया। क्या अब भी कश्मीरी मुसलमान समझेंगे “पाकिस्तानी जिहादियों” की मानसिकता?

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