शरीयत नहीं, समान नागरिक संहिता जरूरी
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शरीयत नहीं, समान नागरिक संहिता जरूरी

by
Jul 5, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Jul 2006 00:00:00

शेर मोहम्मद और नजमा के निकाह को तोड़ने में जुटे मौलवीयह बेहद दु:खद और शर्मनाक घटना है कि एक बसे-बसाये घर को इस्लामी शरीयत के नाम पर उजाड़ा जा रहा है। यह कोई पहला मामला नहीं है जहां कठमुल्लाओं ने फतवा जारी कर अमानवीयता की नई मिसाल कायम की है। शाहबानो से लेकर गुड़िया और अब नजमा बीबी तक न जाने कितनी महिलाएं मजहब के इन ठेकेदारों के हाथों बर्बाद होती रही हैं। बेचारी गुड़िया तो कठमुल्लाओं के इन फतवों से मानसिक रूप से इतनी विक्षिप्त हो गई थी कि उसकी जान ही चली गई। अब कठमुल्ला नजमा के पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं। उड़ीसा के भद्रक शहर की नजमा बीबी को उसके पति शेर मोहम्मद ने नशे की हालत में 15 जुलाई, 2003 को तीन बार तलाक बोल दिया था। इसी आधार पर कठमुल्लाओं ने उन्हें अलग-अलग रहने पर मजबूर कर दिया। 11 सितम्बर, 2003 को एक मुफ्ती ने फतवा जारी कर कहा कि नशे की हालत में दिया गया तलाक मान्य नहीं होता। मगर समुदाय के कुछ लोग 28 सितम्बर, 2003 को किसी अन्य मुफ्ती से इसके विपरीत फतवा ले आए और दम्पत्ति का जीना दूभर कर दिया। इस पर दम्पत्ति ने पारिवारिक अदालत की शरण ली और फैसला उनके हक में रहा। इसके बाद भी लोगों के विरोध के चलते उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। मगर उन्होंने हार नहीं मानी और सर्वोच्च न्यायालय से न्याय की गुहार की। सर्वोच्च न्यायालय ने 21 अप्रैल, 2006 को सुनवाई के बाद उस तलाक को अनुचित करार देते हुए उन्हें साथ रहने की अनुमति दी। साथ ही उड़ीसा सरकार को दम्पत्ति को सुरक्षा उपलब्ध कराने का भी आदेश दिया। मगर कठमुल्लाओं को अब भी चैन नहीं है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को भी मानने से इंकार कर दिया है। देवबंदी उलेमा ने तो यहां तक कह दिया कि अदालत को इस्लामी शरीयत में दखल देने का कोई हक नहीं है। मुसलमानों के लिए इससे ज्यादा दुर्भाग्य की बात क्या होगी कि उनके रहनुमा होने का दावा करने वाले ही उनके चैन व सुकून के लुटेरे बने हुए हैं। इस स्थिति में अगर देश में समान नागरिक संहिता लागू हो जाए तो फतवों के नाम पर तबाह होने वाले घर उजड़ने से बच जाएंगे और मुस्लिम महिलाओं को भी उनके अधिकारमिल सकेंगे। फिरदौस39

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