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-डा. विजयपाल सिंहआज पुन:द्रौपदी की लाज लुटती रहीमर्यादा मछली सी तड़पती रही,और मैं-धर्मराज युधिष्ठिर बना देखता रहा,पांसे पर पांसा फेंकता रहा।धृतराष्ट्र!महाभारत तो हर युग कीकहानी हो गई है।पर व्यूह भेदन कर सके जोदेश की तरुणाई कहां सो गई है?सबका खून पानी हो गय
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