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– मुनव्वर राना, सुप्रसिद्ध शायर
दुबई के जिस मुशायरे में बशीर बद्र ने हिन्दुस्थान की बर्बादी वाली बात कही थी, उसमें मैं खुद मौजूद था। इस बात पर मैं उनके तीव्र विरोध के लिए खड़ा हो गया था। यह आज से कोई 4-5 साल पहले की बात है। उस मुशायरे में अहमद अजीम खातमी, शहजाद अहमद, मलिक जादा साहब सहित अनेक बड़े-बड़े शायर मौजूद थे। मुशायरे में जब स्मृति चिन्ह दिए जा रहे थे तो बातों-बातों में किसी ने कहा कि अब तो बशीर बद्र साहब को “निशाने इम्तियाज” (पाकिस्तान का एक सम्मान) मिल सकता है। चूंकि उस मुशायरे में पाकिस्तानी शायर भी मौजूद थे, इसलिए इस बात पर लोगों की खुशामद करने की अपनी आदत के अनुसार बशीर बद्र ने कहा कि “मैं पिछले दिनों जब मक्का गया था तो मैंने गिलाफे काबा पकड़कर बद्दुआ मांगी थी कि हिन्दुस्थान बर्बाद हो जाए क्योंकि हिन्दुओं ने मेरा घर जला दिया, मुझे बर्बाद कर दिया।” मैं उर्दू बोलता हूं, मुसलमान हूं, पर सबसे पहले हिन्दुस्थानी हूं। बशीर की इस बात पर मैं आक्रोशित हो गया, मैंने कहा कि इतनी दूर लाकर जलील करवा रहा है। उसे सबक सिखाता पर लोगों ने बीच-बचाव करा दिया। साहित्यिक गलियारों में तो सभी लोगों को ये वाकया मालूम है, लेकिन चूंकि ये इतनी घटिया बात थी कि बतायी भी नहीं जा सकती थी। नोएडा के शायर तुफैल चतुर्वेदी ने यह सारा वाकया “लफ्ज” नामक पत्रिका के सम्पादकीय में लिखा था। बशीर बद्र की यह हरकत इतनी निंदनीय थी कि यदि इस्लामी कानून द्वारा इस पर फतवा लिया जाएगा तो उसमें भी बशीर को सजाए मौत का आदेश होगा। क्योंकि जो शख्स अपने मुल्क का वफादार नहीं है उसे जिंदा रहने का कोई हक नहीं है। बशीर बद्र की इस हरकत पर हर हिन्दुस्थानी को शर्मिंदगी महसूस होगी।
(जितेन्द्र तिवारी द्वारा की गयी बातचीत पर आधारित)
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