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चीन अपने देश में पांथिक स्वतंत्रता की संवैधानिक छूट देता है किन्तु वहां सभी पंथों से सम्बंधित संस्थाओं और उपासना स्थलों को अपनी गतिविधियां चलाने के लिए जहां सरकार से पूर्व अनुमति लेनी पड़ती है, वहीं सभी मजहबी संस्थाओं को अपना नामांकन भी कराना अनिवार्य है। चीन में कार्यरत सभी ईसाई संगठनों को इस सन्दर्भ में चीन के राष्ट्रीय चर्च से ही अपने पांथिक दिशानिर्देश लेने की संवैधानिक बाध्यता है और उन पर वेटिकन के साथ सम्बंध रखने पर सख्त पाबन्दी भी है।चीन के संविधान के अनुसार पांच संगठित पंथों को अपनी पूजा पद्धति, विश्वासों को मानने और उपासना की छूट दी गई है। इन पंथों में बौद्ध, कैथोलिक ईसाई, ताओ, इस्लाम और प्रोटेस्टेंट ईसाई शामिल हैं। इन्हें नए उपासना स्थल के निर्माण के पूर्व सरकार की अनुमति लेना भी अनिवार्य है। पिछले वर्ष मार्च महीने में चीन सरकार ने “पांथिक मामलों के कानून का नियमन-2005” नामक एक कानून पारित किया है। और इस कानून का क्रियान्वयन प्रारम्भ होते ही देशभर की ईसाई संस्थाओं में हाय-तौबा मच गई। चीन की सभी प्रान्तीय और स्थानीय (नगर एवं ग्राम पंचायतें) सरकारों ने अवैध रूप से बने चर्चों को इस कानून का सहारा लेकर ढहाना शुरू कर दिया है। इस कानून में स्पष्ट आदेश दिया गया है कि पांथिक संस्थाओं का प्रबंधन संविधान के अनुरूप ही होना चाहिए। चूंकि चीन में पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में अवैध चर्चों का निर्माण हुआ है और कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट ईसाई समूह भूमिगत रूप से मतान्तरण के काम में भी सक्रिय हैं। इसे देखते हुए चीन सरकार का आदेश मिशनरियों पर भारी पड़ रहा है। वैसे सिंक्यांग प्रान्त में मुस्लिम उपासना स्थलों और तिब्बत में बौद्ध संस्थाओं पर भी इस कानून की मार पड़ रही है लेकिन इसका सर्वाधिक प्रभाव ईसाई मिशनरियों पर ही पड़ा है। चीन में पांथिक स्वतंत्रता का अध्ययन कर रहे एक अमरीकी ईसाई पक्षीय संगठन ने आरोप लगाया है कि पिछले एक वर्ष में चीन में 1958 पादरी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। चीन के सैकड़ों ग्रामों-कस्बों में कार्यरत ईसाई संस्थाओं, चर्चों को ध्वस्त किया जा रहा है। अभी जुलाई महीने में ही चीन के पूर्वी अन्हुई प्रान्त के टोंगवी ग्राम में 130 लोगों को एक प्रोटेस्टेंट सण्डे स्कूल से पकड़ा गया, इनमें 90 बच्चे भी हैं। पुलिस ने स्कूल प्रबंधन पर आरोप लगाया है कि वे इन 90 बच्चों और 40 वयस्कों के अवैध मतान्तरण की कोशिश कर रहे थे। ठीक इसी समय हेबई प्रान्त में 90 प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया, जो रोमन कैथोलिक चर्च के दो भूमिगत पादरियों की “बिना किसी कारण के” गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे। हांगमई, जो पूर्वी चीन के स्पेजियांग प्रांत की राजधानी है, के निकट व्वान क्यान्बू में एक नवनिर्मित चर्च को भी हाल ही में ध्वस्त किया गया है। समाचारों के अनुसार चर्च का घेरा डालकर खड़े, ध्वस्तीकरण की कार्रवाई का विरोध कर रहे लगभग 3000 लोगों को पुलिस ने न केवल खदेड़ा, वरन् जिन्होंने पुलिस से बहस की उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। प्रदर्शनकारियों के वकील के अनुसार, “पुलिस ने इनकी पिटाई भी की है।” ईसाई संगठन चीन सरकार पर ज्यादती के आरोप लगा रहे हैं। उनके अनुसार, सरकार नए चर्चों के निर्माण में बाधाएं पैदा करती है। चीन सरकार ईसाई मत से भयभीत है और यही कारण है कि वह ईसाई मत को बढ़ते देखना नहीं चाहती। इसीलिए वह हर तरीके से ईसाई मत का स्वतंत्र विस्तार रोक रही है।” द (इन्टरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून में 19-20 अगस्त को प्रकाशित समाचार से साभार)37
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