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भाजपा के डोडा सत्याग्रह सेजिहादी नेतृत्व में बौखलाहट क्यों?-शाहिद रहीमजम्मू-कश्मीर में गत 7 से 15 जून तक चले भाजपा के “डोडा बचाओ-देश बचाओ” सत्याग्रह ने पाकिस्तान समर्थित कश्मीरी आतंकवादियों के विरुद्ध “युद्ध” का बिगुल क्या बजाया, “जिहादी नेतृत्व” बुरी तरह से बौखला उठा। यहां तक कि कश्मीर नीति के संदर्भ में पाकिस्तान की असली मानसिकता भी उजागर हो गई।इस कथन की पुष्टि एशिया के सबसे बड़े इस्लामी संगठन “जमाअत-उद-दावा” के मुखपत्र “गजवा” (16-22 जून, 2006) के संपादकीय से होती है जिसे “दावा” के प्रवक्ता प्रो. मौलाना अमीर हमजा ने लिखा है।उल्लेखनीय है कि भूकंप से बुरी तरह प्रभावित हुए कश्मीर में पुनर्वास संबंधी कार्यो में कथित महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला यह संगठन अमरीका द्वारा प्रतिबंधित है। लेकिन कश्मीर राजनीति की कमान उसके हाथ में है। “दावा” को पाकिस्तान के सभी उग्रवादी संगठनों का समर्थन प्राप्त है। यहां तक कि इस मुस्लिम संगठन पर अमरीकी प्रतिबंध लागू करने से पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने भी स्पष्ट इनकार कर दिया। भाजपा के सत्याग्रह पर “दावा” के प्रवक्ता ने कहा कि “भारतीय मुसलमान जिहादी नेतृत्व का साथ देंगे और हिन्दुओं का विरोध करेंगे। यही नहीं हिन्दुस्थान फिर से टूट जाएगा।”पाकिस्तान के इस्लामी संगठन “दावा” का आगे कहना है, “भारतीय सेना का जुल्म तो 17 वर्षों से निरंतर जारी है ही, अब हिन्दू उग्रवादियों ने भी रणभूमि में अपना कदम रख दिया है….भारतीय जनता पार्टी ने घोषणा की है कि जो कोई किसी एक कश्मीरी आतंकवादी को शहीद करेगा उसे एक लाख रुपये का इनाम दिया जाएग। भाजपा की इस घोषणा से ऐसा महसूस होता है कि हिन्दू उग्रवादी अपने प्रशिक्षित आतंकियों को कश्मीरी मुजाहिदीनों के मुकाबले में भेजने के लिए “पर” तौल रहे हैं। कश्मीरी मुजाहिदीन ने आज तक बड़ी सूझबूझ और सावधानी से अपना आंदोलन चलाया। मुजाहिदीन की हमेशा कोशिश रही है कि वे केवल सैनिक और अद्र्धसैनिक लक्ष्यों को निशाना बनाएं। एक लंबी अवधि तक मुजाहिदीन ने पुलिस को भी बड़ी कार्रवाइयों से माफ रखा। हालांकि जब भी पुलिस ने सेना से एक कदम आगे बढ़कर कार्रवाइयां करने की कोशिश की तो मुजाहिदीन ने मजबूर होकर अपनी बंदूकों की “नाल” कश्मीर पुलिस के उन अफसरों की तरफ कर दीं जो शेष भारत से बुलाए जाते थे। आमतौर पर मुजाहिद साधारण कश्मीरियों को कुछ नहीं कहते क्योंकि वे भी कश्मीरी हैं और कश्मीरी मुजाहिद खुद अपनी कौम का नुकसान नहीं करना चाहता, मजबूरी की और बात है।””भाजपा के आतंकवादी चाहे जितने खतरनाक हों या प्रशिक्षित, लेकिन जब मुजाहिदीन उनके खिलाफ जवाबी कार्रवाई करेंगे तो मीडिया शोर करेगा कि देखो मुजाहिदीन आम हिन्दुओं की हत्या कर रहे हैं। ये हिन्दू आतंकवादी यात्रियों के रूप में कश्मीर पहुंच रहे हैं। अब जब भी मुजाहिदीन हिन्दू आतंकी संगठनों के कार्यकर्ताओं को मारेंगे तो नागरिक हिन्दुओं के कत्ल का आरोप लगेगा। यदि मुजाहिदीन उन आतंकवादियों का संहार नहीं करते तो यह सब “जिहादी आंदोलन” को नुकसान पहुंचाएंगे। मुत्तहिदा जिहाद काउंसिल ने तो 11 जून को ही हिन्दू उग्रवादी संगठनों को चुनौती दे दी है कि अगर उन्होंने (हिन्दुओं ने) अपनी मानसिकता नहीं बदली तो उन्हें इसका नतीजा भुगतना पड़ेगा और इसकी तमाम जवाबदेही भारत सरकार पर होगी।””भाजपा ने कश्मीरी मुजाहिदीन को ललकार कर दरअसल सेकुलररिज्म की जड़ों को हिला दिया है। यह संभव नहीं कि हिन्दुस्थान से उठकर एक हिन्दू कश्मीरी मुजाहिदीन से लड़ने पहुंच जाए और भारतीय मुसलमान तमाशाई बना रहें….अगर भारत सरकार यह समझती है कि भाजपा और आरएसएस के आतंकवादी कश्मीरी मुजाहिदीन को परास्त कर देंगे तो यह उसकी भूल है। अलबत्ता भारत के अंदर टूट-फूट में वृद्धि निश्चित है।””दावा” के प्रवक्ता पाकिस्तान प्रायोजित “इस्लामी राजनीति” के शीर्षस्थ और सर्वमान्य रहनुमा और सेवक की हैसियत से जो कह रहे हैं उसे मजाक में नहीं टाला जा सकता। उपरोक्त पंक्तियों में पाकिस्तान और इस्लामी उग्रवादी नेतृत्व का वह विश्वास दिखाई देता है जो उसने भारतीय मुसलमानों पर कर रखा है। क्या भारतीय मुसलमान वास्तव में वही करेंगे जिसकी उम्मीद पाकिस्तान ने लगा रखी है? यह एक सवाल है जो भारत की तमाम मुस्लिम आबादी और उनके समस्त नेताओं पर सवालिया निशान लगाता है और उनसे पूछता भी है-“ऐ आजाद हिन्दुस्थान के मुसलमानो! पाकिस्तान तुम्हारा इस्लामी भाई होने के नाते तुम्हारी वतनपरस्ती पर शक करता है और यकीन करता है कि कश्मीर मामले में तुम पाकिस्तान का साथ दोगे। यहां तक कि तुम दुबारा हिन्दुस्थान को तोड़ देने की हद तक चले जाओगे। क्या वास्तव में तुम ऐसा करोगे?”कहीं उनकी पक्षधरता का राज न खुल जाए इसलिए कश्मीर मसले पर किसी गैर कश्मीरी भारतीय मुसलमान नेता ने विगत 50 वर्षों में अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, वे खामोश रहे।ओसामा बिन लादेन की आतंकवादी गतिविधियों के संदर्भ और आतंकी मान्यताओं (जिहादी गतिविधि) पर भारत का कोई मुसलमान नहीं बोला। केवल उसने खामोशी की नीति अपनाई। आज वही नीति “दावा” के वक्तव्य से चुनौती बन गई है। इससे देश के मुसलमानों पर सवालिया निशान लगा है।इसलिए अब जरूरी हो गया है कि अखिल भारतीय स्तर पर कश्मीर के संदर्भ में बहस शुरू कर भारतीय मुसलमानों का मत प्राप्त कर लिया जाए। इस मामले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मीलिया इस्लामिया और मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के चारों समर्थकों- देवबंदी, बरेलवी, अहले हदीस और शिया तथा जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, जमायत-ए-इस्लामी आदि संगठनों के नेताओं को शीघ्र स्वयं एक कदम आगे बढ़कर अपना मंतव्य भारतीय मीडिया के समक्ष दर्ज कराना चाहिए ताकि भारतीय मुसलमानों की वतनपरस्ती साबित हो सके।40
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