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…क्योंकि मरने वाले हिन्दू थे
केरल की राजनीति में मराड नरसंहार की जांच के लिए गठित जोसफ न्यायिक आयोग की रपट आने के बाद तूफान खड़ा हो गया है। इस रपट में न्यायमूर्ति थामस पी.जोसफ ने मराड नरसंहार में मारे गए 8 हिन्दू मछुआरों की दर्दनाक मृत्यु के षड्यंत्र को उजागर किया है। मराड में दंगाई मुसलमानों को कहां से संरक्षण मिला, किस पार्टी से दंगाइयों के नजदीकी संबंध थे और राजनीतिक तथा सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े किन-किन नेताओं ने दंगाइयों को संरक्षण प्रदान किया, जोसफ आयोग ने इन सभी बातों का परत दर परत खुलासा किया है। गत 25 अक्तूबर को विधानसभा के पटल पर जब वाममोर्चा सरकार ने यह रपट प्रस्तुत की तब हंगामा ही मच गया।
चार घंटे से भी ज्यादा समय तक सत्ता पक्ष तथा विपक्ष में रपट को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए। लगभग 20 सदस्यों ने बहस में भाग लिया, लेकिन आयोग द्वारा की गई संस्तुतियों के क्रियान्वयन के सम्बंध में सदन किसी सार्थक नतीजे तक नहीं पहुंच सका। माकपा पूरे मामले की सी.बी.आई. से जांच कराने और दंगे में मुस्लिम लीग की भूमिका को ही उठाने में व्यस्त रही। इसका परिणाम यह हुआ कि जोसफ आयोग की 21 महत्वपूर्ण संस्तुतियों पर पक्ष-विपक्ष में से किसी ने ध्यान नहीं दिया।
बहस की शुरुआत करते हुए कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री अर्यदन मोहम्मद ने कहा कि माकपा जानबूझकर और अनावश्यक रूप से पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान रक्षामंत्री ए.के.एंटोनी को इस मामले में घसीट रही है। दूसरी तरफ माकपा नेता पी.जयराजन ने ए.के. एंटोनी पर जमकर हमला बोला। उन्होंने जब यह कहा कि जो नेता मराड जैसे छोटे से स्थान में मछुआरों की जिन्दगी को सुरक्षित नहीं रख सका वह रक्षा मंत्री के रूप में देश की सुरक्षा कैसे कर सकेगा, तब सदन में हंगामा मच गया। कांग्रेसी नेताओं की टोका-टोकी के बीच उन्होंने कहा कि यदि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने मराड दंगों पर गठित आयोग की रपट देखी होती तो सम्भवत: वे एंटोनी को रक्षामंत्री नहीं बनाते।
केरल कांग्रेस में वरिष्ठ नेता, पूर्व कानून मंत्री के.एम. मणि ने कहा कि आयोग की संस्तुतियां सही नहीं हैं और राज्य सरकार द्वारा मराड दंगों के सन्दर्भ में सी.बी.आई.जांच का आदेश देना नितान्त असंवैधानिक कदम था। बहस में इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग के कुट्टी अहमद कुट्टी ने कहा कि मुस्लिम लीग ने कभी कट्टरपंथी एवं राष्ट्रविरोधी शक्तियों का समर्थन नहीं किया। यद्यपि अपने वक्तव्य के दौरान ही कुट्टी अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए अनेक बार लड़खड़ाते दिखे। कुल मिलाकर विपक्ष की बहस की तैयारी का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री उमेन चांडी के अलावा संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे के किसी भी सदस्य ने मुस्लिम लीग को बचाने का प्रयास नहीं किया।
उमेन चांडी ने आयोग की रपट में उल्लिखित हिलाल मोहम्मद का मुद्दा उठाकर जरूर मामले को कमजोर करने का प्रयास किया। हिलाल पर आरोप है उसी ने दंगे के लिए धन की व्यवस्था की थी। चांडी ने कहा जब वह मुख्यमंत्री थे अथवा जब एंटोनी मुख्यमंत्री थे, तब हम दोनों में से किसी ने भी कोई भी ऐसी खुफिया रपट नहीं देखी, जिसमें हिलाल का जिक्र हो। यदि इस प्रकार की रपट थी तो वर्तमान गृहमंत्री कोदियेरी को बताना चाहिए था। बहस में निर्दलीय विधायक के.टी. जलील ने आरोप लगाया कि मराड दंगों की रपट ने एक राजनीतिक दल के रूप में मुस्लिम लीग की विश्वसनीयता को समाप्त कर दिया है। कांग्रेस के विधायक के. सुधाकरन ने कहा कि आयोग की संस्तुतियों का स्वर साम्प्रदायिक तथा सन्दर्भ वास्तविकता से दूर हैं।
मराड दंगों पर विधानसभा में कांग्रेस व माकपा द्वारा सार्थक बहस न करने की लोगों ने तीखी आलोचना की है। पीड़ित पक्ष व जागरूक लोग सोच रहे थे कि बहस में से किसी निर्णायक पहल की शुरुआत होगी लेकिन उनकी आशा तब निराशा में बदल गयी जब उन्होंने देखा कि दोनों प्रमुख दल, कांग्रेस व माकपा सच को स्वीकार करने की बजाय वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। हिलाल मोहम्मद, जिसे आयोग की रपट में “एफ.एम.” (फाइनेन्स मिनिस्टर) कहा गया है, के मुद्दे को जहां नेता-प्रतिपक्ष उमेन चांडी ने जोर-शोर से उठाया और गृहमंत्री को खुफिया रपट सदन के सामने रखने की चुनौती दी, वहीं गृहमंत्री बालाकृष्णन का रवैया स्तरहीन रहा। बालाकृष्णन ने कहा कि वे इसे अध्यक्ष को सुपुर्द कर सकते हैं, चाहे तो नेता प्रतिपक्ष इसकी जांच कर लें। उनके इस उत्तर के जवाब में चांडी ने इसे वाममोर्चा सरकार का नाटक करार दिया और सम्पूर्ण विपक्ष सदन से बहिर्गमन कर गया।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पी.एस. श्रीधरन पिल्लै का कहना है कि कांग्रेस व माकपा दोनों दलों ने आयोग की रपट के महत्वपूर्ण बिन्दुओं का बहस में उल्लेख तक नहीं किया। वास्तविकता यह है कि मई, 2003 में हुए मराड दंगों के पीछे उसी आतंकवादी तंत्र का घिनौना हाथ था जिससे आज सारा देश त्रस्त है। आतंकवादी तत्व पूरे केरल में अपनी पकड़ मजबूत करते जा रहे हैं। किन्तु राज्य में माकपा व कांग्रेस को अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के अलावा और कुछ सूझ नहीं रहा है। प्रदीप कुमार
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