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राजनीति में शुचिता और साख के संकट की चुनौती स्वीकार हैभाजपा के वरिष्ठ नेता, जिनके विषय में घोषित किया गया कि वे अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे, मुम्बई अधिवेशन के दौरान कितने व्यस्त रहे होंगे इसकी कल्पना सहज है। परंतु उन्होंने समय निकाला और पाञ्चजन्य से बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उनके साथ हुई संक्षिप्त बातचीत के मुख्य अंश।- विशेष संवाददातास्वर्ण जयन्ती अधिवेशन में (बाएं से) श्री राजनाथ सिंह, श्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं श्री लालकृष्ण आडवाणीभाजपा की 25 वर्षों की यात्रा की फलश्रुति क्या रही?भाजपा की गत 25 वर्षों की यात्रा हर दृष्टि से सफल एवं परिणामदायक रही है। विश्व में बहुत कम ऐसे राजनीतिक दल होंगे जिन्होंने इतने कम समय में भाजपा जितनी ऊ़ंचाई प्राप्त की हो। हम हिन्दुत्व, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और एकात्म मानववाद से असंदिग्ध रूप से जुड़े रहते हुए यात्रा पथ पर अग्रसर हैं। हमने देखा है कि जहां कांग्रेस से कम्युनिस्टों तक प्रत्येक पार्टी छोटे-छोटे मुद्दों और अहंकारों-विवादों के कारण दो-तीन-चार-छह और यहां तक कि छह से अधिक तक दलों में विभाजित हो गईं, वहीं भाजपा विचारधारा की शक्ति के आधार पर एकजुट आगे बढ़ रही है।लेकिन अब तक तो भाजपा पर यही आरोप लगे हैं कि उसने विचारधारा को विरल किया, अपनी मूल धुरी से हटी और हिन्दुत्व के मामले में लज्जा और संकोच का प्रदर्शन किया?यह ठीक नहीं है। हिन्दुत्व के संदर्भ में हम सदैव दृढ़ तथा असंदिग्ध अभियान का भाव रखते रहे हैं। वैसे भी हिन्दुत्व के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद तो जो छद्म सेकुलर राजनीतिक दल हैं, उन्हें भी हिन्दुत्व के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करनी चाहिए।भाजपा का यह अधिवेशन अनेक कठिन और पीड़ादायक घटनाओं के साये में सम्पन्न हुआ है।हम इस संबंध में आश्वस्त हैं कि जिन घटनाओं की ओर आप संकेत कर रहे हैं वे एक गहरी साजिश का परिणाम हैं। और यह सब एक विशेष विचारधारा और वर्ग पर आघात करने के लिए किया जा रहा है। जल्दी ही यह कुहासा दूर होगा।भाजपा में अब कहा जाता है कि कार्यकर्ता तो ठीक हैं पर नेताओं को संभालिए। क्या पार्टी में राजनीतिक आचरण संबंधी भी कोई विचार हुआ?आचरण की शुद्धता और वैचारिक मजबूती पर हम कोई समझौता नहीं कर सकते। न ही इस संदर्भ में कभी कोताही बरती गई है। हम एक ऐसी कार्यकर्ता आधारित पार्टी हैं जो जनाधारित व्याप लेती गई है। इस कारण बहुत से ऐसे लोग भी आए जिनसे परेशानी हुई। इसलिए आचरण की शुद्धता के संदर्भ में हमें सावधानी बरतनी होगी और अनुशासन, समर्पण एवं सज्जनता पर विशेष जोर देना होगा। मैं यह स्पष्ट कहना चाहता हूं कि आज की राजनीति में शुचिता और विश्वसनीयता के संकट की चुनौती को स्वीकार करने की क्षमता केवल भाजपा में ही है। भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार और अनैतिकता की जन्मदाता कांग्रेस है और उसी ने इन दुर्गुणों को पाला-पोसा तथा बढ़ाया है।10
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