जन गण मन को राष्ट्रगान बनाने पर
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जन गण मन को राष्ट्रगान बनाने पर

by
Mar 9, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Mar 2006 00:00:00

नेहरू की सफाई”न्यूयार्क में सन् 1947 को संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेम्बली में हमारे प्रतिनिधि से राष्ट्रगान की मांग की गई। हमारे पास उस समय किसी उपयुक्त राष्ट्रगान की रिकार्डिंग नहीं थी, जिसे हम विदेश भेज सकते। प्रतिनिधि के पास “जन-गण-मन” का रिकार्ड था, जिसे आर्केस्ट्रा को दे दिया गया। जब आर्केस्ट्रा पर इसे बजाया गया तो अनेक देशों के विदेशी प्रतिनिधियों को यह बहुत पसंद आया और उन्होंने इसे बहुत सराहा। इस नयी तर्ज का रिकार्ड बनवाकर भारत भेज दिया गया तब से यही हमारी सेना, विदेशी दूतावासों आदि में आवश्यक मौकों पर बजाया जाता है। मैंने सभी प्रदेशों के राज्यपालों को इस पर अपनी राय भेजने हेतु लिखा है। मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया है कि संविधान सभा में अंतिम निर्णय न हो जाने तक “जन-गण-मन” ही राष्ट्रगान के रूप में गाया जाता रहेगा। बाद में पश्चिम बंगाल सरकार का संदेश मिला है कि “वन्दे मातरम्” को ही राष्ट्रगान बनाए रखा जाए।”यह दुर्भाग्य की बात है कि राष्ट्रगान के रूप में ” वन्देमातरम्” और “जन-गण-मन” में एक विवाद सा उत्पन्न हो गया है। “वन्देमातरम्” स्पष्ट रूप से और निश्चय ही भारत सरकार का प्रमुख राष्ट्रगीत है और इसकी महान ऐतिहासिक परम्परा है। यह हमारे स्वतंत्रता संग्राम से घनिष्ट रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसका यह दर्जा कायम रहेगा। और कोई दूसरा गीत इसे विस्थापित नहीं कर सकता। यह राष्ट्रीय संघर्ष के भावावेश और मार्मिकता को व्यक्त करता है, किन्तु इसमें उसकी पराकाष्ठा की अभिव्यक्ति नहीं है। जहां तक राष्ट्रगान की धुन का सवाल है, यह महसूस किया गया है कि शब्दों के अर्थ की बनिस्पत धुन ज्यादा आवश्यक है और यह धुन ऐसी होनी चाहिए कि यह भारतीय संगीत एवं पाश्चात्य संगीत दोनों का प्रतिनिधित्व करती हो, जिसमें इसके आर्केस्ट्रा और बैण्ड संगीत दोनों में सरलता से विदेशों में उपयोग हेतु बजाया जा सके। अनुभव से हमें ज्ञात हुआ है कि विदेशों में “जन-गण-मन” की धुन बहुत सराही गयी है। यह स्पष्ट है, इसमें गतिशीलता भी है जबकि “वन्दे मातरम्” की धुन सरलता से विदेशी आर्केस्ट्रा में अपनायी नहीं जा सकती। इसमें गतिशीलता का भी अभाव है। अत: ऐसा महसूस किया गया कि “वन्दे मातरम्” भारत में राष्ट्रगीत के रूप में प्रमुखता से चालू रहेगा। राष्ट्रगान की धुन “जन गण मन” वाली होगी और “जन-गन-मन” के शब्दों में वर्तमान हालात के अनुरूप आवश्यक सुधार किया जाएगा।” (25 अगस्त, 1948 को संविधान सभा में दिए गए भाषण का अंश)17

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