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पंचनद शोध संस्थान, चण्डीगढ़ द्वारा "हिन्दुत्व की प्रासंगिकता" विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा-

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Aug 10, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Aug 2006 00:00:00

हिन्दुत्व नैतिक मूल्यों का समुच्चयगत 17 सितम्बर को चण्डीगढ़ में पंचनद शोध संस्थान की ओर से “हिन्दुत्व की प्रासंगिकता” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में चण्डीगढ़ के 800 से अधिक गण्यमान्य नागरिकों एवं बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।संगोष्ठी को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रवक्ता एवं दैनिक तरुण भारत के पूर्व सम्पादक श्री माधव गोविन्द वैद्य ने कहा, “हिन्दुत्व का गौरवपूर्ण अतीत रहा है। यह वर्तमान काल में भी प्रासंगिक है और भविष्य में भी रहेगा। हिन्दुत्व के वैयक्तिक, सामाजिक-राष्ट्रीय, वैश्विक और आध्यात्मिक आयाम हैं। इन्हें समग्र रूप में देखने से ही हिन्दुत्व को सही रूप में समझा जा सकता है। जो 15 अगस्त, 1947 को एक राष्ट्र के रूप में भारत का उदय देखते हैं, उन्हें भारत की सही पहचान नहीं है। भारत एक प्राचीन राष्ट्र था और है।”इस अवसर पर पंजाब एवं हरियाणा के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम. रामा जायस ने कहा कि हिन्दुत्व कोई सम्प्रदाय या पूजा पद्धति नहीं, वरन् यह सम्पूर्ण मानवता के भौतिक एवं आध्यात्मिक सुख की कामना करने वाला श्रेष्ठ दर्शन है, एक जीवन पद्धति है। उन्होंने 1984 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए एक निर्णय को उद्धृत करते हुए कहा, “यह रोचक वास्तविकता है कि भारत किसी एक भाषा के आधार पर अथवा किसी एक शासन या राज्य की सीमाओं के कारण एक राष्ट्र नहीं बना, वरन् यह सदियों की सांझी सांस्कृतिक विरासत के कारण एक राष्ट्र के रूप में खड़ा हुआ।”पंचनद शोध संस्थान के संस्थापक सदस्य, श्री गुरुजी जन्मशताब्दी समारोह समिति के यहां सचिव एवं रा.स्व.संघ उत्तर क्षेत्र के क्षेत्र संघचालक डा. बजरंग लाल गुप्त ने समारोह में कहा कि क्वाण्टम सिद्धान्त ने इस हिन्दू अवधारणा को सही सिद्ध किया है कि एक ही पराशक्ति सम्पूर्ण ब्राह्मांड में प्रकट हो रही है। जहां पाश्चात्य दर्शन संपूर्ण संसार को बाजार के रूप में देखता है, वहीं हिन्दू दर्शन समूचे संसार को परिवार के रूप में देखता है।इस अवसर पर प्रख्यात समाज वैज्ञानिक प्रो. अजहर हाशमी ने कहा कि कुछ तत्व अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए हिन्दुत्व के महान दर्शन को विकृत कर रहे हैं। हिन्दुत्व सभी मत-पंथों के प्रति अपनी समादर दृष्टि के कारण न केवल भारत, वरन् सम्पूर्ण विश्व में प्रासंगिक है। यह केवल एक धर्म-मत नहीं, वरन् सम्पूर्ण मानवता को एकसूत्र में जोड़े रखने वाले नैतिक मूल्यों का समुच्चय है। संगोष्ठी में स्वागत भाषण पंचनद शोध संस्थान के अध्यक्ष श्री श्याम खोसला ने दिया। प्रतिनिधि32

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