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ॐ शक्ति और “रोम-भक्ति” के बीच संघर्ष चल रहा है-सुब्राह्मण्यम स्वामी, अध्यक्ष, जनता पार्टीगत 16 दिसम्बर को नई दिल्ली में इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती द्वारा साहित्य कृति सम्मान समारोह-2006 का आयोजन किया गया। इस अवसर पर हिन्दी अकादमी, दिल्ली के पूर्व सचिव डा. रामशरण गौड़ को “साहित्य भारती सम्मान”, भारतीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद् के पूर्व निदेशक डा. जगमोहन सिंह राजपूत को “डा. नगेन्द्र सम्मान”, वरिष्ठ समीक्षक एवं इतिहासकार डा. परमानन्द पांचाल को “जैनेन्द्र कुमार सम्मान”, डा. रमा सिंह को “भवानी प्रसाद मिश्र सम्मान”, डा. बलराम मिश्र को “नरेन्द्र मोहन सम्मान”, श्री अमर गोस्वामी को “डा. रामलाल वर्मा सम्मान”, डा. पूरनचन्द टण्डन को “डा. विजयेन्द्र स्नातक सम्मान”, डा. जयदेव डबास को “डा. कमला रत्नम् सम्मान”, कवयित्री डा. कीर्ति काले को “डा. सत्यपाल चुघ सम्मान”, डा. हरगुलाल गुप्त को “आचार्य चतुरसेन शास्त्री सम्मान”, श्री राजेन्द्र त्यागी को “यशपाल जैन सम्मान”, श्री मनोहर पुरी को “गुरुदत्त सम्मान”, श्री मनोहर लाल “रत्नम” को “डा. प्रशान्त वेदालंकार सम्मान”, डा. राजवीर सिंह “क्रांतिकारी” को “घनानन्द सम्मान” एवं श्री महेशचन्द्र शर्मा को “हिन्दी सेवी सम्मान” से सम्मानित किया गया।समारोह के मुख्य अतिथि थे जनता पार्टी के अध्यक्ष डा. सुब्राह्मण्यम स्वामी और विशिष्ट अतिथि भारत भवन, भोपाल के अध्यक्ष श्री दया प्रकाश सिन्हा। समारोह को सम्बोधित करते हुए डा. सुब्राह्मण्यम स्वामी ने कहा, “साहित्यकार समाज का सबसे बड़ा मार्गदर्शक है, क्योंकि उसमें वक्त को बेबस करने की क्षमता है। इस समय देश में “सांस्कृतिक आपातकाल” है, जबकि विदेशों में भारतीय संस्कृति से लोग जुड़ रहे हैं। हमें अपनी संस्कृति से जानबूझकर अलग किया जा रहा है। आज हिन्दू हर जगह निशाने पर हैं। “ॐ शक्ति” और “रोम भक्ति” के बीच संघर्ष चल रहा है। इस विषम काल में साहित्यकारों को एक नया आन्दोलन शुरू करना चाहिए।” साहित्य परिषद् के अध्यक्ष श्री जीत सिंह जीत, वरिष्ठ साहित्यकार डा. कमल किशोर गोयनका, डा. देवेन्द्र आर्य, डा. महेश शर्मा सहित अनेक साहित्यकारों ने भी सभा को सम्बोधित किया। प्रतिनिधिफिर पड़ी संप्रग सरकार को न्यायालय की फटकार बिहार विधानसभा भंग करना संवैधानिक, पर नैतिकता बची कहां? 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– मुजफ्फर हुसैनबंगाल दिनांक- तड़प दूसरी आजादी कीपाचजन्य के वार्षिक ग्राहक बनाएं और परिवार सहित पशुपतिनाथ दर्शन के लिए जाएं2राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक प. पू. श्री गुरुजी ने समय-समय पर अनेक विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। वे विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने पहले थे। इन विचारों से हम अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं और सुपथ पर चलने की प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। इसी उद्देश्य से उनकी विचार-गंगा का यह अनुपम प्रवाह श्री गुरुजी जन्म शताब्दी के विशेष सन्दर्भ में नियमित स्तम्भ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। -संपहले अपना घर संभालोश्री गुरुजीमेरे लिए प्रत्येक व्यक्ति समाज का उतना ही आदरणीय सदस्य है, जितना मैं स्वयं को समझता हूं। मैं नहीं समझता कि वह किसी भी प्रकार मुझसे भिन्न है। विश्व भर के लोगों को एकत्रित करने के प्रयास में दौड़ते रहने से कहीं अधिक अच्छा है कि हम पहले अपने घर को सुव्यवस्थित करें। जो अपने घर को सुव्यवस्थित नहीं करते, उनमें शक्ति नहीं रहती, न वे प्रभाव रख पाते हैं और न ही विश्व में एकता निर्माण की क्षमता उनमें होती है। उनके लिए यह सब कर पाना असंभव है। हम अपने ही देश में देखें। हमारे देश के कई उच्च पदस्थ नेता अपने घर को सुव्यवस्थित करने की इस मूलभूत और सर्वप्रथम आवश्यकता की उपेक्षा कर समस्त मानवता की बातें करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं। परिणाम यह है कि वे किसी भी प्रकार की एकता निर्माण कर पाने में असफल हैं।(साभार: श्री गुरुजी समग्र : खंड 9, पृष्ठ 3)3
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