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पाठकीय

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Feb 7, 2006, 12:00 am IST
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दिंनाक: 07 Feb 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 4 जून, 2006पञ्चांगसंवत् 2063 वि. वार ई. सन् 2006 आषाढ़ शुक्ल 7 रवि 2 जुलाइ ,, शुक्ल 7 सोम 3 ,, ,, 8 मंगल 4 ,, ,, 9 बुध 5 ,, ,, 10 गुरु 6 ,, ,, 11 शुक्र 7 ,, ,, 12 शनि 8 जुलाई (शनि प्रदोष)कौन बनेगा सिरमौर?पूरी दुनिया में चढ़ा, नूतन एक बुखारजाने किसकी जीत हो, जाने किसकी हार?जाने किसकी हार, कौन सिरमौर बनेगाकरके ज्यादा गोल, गोल्डन बूट धरेगा।कह “प्रशांत” फुटबाल खेल अलमस्त निरालापैरों के जादू शरीर की ताकत वाला।।-प्रशांतआरक्षण के पैरोकार या समाज-तोड़कआवरण कथा “पहले देश तोड़ा अब समाज तोड़ेंगे” के अन्तर्गत आचार्य महाप्रज्ञ, आचार्य विजयरत्न सुंदर सूरीश्वर जी महाराज, सुश्री संध्या जैन एवं श्री टी.वी.आर. शेनाय के विचार पढ़े। इसमें संदेह नहीं है कि वर्तमान संप्रग सरकार पूरी तरह हिन्दू समाज को तोड़ने में लगी है। खेद है कि जिस हिन्दू समाज को अंग्रेज और मुगल शासक नहीं बांट पाए उसे सेकुलर हिन्दू नेता ही तोड़ने में लगे हैं। क्या हमारे नेता सत्ता के लिए इतने लालायित हैं कि वे अपने ही समाज के हित और अहित को नहीं देख पा रहे हैं?-संजय शुक्लदानापुर छावनी, पटना (बिहार)आलोक गोस्वामी की रपट “आरक्षण से भेदभाव बढ़ेगा” आरक्षण समर्थकों की आंखें खोलने वाला है। पिछड़े वर्ग के मेडिकल छात्र विकास ठाकरा का यह कथन “पिछड़े वर्ग के छात्र भी समर्थ हैं” महत्वपूर्ण है। इस कथन से स्पष्ट पता चलता है कि गरीब छात्र भी मेहनत कर अन्य छात्रों से बराबरी कर रहे हैं, उन्हें आरक्षण की बैसाखी की जरूरत नहीं है। छात्रा नंदिता आचार्य कहती हैं, “अगर मेरे ऊपर ओ.बी.सी. का बिल्ला लगा दिया तो मुझे जो इज्जत और प्यार मिलता है वह नहीं मिलेगा।” पिछड़े वर्ग में प्रतिभावान छात्रों की खोज कर उन्हें प्रोत्साहन दिया जाए तो आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं रहेगी।-चम्पत राय जैन4 बी, रेसकोर्स, देहरादून (उत्तराञ्चल)जब हमारा देश आजाद हुआ था उस समय कुछ जातियां अवश्य ही पिछड़ी अवस्था में थीं। उनको मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण की आवश्यकता थी। उस समय किसी ने आरक्षण का विरोध भी नहीं किया, लेकिन अब आजादी के 60 साल के बाद परिस्थितियां बदल चुकी हैं। अब जाति के आधार पर किया गया आरक्षण देश के हित में नहीं है। इस समय देश का कोई भी वर्ग ऐसा नहीं है, जिसे हम कह सकें कि उनके साथ किसी भी तरह का अन्याय हो रहा है। समय की मांग तो यह है कि धन के अभाव में अगर किसी की योग्यता व्यर्थ जा रही है तो उनको सहायता मिलनी चाहिए।-डा. मधु जोशीजोशी नर्सिंग होम, पीरखाना रोड, खन्ना (पंजाब)इतिहास शायद स्वयं को दुहरा रहा है। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जिस आग को हवा दी थी, अर्जुन सिंह ने फिर उसी को भड़काने की कोशिश की है। आरक्षण के जिन्न को फिर बोलत से बाहर निकालने का दुस्साहस किया है। देश की तरुणाई को उसी आग में झोंकने की एक शर्मनाक कोशिश की है। उनके इस कदम का कोई मानवीय आधार तो है ही नहीं, यह विशुद्ध वोट की राजनीति है।-शैवाल सत्यार्थीशारदा प्रेस, ग्वालियर (म.प्र.)पिछले दिनों आरक्षण का विरोध करने के लिए उस वर्ग के लोग सड़कों पर उतरे जो वातानुकूलित घरों में रहते हैं और जिनके पैर कार से नीचे नहीं पड़ते। किन्तु सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी और कई जगह उन्हें पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं। मेरे विचार से यही वह वर्ग है, जो लोकतंत्र की उपेक्षा करता है। लोकतंत्र के सबसे बड़े यज्ञ “चुनाव” में ये लोग अपने मताधिकार का प्रयोग न के बराबर करते हैं। शायद इसलिए सरकार इनकी बातों पर उतना ध्यान नहीं देती, जितना देना चाहिए। यदि यह वर्ग भी वोट देने लगे तो सरकार इनकी उपेक्षा शायद नहीं कर पाएगी।-संजय चतुर्वेदीपत्थर गली, आबू रोड (राजस्थान)अब तक जो लोग आरक्षण के बल पर ऊंचे पदों पर पहुंचे हैं, वे अपनी सन्तानों के लिए भी आरक्षण की सुविधा बरकरार रखना चाहते हैं। इस हालत में उन लोगों का क्या होगा, जो सीधे-साधे हैं और गांवों में रहते हैं। अपने भोलेपन के कारण वे लोग योग्य होते हुए भी आरक्षण का लाभ नहीं उठा पाते हैं। इसलिए जो नेता आरक्षण की बात कर रहे हैं, उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि आरक्षण का लाभ गांवों में रहने वाले लोग भी उठा सकें।-राकेश गिरिरूड़की (हरिद्वार)जाति के नाम पर समाज में वैमनस्य पैदा करने के लिए कांग्रेस ने आरक्षण का यह झमेला खड़ा किया है। यह कांग्रेस की सोची-समझी चाल है। कांग्रेस का इतिहास ही रहा है कि समाज में द्वेष पैदा करो और चुनाव के समय घड़ियाली आंसू बहाकर लोगों को अपनी ओर खींचो। आम लोगों को कांग्रेस की इस चाल को समझना होगा, नहीं तो समाज में कटुता इसी तरह घोली जाती रहेगी।-मनीष कुमार जैन100, मण्डी की नाल,उदयपुर (राजस्थान)किसको है परवाह?दिशादर्शन के अंर्तगत श्री तरुण विजय का आलेख “आत्मदैन्य का उत्सव” एक संकेत करता है। अल्पसंख्यकों को रिझाने में सभी दलों के नेता आतुर रहते हैं लेकिन बहुसंख्यक हिन्दुओं के हितों की उन्हें कोई परवाह नहीं रहती। वडोदरा में कांग्रेस के नेता तुरन्त पहुंचते हैं लेकिन डोडा में हिन्दुओं के नरसंहार पर चुप रहते हैं। गृहमंत्री सुरक्षा व्यवस्था की अड़चन बताते हैं। लेकिन वहां भी तो कांग्रेस की सरकार है। यह सरकार कश्मीर पर जितना गोलमेज सम्मेलन आयोजित करने में दिलचस्पी लेती है उतना विस्थापित हिन्दुओं के बारे में नहीं सोचती है। राजनेताओं को सोचना चाहिए कि वोट से बड़ा धर्म, देश, समाज और संस्कृति होती है। नेपाल में हिन्दू राष्ट्र के पतन पर भारतीय समाचार पत्रों और चैनलों में इतनी खुशी नजर आयी मानो अन्धे के हाथ बटेर लग गयी हो।-दिलीप शर्मा114/2205 एम.एच.वी. कालोनी, समतानगर कांदीवली (पूर्व), मुम्बई (महाराष्ट्र)नफरत के व्यापारीमंथन के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने लेख “माक्र्सवाद मुर्दाबाद, सत्तावाद जिन्दाबाद” में भारत के कम्युनिस्टों की रणनीतियों का बारीकी से विश्लेषण करते हुए बताया है कि किस प्रकार कम्युनिस्टों ने भारतीय समाज के अंतर्विरोधों का भरपूर इस्तेमाल किया है। यहां मैं एक अन्य तरीके का उल्लेख करना चाहूंगा जो कम्युनिस्टों ने खूब अपनाया है- अपने समर्थकों में कट्टरता पैदा करने हेतु कुछ राजनीतिक शत्रुओं को चिन्हित कर उनके प्रति घोर नफरत पैदा करने का तरीका। उदाहरणार्थ, प. बंगाल में कम्युनिस्टों ने कहीं न कहीं अपने आपको एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में प्रस्तुत करके और नफरत के कुछ प्रतीकों को चिन्हित करके बंगाल की आम जनता की क्षेत्रीय भावनाओं का भी दोहन किया है। इसी तरह केरल में जातीय समूहों की आपसी प्रतिस्पर्धा को आपसी नफरत में बदल खूब लाभ उठाया है। इनके साथ-साथ उन्होंने भाजपा को कट्टर हिन्दू-दल के रूप में पेश करके हिन्दू-इतर जनसमूहों का भी दोहन किया है।अब प्रश्न उठता है कि कम्युनिस्टों की रणनीतियों का प्रतिकार क्या है? आज भारत और हिन्दू समाज के सामने ये लोग ही सबसे बड़ी चुनौती के रूप में खड़े हैं। इसलिए इस प्रश्न पर गम्भीर विचार आवश्यक है।-राम हरि शर्मा,गुरु तेग बहादुर नगर (दिल्ली)पं. नेहरू ने कहा था27 जून 1961 को पं. जवाहर लाल नेहरू ने देश के तमाम मुख्यमंत्रियों को सम्बोधित एक पत्र में लिखा था-“मैं किसी भी प्रकार के आरक्षण को पसंद नहीं करता हूं, विशेषकर सेवाओं में। मैं ऐसी किसी बात का कड़ा विरोध करता हूं, जिसका परिणाम कार्य-अक्षमता या द्वितीय स्तर के कार्य से हो। मुझे यह जानकर पीड़ा हुई कि यह आरक्षण का मामला यहां तक पहुंच गया है, जो साम्प्रदायिक विचारों पर आधारित है। यह मार्ग केवल मूर्खतापूर्ण ही नहीं होगा, बल्कि विनाशकारी भी होगा।”-आस्था गर्गसुभाष बाजार, मेरठ (उ.प्र.)पुरस्कृत पत्रभारतीय संविधान के नए विशेषज्ञ!पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने वेटिकन सिटी में भारतीय राजदूत अमिताभ त्रिपाठी को बुलाकर कहा कि भारत में मतान्तरण पर प्रतिबन्ध नहीं लगना चाहिए, क्योंकि यह भारतीय संविधान के खिलाफ होगा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत की संविधान सभा मतान्तरण पर प्रतिबन्ध नहीं चाहती थी।यह आश्चर्यजनक है कि पोप, जिनके अपने नगर-राज्य में रोमन कैथोलिकों के अलावा किसी अन्य पंथ का प्रसारक प्रवेश भी नहीं कर सकता, जिनके अनुयाइयों को स्वेच्छा से भी किसी अन्य मत को अपनाने की इजाजत नहीं है, वे भारत में पादरियों को मतान्तरण की अबाध छूट चाहते हैं। वेटिकन सिटी ही नहीं, दुनिया के लगभग तमाम रोमन कैथोलिक देशों में मतान्तरण पर पूर्ण प्रतिबंध है। यहां कोई ईसाई स्वयं की इच्छा के बावजूद भी अन्य किसी मत में नहीं जा सकता। नब्बे के दशक में वेटिकन के एक पदाधिकारी ने इस्कान का साहित्य पढ़कर हिन्दू धर्म अपनाना चाहा था तो पोप जान पाल द्वितीय ने उसे देश निकाला दे दिया था। भारत में स्वैच्छिक मत परिवर्तन पर न कहीं प्रतिबंध है, न प्रस्तावित है। धोखाधड़ी, प्रलोभन या बलपूर्वक किया गया मतान्तरण भी केवल पांच राज्यों-मध्य प्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश और गुजरात में अवैध है। राजस्थान में ऐसा कानून प्रस्तावित है। विस्मय की बात यह है कि ऐसे मानवता विरोधी, छल-छद्म आधारित मतान्तरण की पोप पैरोकारी कर रहे हैं।जहां तक इस विषय में भारत के संविधान की स्थिति का प्रश्न है, केवल सर्वोच्च न्यायालय ही वह संस्था है जो उसे स्पष्ट करने की पात्रता रखता है, अन्य कोई नहीं, और पोप तो बिल्कुल नहीं। उड़ीसा और मध्य प्रदेश के मतान्तरण विरोधी कानूनों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देकर पोप के पादरीगण हार चुके हैं। जनवरी 1977 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ए.एन.रे एवं न्यायमूर्तिगण एम.एच. बेग, आर.एस. सरकारिया, पी.एन. सिंहल तथा जसवंत सिंह की पूर्ण पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में इन कानूनों को वैध माना, तथा कहा कि संविधान मतान्तरण का मौलिक अधिकार नहीं देता (जैसा पादरीगण दावा करते रहते हैं) (एआईआर 1977 एससी 908-।।)। सितम्बर 2003 में उड़ीसा के ही उक्त कानून की एक धारा को चुनौती देने वाली याचिका मुख्य न्यायाधीश वी.एन. खरे तथा न्यायमूर्ति एस.बी. सिन्हा की खण्डपीठ द्वारा पुन: खारिज की गई।पोप ने संविधान सभा की बात भी की है। क्या उन्होंने तत्सम्बंधी वाद-विवाद पढ़ा है? जब धार्मिक स्वतंत्रता सम्बंधी अनुच्छेद पर बहस हो रही थी तो तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने 1 मई, 1947 को संविधान सभा में कहा था कि लालच, जबरदस्ती या धोखा देकर किसी का मतान्तरण करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। उस समय दो प्रमुख ईसाई सदस्यों जे.जे.एम. निकोलस राय तथा फ्रैंक एंथनी ने पटेल के मत से सहमति व्यक्त की थी। इसके बावजूद भारत में छल-कपट द्वारा मतान्तरण हुआ और अब भी जारी है। न्यायमूर्ति बी.एस. नियोगी की रपट और उसे पुष्ट करने वाली न्यायमूर्ति रेगे तथा न्यायमूर्ति वेणुगोपाल की रपटें यही कहती हैं। ग्राहम स्टीन्स हत्याकांड की जांच करने वाले न्यायमूर्ति वाधवा आयोग का भी निष्कर्ष यही है। इसलिए मतान्तरण विरोधी कानून भारत के सभी प्रांतों में लागू होना आवश्यक है।-अजय मित्तलखंदक, मेरठ (उ.प्र.)हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.4

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