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हू- मनमोहन वार्ता

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Mar 12, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Mar 2006 00:00:00

कुछ मन की, कुछ अनमनी-आलोक गोस्वामीसमझौते के मुख्य बिन्दु21 नवम्बर, 2006 को भारत और चीन के बीच हुए 13 समझौते इस प्रकार हैं-1. ग्वांग्झू (चीन) और कोलकाता (भारत) में क्रमश: भारत और चीन के कोंसुलेट खोलने संबंधी प्रोटोकाल2. भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों के बीच सहयोग का प्रोटोकाल3. शंघाई में भारत के कोंसुलेट के लिए नि:शुल्क भूमि उपलब्ध कराने संबंधी समझौता4. निवेश को प्रोत्साहन और संरक्षण5. लौह अयस्क के निरीक्षण में सहयोग6. भारत से चीन को चावल निर्यात7. कृषि अनुसंधान में सहयोग8. शिक्षा क्षेत्र में सहयोग9. “कमोडिटी फ्यूचर्स रेगुलेटरी” में सहयोग10. इंडियन इस्टीट्ूट आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति के मुख्यालय में सहयोग11. वन्य मामलों में सहयोग12. सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में सहयोग13. सांस्कृतिक संपत्ति की चोरी, गुप्त रूप से खनन और अवैध आयात-निर्यात रोकने संबंधी समझौतायह हुआ?निवेश को प्रोत्साहन और संरक्षणदिया जाएगा? सीमा पार संपर्क बढ़ेगा? कोलकाता और ग्वांग्झू में खुलेंगे क्रमश: चीन और भारत के कोंसुलेट? दोनों देशों की सरकारों, संसदों और राजनीतिक दलों में परस्पर मेल बढ़ेगा थ् सन् 2010 तक 40 अरब डालर तक पहुंचेगा व्यापार का आंकड़ायह नहीं हुआ? सुरक्षा परिषद् पर भारत की दावेदारी के समर्थन की स्पष्ट घोषणा नहीं? अरुणाचल प्रदेश पर चीन का कोई खुलासा नहीं? अक्साईचिन पर चुप्पीहम अंग्रेजी, वो चीनी!पत्रकार वार्ता संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अंग्रेजी में लिखा बयान पढ़ा जिसका साथ-साथ चीनी में अनुवाद किया जाता रहा। दूसरी ओर चीनी राष्ट्रपति हू ने अपनी मातृभाषा यानी चीनी में वक्तव्य दिया। उनके इस वक्तव्य का अंग्रेजी में साथ-साथ अनुवाद किया जाता रहा।दुनिया में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और एशिया महाद्वीप में एक ताकतवर देश के रूप में उभरते चीन के राष्ट्रपति जब भारत आकर दोस्ती और सहयोग की बात करें तो उसके निहितार्थ और संकेतों को पहचानना जरूरी है। साम्यवादी चीन ने बाजारवाद की जिन ऊंचाइयों को छुआ है, वह गौर करने लायक है। बीजिंग की ऊंची-ऊंची इमारतों, चमचमाती लम्बी गाड़ियों और चकाचौंध भरी सड़कों को देखकर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि 1949 में ही जिस पीपुल्स रिपब्लिक आफ चाइना की नींव पड़ी उसने कितनी तेजी से विकास किया है। इधर कुछ वर्षों में जिस तरह से चीन और भारत की नजदीकियां बढ़ी हैं उसे देखकर यह प्रक्रिया सहज ही लगती है कि चुभने वाले मुद्दों पर मिल बैठकर बात चलती रहे, पर साथ-साथ दूसरे क्षेत्रों में सहयोग और लेन-देन बढ़ता रहे। 1962 से बहुत आगे निकल आए हैं हम। मगर इसका यह अर्थ नहीं हो सकता कि भारत अपनी चिंताओं को बिल्कुल भुला दे और पहले के चीनी व्यवहार से सबक न लेते हुए उसकी ओर से आंख मूंद ले। चीन के राष्ट्रपति हू जिनताओ की चार दिवसीय (20-23 नवम्बर, 2006) भारत यात्रा में जहां सहयोग और सौहार्द बढ़ाने की मीठी-मीठी बातें हुईं वहीं कुछ बिन्दुओं को, जैसे- ब्राह्मपुत्र के प्रवाहमार्ग में बदलाव और सुरक्षा परिषद् में भारत की दावेदारी के समर्थन पर कुछ ठोस और साफ वायदे करने से बचा गया। कुल मिलाकर व्यापार, ऊर्जा, निवेश, संस्कृति आदि क्षेत्रों में नजदीकियां बढ़ाने की बात हुई, सीमा विवाद की बात हुई, पर अरुणाचल प्रदेश का नाम लेकर भारत ने चीन के रुख पर स्पष्टीकरण नहीं मांगा।नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में 21 नवम्बर को चीन के राष्ट्रपति हू जिनताओ और भारत के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की बातचीत हुई। चीनी राष्ट्रपति के साथ अनेक मंत्री और कई वरिष्ठ अधिकारी थे और भारत के भी विदेश अधिष्ठान के सभी वरिष्ठ अधिकारी और पांच केन्द्रीय मंत्री मौजूद थे। लगभग एक घंटे की वार्ता के बाद दोनों नेताओं ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए द्विपक्षीय सहयोग और संबंधों को नए आयाम देने की बात दोहराई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वार्ता पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि “हमने तय किया है कि हाल के वर्षों में दोनों देशों के रिश्तों में हुई सकारात्मक प्रगति को आगे ले जाना है। भारत और चीन के बीच समग्र आर्थिक और व्यापारिक आदान-प्रदान पर खास ध्यान देना है।” व्यापार की बात करें तो दोनों देशों के बीच अच्छा-खासा व्यापार चल रहा है और भारत लौह अयस्क के अलावा कई दूसरी चीजें चीन को निर्यात कर रहा है। व्यापार के मौजूदा आंकड़े आकर्षक हैं। इसी दृष्टि से हू और डा. सिंह ने तय किया है कि सन् 2010 तक यह आंकड़ा 40 अरब अमरीकी डालर तक पहुंचाना है।नागरिक परमाणु ऊर्जा और निवेश में सहयोग, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, राजनयिक स्तर पर सहयोग आदि चर्चा-वार्ताओं के अलावा डा. सिंह ने सीमा विवाद का भी उल्लेख किया, पर सीधे-सीधे अरुणाचल प्रदेश का नाम नहीं लिया। प्रधानमंत्री ने यह संकेत जरूर किया कि सीमा विवाद का समाधान जल्दी होना दोनों देशों के हित में होगा। और “यह समाधान राजनीतिक सीमाओं और निर्देशक सिद्धांतों पर अप्रैल, 2005 में हुए समझौते के आधार पर” हो। फिलहाल दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच सीमा को लेकर कई दौर की बातचीत हो चुकी है। हालांकि इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है।बहरहाल, डा. सिंह ने कहा कि “भारत-चीन के बीच रिश्ते द्विपक्षीय से बढ़कर वैश्विक महत्व के हैं। दोनों देश एशिया तथा विश्व में समान और सतत विकास, ऊर्जा, शांति और सुरक्षा के लिए प्रभावी योगदान दे सकते हैं। सहयोग का आधार दोस्ती होगा और दोनों देश एक-दूसरे की आशा-आशंकाओं का ध्यान रखते हुए अच्छे पड़ोसियों जैसा व्यवहार करेंगे।” इस दृष्टि से, दोनों नेताओं की वार्ता के बाद एक संयुक्त घोषणापत्र जारी किया गया जिसमें साझा सहयोग और विकास के वायदे करते हुए एक 10 सूत्रीय नीति की घोषणा की गई और 13 समझौतों पर हस्ताक्षर करके उन 10 सूत्रों पर चलने की दिशा स्वीकारी गई।प्रधानमंत्री डा. सिंह के बाद चीनी राष्ट्रपति हू जिनताओ ने पत्रकारों को सम्बोधित किया। राष्ट्रपति हू ने भी द्विपक्षीय बातचीत पर संतोष व्यक्त किया, भारत को उसके स्नेहपूर्ण सत्कार, व्यवहार के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि भारत जैसे सुन्दर देश में आकर वे खुश हैं। हू ने साझा घोषणापत्र और रिश्ते बढ़ाने के 10 सूत्रों पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि व्यापार में नजदीक आने की काफी संभावनाएं हैं जिनका पूर्ण उपयोग करना चाहिए। हू ने चीन और भारत को दुनिया के प्रमुख विकसित राष्ट्र कहा और इस नाते नजदीकी रिश्तों को महत्वपूर्ण बताया। व्यापार बढ़ाने के लिए भारत, चीन में और चीन, भारत में एक-एक अतिरिक्त कोंसुलेट खोलेगा। चीनी राष्ट्रपति ने भी दोहराया कि सीमा विवाद का जल्दी सुलझना अच्छा रहेगा और दोनों देश सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखेंगे।भारत और चीन के बीच संबंधों को नए आयाम देने के लिए जो संयुक्त घोषणापत्र जारी किया गया है, वह एक खुशनुमा तस्वीर पेश करने वाला दस्तावेज ही कहा जाएगा। चीन ने जहां इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने पर बल दिया है वहीं उसे यह भी पहचानना होगा कि भारत का पड़ोसी देश, जो चीन का खास दोस्त है, भारत के प्रति कैसा रवैया रखता है। चीन पाकिस्तान को परमाणु तकनीक उपलब्ध करा रहा है और इधर पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ जब चाहे उस तकनीक का दंभ भरते हुए भारत-विरोधी बयानबाजी करते रहते हैं।भारत और चीन दुनिया के दो सबसे बड़े विकासशील राष्ट्र हैं इसलिए दोनों के बीच संबंधों का वैश्विक और रणनीतिक महत्व है। दोनों ही देश एक-दूसरे के विकास को एशिया तथा दुनिया में शांति, स्थायित्व और सम्पन्नता के लिए सकारात्मक योगदान के रूप में देखेंगे। आज वैश्वीककरण के युग में दोनों देशों की भागीदारी वैश्विक चुनौतियों और खतरों से निपटने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण है। अपनी रणनीतिक और सहयोगात्मक भागीदारी बढ़ाने के लिए दोनों देश इस 10 सूत्रीय रणनीति पर चलने को प्रतिबद्ध हैं-1. द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास को सुनिश्चित करना- दोनों देशों के बीच एक-दूसरे देश में शीर्ष वार्ताएं, सरकारों, संसदों और राजनीतिक दलों के बीच उच्चस्तरीय आदान-प्रदान होगा। भारत, चीन के ग्वांग्झू प्रांत में और चीन, भारत के कोलकाता में एक कोंसुलेट खोलेगा ताकि दोनों देशों के बीच मेल-मिलाप बढ़ाया जाए।2. संस्थागत सहयोग और बातचीत का तंत्र मजबूत करना- भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों के बीच सहयोग की यह संधि विभिन्न क्षेत्रों में दोनों सरकारों के सहयोग को बढ़ाने में मददगार होगी।3. व्यापारिक और आर्थिक आदान-प्रदान मजबूत करना- दोनों देशों के बीच सन् 2010 तक 40 अरब डालर तक व्यापार बढ़ाया जाएगा। भारत-चीन क्षेत्रीय व्यापार समझौते के लाभों का पता लगाने वाला संयुक्त कार्यदल अक्तूबर, 2007 तक अपना काम पूरा कर लेगा।4. दोनों देशों के लिए लाभप्रद सहयोग का विस्तार करना- व्यापार, उद्योग, वित्त, कृषि, जल संसाधन, ऊर्जा, पर्यावरण, परिवहन, ढांचागत विकास, सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षा, मीडिया, संस्कृति, पर्यटन, युवा मामले और अन्य क्षेत्रों में सहयोग की प्रचुर संभावनाओं का लाभ उठाने के प्रयास होंगे।5. रक्षा सहयोग के जरिए आपसी विश्वास का भाव पैदा करना- रक्षा क्षेत्र में यात्राओं के आदान-प्रदान से दोनों देशों के रक्षा प्रतिष्ठानों के बीच परस्पर समझ बढ़ी है। 29 मई, 2006 को हुए रक्षा क्षेत्र में आदान-प्रदान और सहयोग संबंधी करार को पूरी तरह लागू किया जाएगा।6. लम्बित मुद्दों का शीघ्र निपटारा करना- दोनों पक्ष सीमा विवाद सहित सभी लम्बित मुद्दों के शांतिपूर्ण तरीके से शीघ्र निपटारे के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह निपटारा निष्पक्ष और परस्पर स्वीकार्य हो। सीमा प्रश्न पर भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों ने 11 अप्रैल, 2005 को हस्ताक्षरित सीमा विवाद सुलझाने के लिए हुए राजनीतिक सीमाओं और मार्गदर्शक सिद्धान्तों पर समझौते के अनुसार कदम उठाए हैं। इसे जल्दी सुलझाना दोनों देशों के हित में है अत: एक रणनीतिक उद्देश्य के तौर पर इस मुद्दे पर काम किया जाएगा।7. सीमा पार जुड़ाव और सहयोग का विस्तार- भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में परस्पर मान्य स्थानों पर सीमा पार सहयोग बढ़ाया जाएगा। दोनों देशों के बीच सीमा व्यापार, जैसा कि हाल में नाथुला दर्रे के जरिए किया गया, एक महत्वपूर्ण प्रयास है।चीन कैलास-मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले भारतीय तीर्थयात्रियों को अधिक सुविधाएं उपलब्ध कराएगा। दोनों देश एक अतिरिक्त यात्रा मार्ग खोलने की संभावनाओं पर विचार करेंगे।8. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सहयोग बढ़ाना- विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत-चीन सहयोग की स्थापना की जाएगी। भूकम्प अभियांत्रिकी, मौसमी बदलाव और मौसम की पूर्ण जानकारी आदि में साझे प्रकल्प चलेंगे। नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ना भारत-चीन की राष्ट्रीय ऊर्जा योजनाओं के लिए ऊर्जा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण है। अत: दोनों पक्ष इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुसार सहयोग बढ़ाएंगे।9. सांस्कृतिक रिश्तों और लोगों में आपसी मेल-जोल को बढ़ाना- दोनों देशों के बीच मौजूदा प्राचीन सांस्कृतिक संबंध आपसी मैत्री के मजबूत आधार हैं। इस दृष्टि से नालंदा (भारत) में जुआंगझेंग स्मारक और लुओयांग (चीन) में भारतीय पद्धति के बौद्ध मंदिर का निर्माण जल्दी ही पूरा किया जाएगा। दोनों देश एक-दूसरे देशों में अपने देशों के उत्सव आयोजित करेंगे। आने वाले 5 वर्षों के दौरान भारत-चीन अपने-अपने देश के युवा प्रतिनिधिमंडलों को एक दूसरे देश में भेजेंगे। सन् 2007 को दोनों देश पर्यटन के जरिए भारत-चीन मैत्री वर्ष के रूप में मनाएंगे।10. क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर सहयोग का विस्तार करना- दोनों पक्ष एशिया और विश्व में उभरते सुरक्षा माहौल पर लगातार विचारों का आदान-प्रदान करेंगे। क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थायित्व, हथियारों, मादक पदार्थों और लोगों की अवैध तस्करी, जनसंहारक अस्त्रों के प्रसार को रोकने संबंधी चर्चा होती रहेगी।आतंकवाद मानवता के प्रति अपराध है, यह मानते हुए इसके सभी स्वरूपों की भत्र्सना के साथ ही दोनों देश आतंकवाद विरोधी वार्ता तंत्र विकसित करने पर भी तैयार हुए हैं। आतंकवाद, पृथकतावाद, उग्रवाद आदि के खिलाफ द्विपक्षीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रयासों को मजबूत करने की भी बात कही गई है।साझा घोषणापत्र के अनुसार, “दोनों पक्ष संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था को मजबूत करने के पक्ष में हैं। संयुक्त राष्ट्र का समग्र, संतुलित विकास हो, सुरक्षा परिषद् में विकसित और विकासशील देशों की भागीदारी हो। भारतीय पक्ष ने सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता की अपनी इच्छा व्यक्त की है। चीन अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत के स्तर को बहुत महत्व देता है। चीन संयुक्त राष्ट्र में और बड़ी भूमिका निभाने की भारत की अपेक्षाओं को समझता है और उसका समर्थन करता है। इसके साथ ही विश्व व्यापार संगठन में दोहा वार्ता की फिर से शुरुआत के अलावा निष्पक्ष, समान, पारदर्शी और नियम आधारित बहुस्तरीय व्यापार तंत्र के प्रति दोनों देश प्रतिबद्ध हुए हैं।”संयुक्त घोषणापत्र में भारत ने तिब्बत स्वायत्तवासी क्षेत्र को चीन का अंग स्वीकार किया है। इसके बाद तिब्बत को लेकर भारतीय विदेश अधिष्ठान का रुख भी फिर से स्पष्ट हो गया। चीनी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री की मौजूदगी में दोनों पक्षों के बीच 13 समझौतों/करारों पर भी हस्ताक्षर किए गए। अपनी यात्रा के दौरान नई दिल्ली में चीनी राष्ट्रपति हू जिनताओ ने राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम से भेंट की। उपराष्ट्रपति श्री भैरोंसिंह शेखावत, लोकसभा अध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी, लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी और कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी राष्ट्रपति हू से मिलने पहुंचे। भारत के बाद चीनी राष्ट्रपति हू की पाकिस्तान यात्रा और वहां कम से कम पांच परमाणु संयंत्रों की स्थापना की बात को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। एक तरफ भारत से दोस्ती मजबूत करने की बात और दूसरी तरफ भारत से शत्रुभाव रखने वाले पाकिस्तान की रणनीतिक मदद चीन की मंशाओं पर सवालिया निशान जरूर लगाती है।8

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