भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन-1
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भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन-1

by
Mar 12, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Mar 2006 00:00:00

इतिहास नहीं, षड्यंत्र लिखा है अंग्रेजों ने

ठा. राम सिंह न केवल इतिहास के गहन अध्येता हैं वरन् पिछले तीन दशकों से वे लगातार इतिहास के विविध अनसुलझे या जानबूझकर उलझा दिए गए मुद्दों की वास्तविकता को देश के समक्ष लाने में जुटे हैं। अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना की “शोध पत्रिका” के अंकों में उनके अनेक शोधपरक लेख प्रकाशित हुए हैं। यहां प्रस्तुत है उनके ऐसे ही एक तथ्यपरक आलेख की पहली कड़ी- सं.

-ठाकुर राम सिंह

संरक्षक, अ.भा. इतिहास संकलन योजना

अंग्रेजों ने अपने भारत के साम्राज्य को सुदृढ़ और स्थाई बनाने के लिए इस देश के इतिहास को विकृत करने की त्रिसूत्री योजना बनाई थी। इस योजना की विस्तृत जानकारी क्रांतिकारी लाला हरदयाल की अंग्रेजी पुस्तिका “माई डिवाइन मैडनेस” में मिलती है। ये तीन सूत्र इस प्रकार हैं –

पहला सूत्र- हिन्दुओं का अहिन्दूकरण, दूसरा-हिन्दुओं का अराष्ट्रीयकरण, तीसरा-हिन्दुओं का असमाजीकरण

हिन्दू समाज की एकात्मता को नष्ट करने के लिए अंग्रेजों ने इसमें ब्राह्मण-अब्राह्मण, छूत-अछूत, उत्तरवासी-दक्षिणवासी, आर्य-द्रविड़, ट्रायबल-नान ट्रायबल, राजपूत-जाट, सवर्ण-पिछड़े आदि अनेक भेद उत्पन्न किए, यद्यपि इन भेदों का हमारे इतिहास में कहीं भी स्थान नहीं है।

हिन्दू समाज के उपरोक्त विघटन से अंग्रेजों का समाधान नहीं हुआ और उन्होंने इस देश की राष्ट्रीयता को छिन्न-विच्छिन्न करने के प्रयास शुरू किए। आर्यों की आदि जन्मभूमि के बारे में विवाद पैदा करने के लिए यूरोपीय मानसिकता ने 18वीं सदी के अंत में एवं 19वीं सदी के प्रारंभ में सिद्धांत रचे।

रायल एशियाटिक सोसायटी

एशिया, विशेषत: भारत के इतिहास के लेखन के लिए लंदन में एशियाटिक सोसायटी की स्थापना की गई। 18 अप्रैल, 1865 को सोसायटी के अध्यक्ष स्ट्रांगफील्ड की अध्यक्षता में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया गया कि आर्यों का आदि स्थान मध्य एशिया था। कालक्रम में वहां से उनकी एक शाखा यूरोप चली गई और उसने वहां के आदिवासियों को युद्ध में हराकर यूरोप पर अधिकार कर लिया। आर्यों की दूसरी शाखा मध्य एशिया से चलकर ईराक, ईरान अर्थात् मध्यपूर्व में जा पहुंची। पहली शाखा के ही समान उन्होंने मध्यपूर्व पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। तीसरी शाखा ने दुनिया की छत पामीर के पहाड़ को पार कर हिन्दुस्थान के पंजाब प्रांत पर आक्रमण कर दिया। वहां के द्रविड़ उनके सामने खड़े नहीं हो सके और आर्यों ने पंजाब पर अधिकार कर लिया। वहीं से भारत का आर्यकरण शुरू हुआ। यूरोप के इतिहासकार मैक्समूलर के मत के अनुसार, यह घटना ईसा पूर्व 2500 और ईसा पूर्व 1500 के मध्य अर्थात् 3500 वर्ष पुरानी है। इतिहास के इस विकृतिकरण के अनुसार, अंग्रेजों ने यह सिद्ध किया कि हिन्दुओं के पूर्वज आर्य लोग मध्य एशिया में रहते थे। वे भारत में आक्रमणकारी के रूप में आए। अत: यह देश उनका नहीं है। ये विदेशी हैं। उनके बाद मुसलमान आए। उनका भी यह देश नहीं है। और अंत में ईसाई आए। उनका भी यह देश नहीं है। तीनों विदेशी हैं।

इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी प्रचार किया कि जब हम यहां पर आए तो यहां न तो कोई सभ्यता थी और न कोई संस्कृति और न ही कोई राष्ट्रीय भाषा थी। हमने इस देश को राजनीतिक एकता प्रदान की। यहां पर तीन संप्रदाय हैं- “थ्री सिस्टर कम्युनिटीज”-हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई। ये तीनों मिलकर नया राष्ट्र बनाएं। जब ये इस निर्माणाधीन राष्ट्र का निर्माण कर लेंगे तो हम यहां से चले जाएंगे। तीनों सम्प्रदाय मिलकर एक नए राष्ट्र का निमार्ण करें, इसे “ए नेशन इन द मेकिंग” अर्थात् निर्माणाधीन राष्ट्र कहा गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा नए राष्ट्र के निर्माण करने का प्रयोग भी आरंभ हुआ। नया राष्ट्र तो नहीं बना अपितु इस निर्माणाधीन और कृत्रिम राष्ट्रीयता के कारण देश का 15 अगस्त, 1947 को हिन्दू और मुस्लिम के आधार पर विभाजन हो गया। अंग्रेजों द्वारा भारत के इतिहास को तोड़ने और मरोड़ने के बारे में अन्य बहुत सी बातें रची गयी हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

0 अंग्रेजों ने देश की अखण्डता को नष्ट करने के लिए यह प्रचार किया कि भारत कभी एक देश नहीं रहा। यह तो उपमहाद्वीप है। इसी कारण इस देश में अनेक जातियां और अनेक राष्ट्र हैं।

थ् यहां की जलवायु गर्म है और इस कारण यहां के लोग सुस्त और आलसी होते हैं। इस कारण वे पराक्रम शून्य भी हैं।

0 भारत का अपना कोई पुराना व लिखित इतिहास नहीं है। हिन्दू इतिहास लेखन की कला नहीं जानते थे। उनका जो इतिहास है, कल्पनाओं के ऊपर आधारित है।

सन् 1857 तक हिन्दुस्थान के लोगों को दुनिया “हिन्दू” के नाम से जानती थी परन्तु अंग्रेजों ने इतिहास को दूषित कर “हिन्दू” को एक संप्रदाय बना दिया। हमारा सारा साहित्य, इतिहास और महापुरुष इसी षड्यंत्र के कारण राष्ट्रीय न होकर सांप्रदायिक घोषित कर दिए गए।

भारत के इतिहास के कालक्रम का निर्धारण:

वर्तमान में विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में जो इतिहास पढ़ाया जाता है वह विलियम जोन्स द्वारा आविष्कृत कालक्रम के आधार पर लिखा गया है। यह कालक्रम ईसा के जन्म से सम्बंधित ईसाई अवैज्ञानिक कालगणना के अनुसार निर्धारित है। विलियम जोन्स ने संस्कृत भाषा अपने सचिव पंडित राधाकांत से सीखी और भारत के इतिहास को समझने के लिए राधाकांत के सहयोग से भागवत पुराण पढ़ा और पुराणों में उल्लिखित युगों की भारतीय कालगणना के कालक्रम को स्वीकार किया, परन्तु बाद में जाने या अनजाने में उसने भारतीय कालक्रम को दुर्लक्ष कर घोषणा की कि केवल सिकन्दर के भारत पर आक्रमण करने की ईसा पूर्व 327 की ही तिथि एकमात्र सत्य तिथि है और इसको उसने भारत के इतिहास के लेखन के लिए सन् 1784 में आधारभूत तिथि घोषित कर दिया। तब से यह ईसा के पूर्व और ईसा के पश्चात् का विदेशी कालक्रम चला आया है। (क्रमश:)

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