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मैंने 42 हिन्दुओं को मारा, उसके बाद गिनना छोड़ दिया?

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Aug 10, 2006, 12:00 am IST
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दिंनाक: 10 Aug 2006 00:00:00

यह कहने वाला आतंकवादी बिट्टा रिहा

-खजूरिया एस. कान्त

अफजल को फांसी, सेकुलर परेशान

13 दिसम्बर, 2001 को संसद भवन पर हुए आतंकवादी हमले की साजिश में शामिल सोपोर (कश्मीर) निवासी मो. अफजल को 20 अक्तूबर, 2006 को तिहाड़ जेल में फांसी दी जाएगी। उल्लेखनीय है कि 18 दिसम्बर, 2002 को विशेष अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई थी। इस निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। 31 जनवरी, 2003 को उच्च न्यायालय में अपील खारिज हुई, तो अफजल सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा। वहां भी उसे राहत नहीं मिली। इसके बाद 26 सितम्बर, 2006 को फांसी की तारीख तय की गई। यह तारीख तय होते ही दिल्ली में सेकुलर ब्रिगेड सक्रिय हुआ, तो श्रीनगर में मुसलमानों ने इसके विरोध में भारी तोड़फोड़ की। उपद्रवियों का नेतृत्व जे.के.एल.एफ. प्रमुख यासीन मलिक ने किया। सेकुलर अखबार एवं चैनल अफजल के छोटे-छोटे बच्चों, पत्नी और अन्य रिश्तेदारों के रोते-बिलखते चित्र दिखाकर उसके प्रति सहानुभूति पैदा करने की कोशिश भी कर रहे हैं। पता यह भी चला है कि कुछ सेकुलर अफजल की पत्नी को “माफीनामा” लेकर राष्ट्रपति के पास भेजने की तैयारी कर रहे हैं। हिंसा व आतंक के पर्याय आतंकवादियों के लिए “दया छाप पार्टी” के लोग 20 अक्तूबर तक क्या-क्या गुल खिलाते हैं, बस देखते ही रहिए। प्रतिनिधि

आतंकवाद के प्रति केन्द्र और राज्य सरकार की नरम नीतियों का ही यह परिणाम है कि जघन्य अपराधों में लिप्त आतंकवादी जेलों से रिहा होते जा रहा हैं। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के आतंकवादी फारुक डार उर्फ बिट्टा कराटे को भी रिहा किया जा रहा है। राज्य सरकार इस आतंकवादी के विरुद्ध कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं कर पायी है। इस कारण गत दिनों उच्चतम न्यायालय ने जन रक्षा निरोधक आदेश को तीसरी बार रद्द कर दिया। जन रक्षा अधिनियम के अन्तर्गत ही बिट्टा कराटे को 1999 में पुन: गिरफ्तार किया गया था।

गत 17 सितम्बर को जम्मू-कश्मीर विचार मंच ने बिट्टा की रिहाई के विरोध में जम्मू में जोरदार प्रदर्शन करते हुए राज्य एवं केन्द्र सरकार को आड़े हाथों लिया। विचार मंच के नेताओं का कहना था कि जिस बिट्टा ने 1990 में दूरदर्शन से साक्षात्कार के दौरान कहा था, “मैंने 42 हिन्दुओं को मारा और उसके बाद गिनना छोड़ दिया” उस आतंकवादी के विरुद्ध राज्य सरकार एक भी प्रमाण जुटा नहीं पायी या फिर उसने इस बारे में पहल करना उचित नहीं समझा।

जम्मू-कश्मीर विचार मंच के राष्ट्रीय महासचिव हीरालाल भट्ट ने पाञ्चजन्य को बताया कि बिट्टा कराटे एक जघन्य अपराधी है, उसे फांसी की सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि केवल कराटे ही नहीं, बल्कि पहले भी कई आतंकवादियों को रिहा किया जा चुका है। ऐसे में विस्थापित हिन्दुओं का मनोबल गिरेगा। बिट्टा कराटे ने ही कश्मीर के लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता सतीश टिक्कू की हत्या की थी।

श्रीनगर के रहने वाले बिट्टा कराटे को 1990 में गिरफ्तार किया गया था और उस समय राज्य के विभिन्न थानों में उसके विरुद्ध 22 मामले दर्ज थे। 1998 में सुनवाई के दौरान वह कई मामलों में बरी हो गया था और बाद में 1999 में जन रक्षा अधिनियम के तहत उसे फिर से गिरफ्तार किया गया था। जम्मू-कश्मीर सरकार में शामिल पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष प्रो. भीम सिंह ने उच्चतम न्यायालय में आतंकवादी बिट्टा कराटे का पक्ष रखा। उनका कहना है कि मैंने उसके मामले में बहस की और जन रक्षा निरोधक आदेश को रद्द करवा दिया। प्रो. सिंह की इस कार्रवाई से भी लोगों में आक्रोश है। लोगों के अनुसार, आतंकवाद के शुरुआती दौर में यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि बिट्टा कराटे जिस भी कश्मीरी हिन्दू का नाम पर्ची पर लिखता था, उसे कत्ल कर देता था। उसने खुलेआम दूरदर्शन पर कहा था कि कश्मीरी हिन्दू “तहरीक” के दुश्मन हैं और उन्हें मारना ही होगा। क्या प्रो. भीम सिंह इससे अनजान हैं?

यह कश्मीरी हिन्दुओं के साथ-साथ देश का भी दुर्भाग्य है कि जिस कातिल ने अपना अपराध सबके समक्ष स्वीकार किया, उसे न्यायालय साक्ष्यों के अभाव में सजा नहीं सुना पा रहा है। जम्मू-कश्मीर विचार मंच ने इस परिप्रेक्ष्य में एक अभियान चलाने का निर्णय लिया है, ताकि कराटे जैसे अपराधियों को सजा और प्रभावित परिवारों को न्याय मिल सके।

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