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पाठकीय

by
May 3, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 May 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 5 फरवरी, 2006

पञ्चांग

संवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2006

फाल्गुन शुक्ल 6 रवि 5 मार्च

,, ,, 7 सोम 6 ,,

,, ,,

(होलाष्टकारम्भ) 8 मंगल 7 ,,

,, ,, 9 बुध 8 ,,

,, ,, 10 गुरु 9 ,,

,, ,, 11 शुक्र 10 ,,

,, ,, 12 शनि 11 ,,

क्या केवल मूर्ति की पीड़ा?

चर्चा सत्र के अन्तर्गत प्रकाशित अधिवक्ता राजेश गोगना का आलेख “मूर्ति की पीड़ा” मलेशिया में रह रहे असहाय हिन्दू समाज की स्थिति बताता है। इस लेख से यह भी पता चलता है कि शरीयत के सामने मलेशिया की अदालत भी विवश है। भारत सरकार को इस मामले की पूरी जानकारी मलेशिया सरकार से लेनी चाहिए और आवश्यक कदम उठाना चाहिए। यह प्रकरण ईरान मामले से भी कहीं ज्यादा संवेदनशील है। मूर्ति की पीड़ा केवल हिन्दू समाज ही नहीं, पूरे सभ्य समाज की चिंता का विषय होनी चाहिए। इस्लामी देश मलेशिया ने अपना अमानवीय चेहरा सभ्य समाज को दिखाया है। हिन्दुओं को संगठित होकर इसका प्रबल प्रतिरोध करना चाहिए।

-दिलीप शर्मा

114/2205, एम.एच.वी. कालोनी, कांदीवली (पूर्व)

मुम्बई (महाराष्ट्र)

मूर्ति की पीड़ा दूर करने के लिए क्या किया जाए, इस पर विश्व के विधिवेत्ता तथा राजनेता विचार करें। समाधान शीघ्र आना चाहिए, ताकि अन्य किसी मूर्ति के साथ ऐसी घटना न घटे। मेरे विचार से शरीयत अदालत ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त का पालन नहीं किया है। अत: उसके आदेश को सभ्य समाज द्वारा अमान्य किया जाना चाहिए।

संस्कृति सत्य में वचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु” द्वारा उद्धृत पंक्तियां “ए री! सुधामयी भागीरथी!” किसी मुस्लिम कवि की नहीं, बल्कि कवि जगन्नाथ दास रत्नाकर की हैं। इनसे पूर्व ये पंक्तियां गंगालहरी में पं. राज जगन्नाथ ने संस्कृत में लिखी थीं। संस्कार भारती के मार्गदर्शक श्री योगेन्द्र के बारे में छपा समाचार “बाबा ने देखा हजारवां चांद” मन को छूने वाला रहा। जिसने भी इस मस्त फकीर, किन्तु प्रेरणा के बादशाह को देखा है, वह उनका मुरीद हो गया है।

-डा. नारायण भास्कर

50, अरुणा नगर, एटा (उ.प्र.)

मणियम मूर्ति मलेशिया की सेना में और माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले मलेशिया के पर्वतारोही दल के सदस्य भी थे। इस नाते उन्होंने मलेशिया की सेवा ही की थी। किन्तु उनके निधन के बाद मलेशिया ने उनके साथ जो कुछ किया, वह कृतघ्नता ही है। यह केवल उनके परिवार ही नहीं, बल्कि पूरे हिन्दू समाज के लिए चिन्ता की बात है। जोर-जबरदस्ती मुसलमान बताकर उनकी मृत देह दफना दी गई। एक हिन्दू के साथ ऐसी जबरदस्ती हुई और इसकी चर्चा पाञ्चजन्य को छोड़कर और कहीं नहीं हुई, यह भी आश्चर्य की बात है। आखिर सेकुलर मीडिया ने इस मुद्दे को क्यों नहीं उछाला?

-दीपनारायण महतो

ग्रा.-लकरजोरी, पो.-पीपरा, पथरगामा, गोड्डा (झारखण्ड)

ये तीन तत्व

मंथन स्तम्भ में देवेन्द्र स्वरूप ने अपने लेख “भाजपा-रोको पार्टी अब चर्च की शरण में” के द्वारा देश को चर्च-मुल्ला-कम्युनिस्ट गठबंधन के खतरों के प्रति आगाह किया है। ये तीनों ऐसे तत्व हैं, जिनकी सारी निष्ठाएं भारतभूमि से बाहर ही रहती हैं और वहीं से ये ताकत भी पाते हैं। इन्हें भारतीयता और भारत-भूमि से कोई लगाव नहीं। ये लोग सिर्फ भारतीय समाज की अंदरूनी समस्याओं का फायदा उठाकर भारत पर अपना शिकंजा कसने में लगे हैं। इनको परास्त करने के लिए उन सभी संगठनों और समूहों को एकजुट होना पड़ेगा, जिन्हें भारतीयता से प्यार है।

-राम हरि शर्मा

गुरु तेग बहादुर नगर (दिल्ली)

असली दोषी कौन?

आवरण कथा “बेशर्म बूटा” पढ़ी। सत्ता पर काबिज रहने के लिए कांग्रेस लगातार अनैतिक कार्यों को अंजाम देती रहती है। बात दबी रहने पर उसे कांग्रेस की सफलता के रूप में प्रचारित किया जाता है और सार्वजनिक होने पर किसी को बलि का बकरा बना कर पल्ला झाड़ लेते हैं। ऐसा ही कुछ बिहार के पूर्व राज्यपाल बूटा सिंह के साथ हुआ है। कांग्रेस के लिए देशहित महत्वपूर्ण नहीं है, वह तो जनता का शोषण भर करना जानती है।

-प्रो. राजाराम

एच-8, सूर्या आवासीय परिसर, कोलार मार्ग, भोपाल (म.प्र.)

आपने बूटा सिंह के लिए “बेशर्म बूटा” लिखा है। पर मेरे विचार से यह उचित नहीं है, क्योंकि ऊपर से जैसा आदेश उन्हें मिला, वैसा ही उन्होंने किया। इसमें उनका दोष कहां है? मुझे लगता है, कांग्रेस अपने नेताओं के लिए भी दोहरी नीति अपनाती है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने प्रेस वार्ता में साफ कहा कि नटवर सिंह की मंत्रिमंडल में वापसी हो सकती है, वहीं बूटा सिंह की कहीं कोई चर्चा नहीं की। यदि नटवर की वापसी हो सकती है, तो बूटा की क्यों नहीं? क्या इसलिए कि बूटा वंचित वर्ग के हैं, और नटवर सिंह कुंवर साहब?

-खुशाल सिंह माहौर

फतेहपुर सीकरी, आगरा (उ.प्र.)

भले ही सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों द्वारा कांग्रेस के फैसलों को नियमित रूप से असंवैधानिक करार दिया जाता हो, गोवा और झारखंड के बाद बिहार में कांग्रेसी विचारधारा के राज्यपालों को उच्चतम न्यायालय की फटकार पड़ती हो, केन्द्र की संप्रग सरकार इससे कोई सबक सीखने के लिए तैयार नहीं दिखती। उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद भी जिस प्रकार बूटा सिंह ने हठधर्मिता दिखाई, वह प्रजातांत्रिक मूल्यों का हनन नहीं तो और क्या है?

-रमेश चन्द्र गुप्ता

नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)

एक अच्छा कदम

यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि सेवा भारती ने पूरी दिल्ली को साक्षर करने का संकल्प लिया है। कुछ दिन पहले राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी देश के हर शिक्षित युवा से अपेक्षा की थी कि वे कम से कम एक व्यक्ति को साक्षर करें। सेवा भारती का यह संकल्प उसी दिशा में उठाया गया एक सशक्त कदम लगता है। गुरुजी की जन्मशताब्दी पर होने वाला यह कार्य उनका पुण्य स्मरण कराएगा। पाठकों को इसकी प्रगति की जानकारी भी मिलती रहे तभी “सब पढ़ें, सब बढ़ें” का नारा साकार होगा। साक्षरता अभियान के लिए सरकार वर्षों से करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, पर निरक्षरों की संख्या कम नहीं हो रही है। स्पष्ट है, सरकारी काम कागज पर अधिक है, धरातल पर कम।

-शरद खाडिलकर

माधव धाम, स्वामी दयानंद मार्ग,

राजेन्द्र नगर पूर्व, गोरखपुर (उ.प्र.)

राष्ट्रहित पहले

सम्पादकीय “अमरीकी दादागिरी” मननीय, पठनीय और सत्यपरक लगा। सचमुच में राष्ट्रीय सम्प्रभुता और स्वाभिमान से बड़ा कुछ भी नहीं है। राष्ट्रहित में हम क्या करें और क्या न करें के लिए स्वतंत्र हैं। अमरीका अपना कोई निर्णय हम पर थोप नहीं सकता। विश्व के सभी देशों से हमारे सम्बंध अच्छे हों, पर राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करके नहीं। पहले राष्ट्रहित, फिर विश्व-हित की बात हो।

-नारायण मघवानी

सिन्धी कालोनी, उज्जैन (म.प्र.)

टिहरी बांध का नाम “स्वामी रामतीर्थ सागर” रखा जाय

पाञ्चजन्य (22 जनवरी, 2006) में श्री इन्दिरेश का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पत्र छपा है। इस पत्र की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम ही होगी। इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस पत्र में उन्होंने कहा है कि टिहरी बांध का नाम स्वामी रामतीर्थ सागर होना चाहिए। स्वामी रामतीर्थ का यह उपयुक्त स्मारक होगा, क्योंकि टिहरी में ही भागीरथी में उन्होंने जल समाधि ली थी। मैं उत्तरांचल सरकार से निवेदन करता हूं कि वह इस कार्य को शीघ्र सम्पन्न कर स्वामी रामतीर्थ को सच्ची श्रद्धांजलि समर्पित करे। सौभाग्य से उत्तरांचल की बागडोर श्री नारायण दत्त तिवारी जैसे संस्कृतिनिष्ठ व्यक्तित्व के हाथों में है। साथ ही मैं उत्तरांचल की जनता से भी आग्रह करता हूं कि वह व्यापक जन अभियान चलाकर सरकार को बाध्य करे, ताकि वह टिहरी बांध का नाम स्वामी रामतीर्थ सागर रखे।

-ओंकार भावे

संकटमोचन आश्रम, सेक्टर-6, रामकृष्णपुरम (नई दिल्ली)

पुरस्कृत पत्र

हाथ की चोट

हर चुनाव में कांग्रेस जोर-शोर से यह नारा लगाती है- “कांग्रेस का हाथ, गरीबों के साथ।” सन् 2004 के आम चुनाव में भी कांग्रेस ने यही नारा लगाया था। चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस ने सर्वहारा की थोथी बात करने वाले वामपंथियों से मिलकर सरकार का गठन किया था। किन्तु विडम्बना देखिए, इस सरकार के गठन के बाद ही आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगीं। दो-तीन साल पहले तक रसोई गैस सुदूर गांवों तक पहुंच रही थी, वहीं अब बड़े-बड़े शहरों में भी लोगों को रसोई गैस आसानी से नहीं मिल रही है। सच में इनका हाथ गरीबों के पेट पर कस कर चल रहा है। अब तो खाद्यान्न की कीमतें आसमान छू रही हैं। गेहूं प्रति क्विंटल 400-500 रुपए तक महंगा हो चुका है। इस कारण सरकार को गेहूं आयात करना पड़ा है। जबकि पिछले कई वर्षों से भारतीय खाद्य निगम के भण्डारों में हजारों टन गेहूं सड़ रहा था। इस ओर सरकार ने ध्यान क्यों नहीं दिया? दालों की तो बात ही मत पूछिए। गरीबों के यहां तो दाल बन ही नहीं रही है। अपने आपको गरीबों के हितैषी कहने वालों की यह सरकार रोजगार गारंटी योजना शुरू करने का दिखावा करके भोले-भाले ग्रामीणों की हमदर्दी जीतने का प्रयास कर रही है, तो दूसरी ओर आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि करके उनके पेट पर लात मार रही है। वामपंथी तो हमेशा निजीकरण का विरोध करते थे, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि उन्हीं के शासन में हवाई अड्डों का निजीकरण किया जा रहा है। संप्रग सरकार के किसी फैसले का अन्दर तो वे समर्थन करते हैं, पर बाहर लाल झण्डा लेकर उसी फैसले का विरोध करते हैं। यह लोगों को बरगलाना नहीं तो क्या है? यही तो इनके हाथ का कमाल है कि ये घाव भी कुरेदते हैं और मरहम लगाने का ढोंग भी बखूबी कर लेते हैं।

-अदिति शर्मा

27 सी, पंचवटी, दिल्ली छावनी (दिल्ली)

हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.

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