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गणेश और कृष्ण के उपासक पूर्व पादरी डेविड हार्ट का कहना है-

by
May 11, 2006, 12:00 am IST
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दिंनाक: 11 May 2006 00:00:00

शाश्वत दर्शन है हिन्दुत्व

एंग्लिकन चर्च के पादरी डेविड हार्ट (जिनका हिन्दू नाम है आनंदकृष्ण दास) गणेश भक्त हैं और पूरी तन्मयता से गायत्री मंत्र का जाप करते हैं। तमाम विरोधों के बावजूद उन्होंने तिरुअनंतपुरम में अपने घर में गणेश प्रतिमा की स्थापना की, उसका विसर्जन किया। (देखें पाञ्चजन्य, 1 अक्तूबर, 2006)। उनके घर पर श्रीकृष्ण, महालक्ष्मी और गणेश के चित्र सुशोभित हैं। हिन्दू धर्म-दर्शन के आराधक पादरी डेविड हार्ट से पाञ्चजन्य प्रतिनिधि प्रदीप कुमार ने बातचीत की जिसके मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं-

रेवरेन्ड हार्ट से आनंदकृष्ण दास तक की यात्रा के बारे में बताएं।

यह एक अन्वेषण का सफर रहा जो जुलाई 2005 में तब शुरु हुआ था जब अपने भावी जीवन की गुत्थियों में भटकता हुआ मैं तिरुअनंतपुरम पहुंचा था। मैंने द हिन्दू में “अंग्रेजी अध्यापक चाहिए” विज्ञापन देखा और बस खूबसूरत कारुमय गांव पहुंच कर नदी किनारे किराए का घर ले लिया। घर के साथ एक एकड़ जमीन भी है जिस पर 20 नारियल के पेड़ और एक ताड़ का पेड़ लगा है। उसके बाद से धीरे-धीरे मैं आनंदकृष्ण दास बनता गया।

आप एक चर्च के पादरी होते हुए भी हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। ईसा मसीह को ही एकमात्र ईश्वर मानने वाले ईसाई समुदाय के लोग इसे कैसे देखते हैं?

ईसा मसीह भगवान की उपस्थिति की ओर संकेत करने वाले उनके पुत्र हैं। बाइबिल में एक जगह उन्हें व्याख्याकार ने “गुड” कहकर संबोधित किया गया है जिसपर उन्होंने कहा है, “तुम मुझे “गुड” क्यों कहते हो? गुड एक ही है और वह है “गॉड”।” इस मानवीय ईसा द्वारा बताए उस एक रूप ईश्वर की आराधना मैं गणेश और कृष्ण की पूजा के माध्यम से करता हूं। कृष्ण के जन्म की घटनाओं और ईसा मसीह के जन्म की घटनाओं में कई प्रकार की समानताएं हैं।

अपनी पुस्तक में आपने लिखा है कि केरल में हिन्दू, ईसाई और मुस्लिम बिना किसी झगड़े के साथ-साथ रहते हैं। क्या यह तथ्य नहीं है कि हिन्दू राजाओं ने मस्जिदों, चर्चों के लिए जमीन दी, उनका निर्माण तक कराया, लेकिन इस्लामवादी और ईसाई सभी तरह के हथकण्डे अपनाकर हिन्दुओं का मतान्तरण कर रहे हैं?

मैं इससे इनकार नहीं करता। इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई भी मत-पंथ इस तरह का (मतान्तरण आदि) व्यवहार करे। असली पंथ वही है जहां मतान्तरण की जरुरत ही न हो क्योंकि लोग स्वत: उसकी ओर आकर्षित होंगे जैसे मैं खुद हिन्दुत्व से जुड़ा हूं।

केरल में पहले परंपरागत रूप से ईसाई समाज हिन्दू रीति रिवाजों के अनुसार रहता आया था। परन्तु जब से स्थानीय ईसाइयों पर पोप का प्रभुत्व स्वीकारने का दबाव डाला गया तभी से यहां संघर्ष और तनाव बढ़ गया। चर्च पर पोप के आधिपत्य को आप कैसे देखते हैं?

ईसाई विश्व पर पोप की वर्चस्वता का होना जरुरी था मगर यह एक खतरनाक कदम भी था क्योंकि यह ईसाइयत को रोमन साम्राज्य की शक्ल देता था जिससे निहितार्थ निकला कि इसके शिखर पर लगभग अजेय व्यक्ति बैठा है। कोई सम्राट सर्वसमर्थ कैसे हो सकता है? एलेक्जेंडर में भी गंभीर दोष थे। अत: पोप पद का इतिहास ईश्वर के नाम पर मानवीय ताकत का अनावश्यक और दण्डात्मक प्रदर्शन का इतिहास है। एक एंग्लिकन के नाते मैं चर्च की शिक्षाओं को मानता हूं कि “रोम के पोप का हमारे क्षेत्र में कोई न्यायाधिकार नहीं है”।

हिन्दू धर्म स्र्वसमावेशी है और हर तरह की पूजा पद्धति स्वीकार करता है जबकि ईसाइयत में केवल एक ईश्वर और बाइबिल में विश्वास करने की बाध्यता है। आपका क्या कहना है?

मैं इस बिन्दु पर आपसे पूरी तरह सहमत नहीं हूं। आज ईसाई चर्च के भीतर योग, ध्यान और गैर ईसाई ग्रंथों का अध्ययन आम बात हो चली है। आज कोई मत-पंथ अपने अकेले दायरे में सीमित नहीं रह सकता। जैसे-जैसे लोगों का दुनियाभर में आना-जाना बढ़ रहा है उसी तरह मत-पंथों का आपस में बहुत मेल-मिलाप भी हो रहा है।

हिन्दुत्व धर्म नहीं, जीवन पद्धति है। आपके क्या विचार हैं?

एल्डोस हक्सली ने इसे “शाश्वत दर्शन” कहा है और मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूं। एक अर्थ में मैं ही क्या कोई भी वास्तव में इसमें “मतान्तरित” नहीं हो सकता।

देश में आज कई “ईसाई आश्रम” बन गए हैं जो हिन्दू परंपराओं को अपना रहे हैं। क्या यह स्वागतयोग्य पहल है?

ऐसे कई मत-पंथ हैं जिन्होंने उस विशिष्ट सत्य को जानकर उनसे निकटता का दावा किया है। यह उनका अधिकार है और जो उनसे जुड़ता है, ऐसा दृष्टिकोण रख सकता है। भगवान समाज के किसी खास वर्ग से किसी विशिष्ट समूह को नहीं बनाता।

खबर है कि इंग्लैंड के कई चर्च मंदिर बनाने के लिए “इस्कान” को बेच दिए गए हैं। आखिर चर्चों को बेचने के क्या कारण हो सकते हैं?

रविवार को प्रार्थना के लिए केवल एक प्रतिशत ब्रिटिशवासी ही चर्च जाते हैं हालांकि 70 प्रतिशत से अधिक ब्रिटेन वाले अब भी ईसाई होने का दावा करते हैं। रविवार को चर्च जाने की बजाय खरीददारी के लिए जाने का पारिवारिक चलन शुरू हुआ है।

भारत के संत-महात्माओं, आश्रमों के बारे में आप क्या सोचते हैं? रा.स्व.संघ से कितना परिचित हैं?

रा.स्व.संघ और अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन हिन्दुत्व के उस वैश्विक सत्य से परिचित कराते हैं कि यह सर्व समावेशी और सहिष्णु धर्म है। ये संगठन हिन्दू एक्य के लिए कार्यरत हैं।

आपके द्वारा कृष्ण और गणेश की पूजा की खूब चर्चा चल रही है। कुछ का तो कहना है कि आपको ईसाई पादरी पद से हटा देना चाहिए।

वैश्विक होती दुनिया में आज ईसाइयत अन्य मत पंथों की तरह तेजी से बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रही है। अगर इसे एक पंथ के रूप में अपनी विश्वसनीयता बनाए रखनी है तो इसे सभ्यताओं और पंथों के संवाद में पूरे मनोयोग से शामिल होना पड़ेगा। यह संघर्षों के हारने पर युद्ध के जीतने का सवाल होगा यानी ऐसा युद्ध जो अंतत: युद्ध की जरुरत को अनावश्यक बना देगा। मुझे लगता है कि यह जल्दी ही होगा।

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