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-डा. प्रणव पण्डा, प्रमुख, गायत्री परिवार
समाज में भोगवाद या भौतिकवाद की बढ़ती इच्छाओं के कारण मानसिक प्रदूषण पैदा हुआ है। इसकी वजह से लोगों की शान्ति गायब हो रही है, लोग तनाव में जी रहे हैं। और जब कोई तनाव में रहता है तो धीरे-धीरे उसकी सहनशक्ति खत्म हो जाती है। आज यही हो रहा है। किसी न किसी कारणवश आदमी अपनी सहनशक्ति खो रहा है। जब सहनशक्ति नहीं बचेगी तो लोग छोटी-सी बात को लेकर भी आपस में भिड़ जाएंगे।
गुस्सा और तनाव की एक वजह हमारी जीवनशैली भी है। हम भारतीय जीवनशैली से दूर और पाश्चात्य संस्कृति के समीप होते जा रहे हैं। जबकि भारतीय संस्कृति हमें शान्ति से जीना और मन:स्थिति को नियंत्रित करना सिखाती है। हर परिस्थिति में तालमेल करके रहना सिखाती है। परन्तु हम भाग रहे हैं पश्चिमी सभ्यता की ओर।
उपभोक्तावाद, वैश्वीकरण एवं भूमण्डलीकरण के कारण ऐसा हो रहा है। क्योंकि जिस तेजी से ये सारी घटनाएं घटित हो रही हैं, उन्हें भारत का मानस का स्वीकार नहीं कर पा रहा है। इसका प्रभाव अराजकता के रूप में दिखाई दे रहा है। इनसे बचा जा सकता है, बशर्ते आप किसी भी परिस्थिति में अपना नियंत्रण न खोयें। वातावरण को गड़बड़ाए बिना परिस्थिति को ठीक करने की मन:स्थिति से परिस्थिति बनती है लेकिन आज उल्टा हो रहा है। परिस्थिति से मन:स्थिति बनाने का प्रयास हो रहा है। लोग अपने जीवन को सन्तुलित दृष्टि से देखें, इसके लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता है। लोगों को बताना होगा कि वे अपने आपको किस तरह सन्तुलित रख सकते हैं। इसका सबसे अच्छा उपाय है भारतीय जीवनशैली। इस शैली को अपनाकर लोग तनाव से बच सकते हैं। वार्ताधारित
तलपट
एक तरफ मोटापे की महामारी दूसरी तरफ भूख की लाचारी
दुनिया में मोटापा महामारी बनता जा रहा है। विश्व की छह अरब आबादी में से लगभग एक अरब लोग मोटापे की चपेट में हैं। गत दिनों पेरिस में जारी वार्षिक रपट में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह जानकारी दी है। रपट में यह भी बताया गया है कि विश्व में लगभग 80 करोड़ लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है।
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