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राहुल, सिर्फ राहुलप्रतिनिधिहैदराबाद के राजीव नगर में कांग्रेस का 82 वां अधिवेशन गत 23 जनवरी को समाप्त हुआ। कांग्रेस ने अधिवेशन में पारित अपने राजनीतिक प्रस्ताव में जहां यह साफ कर दिया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय को अल्पसंख्यक स्वरूप देने के लिए वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हाल के निर्णय को पलटने के सारे कदम उठाएगी, वहीं अधिवेशन में जुटे लगभग 10,000 कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एक स्वर से राहुल गांधी को राष्ट्रीय कार्यसमिति में लेने एवं उन्हें कांग्रेस संगठन में कोई प्रमुख पद देने का जिस ढंग से दबाव बनाया, उससे स्पष्ट हो गया कि कांग्रेसी राहुल गांधी को नेतृत्व दिए जाने के सवाल पर अब और ज्यादा इंतजार करने को तैयार नहीं हैं। यद्यपि अधिवेशन में 23 जनवरी को दिए अपने संक्षिप्त भाषण में राहुल गांधी ने किसी भी पद पर बैठने से फिलहाल इंकार कर दिया। परन्तु अधिवेशन में उनके भाषण के बाद जारी चर्चाओं से यह अवश्य साफ हो गया कि कांग्रेस के भविष्य का नेतृत्व अब धीरे धीरे स्वरूप ले चुका है।22 जनवरी की सुबह वंदेमातरम के गायन के बाद जैसे ही महाधिवेशन की कार्रवाई शुरू हुई, सभी दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने एक स्वर से राहुल वन्दना प्रारंभ कर दी। क्या नेता और क्या कार्यकर्ता, जिसे देखो वही राहुल गांधी को मंच पर बुलाने की मांग कर रहा था। उल्लेखनीय है कि महाधिवेशन के विशाल मंच पर कार्यसमिति सदस्यों, ए.आई.सी.सी. पदाधिकारियों, मुख्यमंत्रियों और प्रदेश अध्यक्षों के साथ जहां प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और श्रीमती सोनिया गांधी बैठे थे, वहीं राहुल गांधी पंडाल में मंच के सामने प्रथम पंक्ति में मौजूद थे। बस कांग्रेस प्रतिनिधियों को यही नहीं सुहा रहा था। भारी शोरगुल और नारेबाजी के बीच कांग्रेस महासचिव श्री जनार्दन द्विवेदी ने यह घोषणा की कि, “राहुल गांधी मंच पर भी बैठेंगे और भाषण भी करेंगे”। लेकिन तब कार्यकर्ता शान्त नहीं हुए। और तब राहुल गांधी को मंच पर आना पड़ा और जब उन्होंने यह घोषणा कर दी कि वह सोमवार को मंच पर बैठेंगे और प्रतिनिधियों को सम्बोधित करेंगे”, तब जाकर कहीं शोरगुल शान्त हुआ। दूसरी तरफ जिन-जिन कांग्रेसी नेताओं को राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा, कृषि से सम्बंधित मुद्दों पर प्रस्ताव प्रस्तुत करने थे उनमें इसी बात की होड़ लग गयी कि किस प्रकार उनके भाषण में मैडम और राहुल बाबा की प्रशंसा में उद्गार निकलें। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता तो यहां तक कह गए कि, “श्रीमती सोनिया गांधी जी, आप केवल राहुल गांधी की ही नहीं पूरे देश की मां हैं।” बहरहाल, राजनीतिक प्रस्ताव में कांग्रेस ने गठबंधन राजनीति में सामूहिक उत्तरदायित्व के महत्व को रेखांकित किया। कांग्रेस ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल करने और एन.सी.ई.आर.टी. की पाठपुस्तकों में नए संशोधनों पर भी अपनी मुहर लगाई। आर्थिक प्रस्ताव में विनिवेश के सवाल पर कहा गया कि अलग-अलग उपक्रमों के आधार पर फैसले होने चाहिए। कांग्रेस ने नवरत्न उपक्रमों का निजीकरण न करने की घोषणा भी उक्त प्रस्ताव में की। महाधिवेशन के अन्तिम दिन “राहुल लाओ” के नारों के बीच जैसे ही राहुल गांधी मंच पर आए, प्रतिनिधि आपे से बाहर हो उठे। उन्होंने राहुल गांधी का भाषण सुना। बीच-बीच में तालियां भी बजती रहीं। राहुल गांधी ने इस अवसर पर कोई पद लेने से स्पष्ट इंकार कर दिया। महाधिवेशन “राहुल लाओ” से शुरू हुआ और तीन दिन बाद “राहुल लाओ” पर ही खत्म हो गया। देश के तमाम मीडिया के सामने कांग्रेसियों ने अपनी चापलूस प्रवृत्ति की सभी हदें पार कर दी थीं। समाचार चैनलों ने भी राहुल गांधी को लेकर कांग्रेसियों की रस्साकशी के दृश्य खूब प्रचारित किए।प्रतिनिधि18
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