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20 करोड़ लोगों के जीवन का प्रश्न-एस. कल्याण रमण, निदेशक, सरस्वती नदी शोध प्रकल्प”पहले नीलोत्पल बसु और अब सीताराम येचुरी की आंखों को वह सच नहीं दिखाई दे हरा है जिन्हें उपग्रहों की आंखें देख रही हैं। मानसरोवर से लेकर गुजरात तक सरस्वती की विलुप्त धारा के सन्दर्भ में भारत सरकार से जुड़ी अनेक शोध संस्थाएं काम कर रही हैं। यद्यपि संस्कृति मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति के अध्यक्ष श्री सीताराम येचुरी ने हाल ही में सरस्वती प्रकल्प को पुन: बन्द करने की संस्तुति सरकार से की है। इसके पहले नीलोत्पल बसु भी यही संस्तुति कर चुके हैं। वस्तुत: वामपंथी चिन्तन में जो सत्य एक बार “मिथक” कहा जा चुका है, उसे भला वे सत्य कैसे मान सकते हैं? अब ये बात अलग है कि भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान तथा तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग के वैज्ञानिक सरस्वती के विलुप्त प्रवाह को आधार मानते हुए हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में स्थान-स्थान पर मीठे जलस्रोतों की खोज में जुटे हैं। सरस्वती नदी शोध प्रकल्प, चेन्नै के निदेशक श्री एस. कल्याण रमन ने पाञ्चजन्य से एक विशेष बातचीत में उपरोक्त टिप्पणी की। श्री कल्याण रमण के अनुसार, “राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में, बीकानेर से बाड़मेर तक इसरो के वैज्ञानिकों ने ऐसे दर्जनों स्थानों की खोज की है जहां भूमि के नीचे हिमालय के मीठे पानी का विशाल भण्डार मिला है। एक नलकूप द्वारा वहां प्रति घंटे 90,000 लीटर पीने का पानी निकलता है। पिछले दिनों पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जो भूकंप आया था, उसी समय हरियाणा के कलायत में जमीन से पानी की धार निकल पड़ी। बाद में पता चला कि यह पानी भी हिमालय क्षेत्र से आया है। यह सारा पानी जो हमें मिला है, वह सरस्वती के विलुप्त भूगर्भीय प्रवाह का ही जल है।” श्री कल्याण रमण कहते हैं कि “सरस्वती के विलुप्त प्रवाह को पुन:प्रवाहित करने का प्रश्न अब केवल इतिहास और पुरातत्व का सवाल नहीं है, यह पश्चिमी भारत के 20 करोड़ लोगों के जीवन का प्रश्न बन गया है। करोड़ों लोगों की पेयजल आवश्यकता को पूरा करने के लिए, मरुभूमि को पुन: शस्य श्यामला, अन्नदायिनी बनाने के लिए सरस्वती का पुनर्जीवित होना जरूरी है, हम हर कीमत पर इस काम को पूरा करेंगे।”11
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