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जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत के बाद पिछले 17 वर्षों में हिंसा तथा उग्रवाद की 65 हजार घटनाएं दर्ज की गई हैं। इन घटनाओं में लगभग 40 हजार लोग मारे गए और 1 लाख 50 हजार से अधिक घायल हुए। विभिन्न घटनाओं में देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के गंभीर आरोपों में 20 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया। कुछ उग्रवादियों के विरुद्ध 30-30 और 40-40 लोगों को मारने के आरोप थे। इनमें से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे न्यायालय ने बड़ी सजा सुनाई हो। अर्थात कुछ मामलों में पकड़े जाने वालों को लम्बे समय के लिए नजरबंद रखा गया। अब राज्य की जेलों में लगभग 800 आतंकवादी हैं, जिनमें से लगभग 200 आतंकवादी विदेशी हैं।सन् 2001 से लेकर अक्तूबर, 2002 के अंत तक कुल 46 मामले दर्ज किए गए। इन मामलों में 216 व्यक्ति आरोपी बनाए गए जिनमें से 214 को गिरफ्तार किया गया, इनमें पांच विदेशी थे। पोटा कानून पर अमल न करने के कारण जुलाई, 2004 तक 167 आरोपियों को जमानत पर छोड़ दिया गया। सात लोगों को संदेह का लाभ देते हुए छोड़ा गया। शेष 40 में से अब कुछ ही जेलों में बंदी हैं। पोटा के अन्तर्गत जम्मू की बाहरी बस्ती राजीव नगर में 13 जुलाई को हुए नरसंहार के सम्बंध में 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें एक मुलतान (पाकिस्तान) का और 7 सीमावर्ती जिले पूंछ के थे। पोटा के समाप्त होने के पश्चात इन सभी को छोड़ा गया। यह भी आश्चर्य की बात है कि आज तक किसी आतंकवादी को फांसी की सजा नहीं हुई, यद्यपि पकड़े गए कई लोगों ने सार्वजनिक रूप से कश्मीरी पंडितों तथा अन्य लोगों की हत्या करना स्वीकार किया था और एक आतंकवादी तो ऐसा भी था जिसने 40 लोगों को मारने की बात टेलीविजन पर कही थी। -विशेष संवाददाता30
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