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7.11.1966

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May 11, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 May 2006 00:00:00

गोरक्षा के मुद्दे पर स्वतंत्र भारत में पहली बार हिन्दुओं ने देखा

सेकुलरवाद का नृशंस चेहरा

याद है किसी को 7 नवम्बर, 1966 के दिन क्या हुआ था? उस दिन देश के इतिहास का सबसे अभूतपूर्व गोरक्षा प्रदर्शन हुआ था। स्थान था संसद भवन। देश के तपस्वीमना आचार्यों, सामाजिक चिन्तकों और राष्ट्रनिष्ठ नेताओं ने इस आन्दोलन की तैयारी में मनसा-वाचा-कर्मणा सब कुछ लगा दिया परन्तु आंदोलनकारियों के साथ जो नृशंस व्यवहार किया गया, वह कांग्रेस शासन के सेकुलर चरित्र का ही एक उदाहरण था। यहां प्रस्तुत है उस दिन की स्मृति में एक आलेख। साथ ही यह सवाल भी कि हम उस आंदोलन को याद क्यों करें? लाखों लोग जान पर खेलकर आए, गेरूआ वस्त्रधारी साधु भी पुलिस की गोलियों के शिकार हुए, पर नतीजा क्या निकला। कुछ नहीं? कितने प्रदेशों में गोहत्या पूरी तरह बंद हुई? क्या केन्द्र सरकार द्वारा आज तक इस प्रश्न को सुलझाया गया? जो हिन्दू कहते हैं कि गाय हमारी माता है, वे गाय के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? राजस्थान से ढाका तक गोहत्या के लिए गायों को ले जाने वाला मार्ग हिन्दू सेकुलरों द्वारा ही संरक्षित एवं पोषित नहीं हैं क्या? सं.

…. और यूं हुआ गोभक्तों से धोखा

भारतीय स्वातंत्र्य समर के अग्रणी सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महामना मालवीय, बाल कृष्ण गोखले और महात्मा गांधी ने कहा था कि स्वराज्य प्राप्त होेते ही गोवध पर तत्काल पाबंदी लागू कर दी जाएगी।

सन् 1946 के दिसम्बर महीने में मुम्बई में अखिल भारतीय धर्मसंघ के तत्वावधान में विराट गोरक्षा-सम्मेलन का आयोजन हुआ। सरकार को अक्षय तृतीया सम्वत् 2003 तद्नुसार 28 अप्रैल, 1947 तक गोहत्या बंदी का आदेश जारी करने की चेतावनी दी गई अन्यथा अहिंसात्मक सत्याग्रह करने की संतों ने घोषणा की।

28 अप्रैल, 1947 को संत दिल्ली में एकत्र हुए। सरकार ने संतों की मांग के सन्दर्भ में कुछ भी आश्वासन देने से इनकार कर दिया था। पूज्य शंकराचार्य स्वामी श्री कृष्ण बोधाश्रम (ज्योतिष्पीठ) जी महाराज ने गोरक्षा आन्दोलन प्रारम्भ करने की घोषणा की। “कल्याण” के सम्पादक भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार समेत देश के अनेक गण्यमान्य लोग आगे आए। संविधान निर्मातृ-परिषद के भवन के समक्ष सत्याग्रह हुआ। स्वामी करपात्री जी सहित देश के अनेक चोटी के संत महात्मा गिरफ्तार कर लिए गए।

1949-50 में अखिल भारतीय राम राज्य-परिषद ने गोरक्षा के लिए सत्याग्रह प्रारम्भ किया।

1952 में श्री गुरुजी के आह्वान पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गोरक्षा कानून बनाने की मांग को लेकर सम्पूर्ण देश में हस्ताक्षर अभियान चलाया। दो करोड़ लोगों के हस्ताक्षर राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद को सौंपे गए।

सन् 1954 में प्रयाग कुंभ में विराट गोरक्षा सम्मेलन का आयोजन हुआ। इसमें स्वामी प्रभुदत्त ब्राह्मचारी एवं लाला हरदेव सहाय, बाबा राघवदास आदि ने गोहत्या विरोध समिति का गठन किया ताकि आन्दोलन को संगठित रूप में प्रारम्भ किया जा सके।

समिति ने पटना और लखनऊ में सत्याग्रह किए। परिणामत: बिहार सरकार ने “गोहत्या बंदी कानून” बनाने की घोषणा की और उ.प्र. सरकार ने इस सन्दर्भ में एक कमेटी के गठन की घोषणा की। बाद में उ.प्र. के मुख्यमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत ने डा.सीताराम समिति की संस्तुति पर उ.प्र. में भी गोहत्या बन्दी कानून बनाने का निर्णय भी लिया।

कांग्रेस सरकार ने हिन्दू भावनाओं को ताक पर रखते हुए कोलकाता, मद्रास, दिल्ली और मुम्बई में यांत्रिक कत्लखानों के निर्माण की संस्तुति की। मुम्बई में देवनार नामक स्थान पर विशाल कत्लखाने का निर्माण प्रारंभ हो गया।

1962 में हरिद्वार कुंभ में धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज ने पुन: अखिल भारतीय स्तर पर गोरक्षा आन्दोलन छेड़ने की घोषणा की।

23 अक्तूबर, 1962 को समूची मुम्बई में देवनार कत्लखाने के विरोध में एवं गोरक्षा की मांग को लेकर सभाएं हुईं।

चीन का आक्रमण होते ही पं. नेहरू ने संतों से आंदोलन स्थगित करने की अपील की। राष्ट्रीय सुरक्षा को वरीयता देते हुए संतों ने आंदोलन स्थगित किया।

अगस्त, 1964 में वृन्दावन में अखिल भारतीय गोरक्षा सम्मेलन आयोजित हुआ। रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी ने इसका उद्घाटन किया और केन्द्र सरकार को तत्काल गोरक्षा कानून बनाने की चेतावनी दी।

22 फरवरी, 1965 को एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमण्डल प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, राष्ट्रपति और खाद्यमंत्री से मिला।

सन् “65 के पाकिस्तान के आक्रमण के कारण संत पुन: शान्त हो गए। दुर्भाग्यवश, ताशकन्द में शास्त्री जी का निधन हो गया। कांग्रेस शास्त्री जी के वायदे से मुकर गई।

सन् 1966 के प्रयाग माघ मेले में संतों ने जगद्गुरु शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ के नेतृत्व में गोरक्षा के लिए व्यापक आन्दोलन छेड़ने की घोषणा की।

7 नवम्बर, 1966, दिल्ली में संसद दिल्ली में भवन के समक्ष प्रदर्शन के लिए लगभग 10 लाख गोभक्त उमड़ आए। पुलिस द्वारा भीषण गोली-बारी में सैकड़ों घायल, हताहत हुए।

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