इन्द्रा देवी

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दिंनाक: 07 Feb 2006 00:00:00

मौत से ली टक्करश्रीमती इन्द्रा देवी का 3 वर्षीय पुत्र नरेश, जिसे नरभक्षी बाघ ने दबोच लिया था ।घटना पिछले वर्ष दिसम्बर माह की है। उत्तराञ्चल के लोहा घाट के केनेडी गांव की प्रधान श्रीमती इन्द्रा देवी जंगल से घास लेकर अपने घर आईं। घर में उनका 3 वर्षीय बालक नरेश भूख के मारे रो रहा था। शाम के करीब 5 बज चुके थे। अंधेरा धीरे-धीरे अपनी रंगत में आ रहा था। इन्द्रा देवी ने बेटे को दूध पिलाकर बैठाया ही था कि पहले से घात लगाकर बैठा एक नरभक्षी बाघ बालक की ओर झपट पड़ा। इन्द्रा ने अचानक अपने कलेजे के टुकड़े को बाघ के मुंह में देखा तो उनके होश ही उड़ गए। मां की ममता ने तुरंत निर्णय लिया। बेटे की ममता से विह्वल मां बाघ से भिड़ गई। पास रखी दराती से एक जोरदार प्रहार बाघ के सिर पर करके अपने बच्चे को मौत के जबड़े से मुक्त करा लिया। अचानक इस भिड़न्त में बाघ और इन्द्रा देवी परस्पर उलझते और एक-दूसरे पर गिरते रहे। बाघ के भयानक पंजों की मार ने यद्यपि इन्द्रा देवी को लहूलुहान कर दिया, लेकिन प्रबल आत्मबली इंद्रा ने बिना बच्चे को छुड़ाये बाघ को भागने का मौका नहीं दिया। इन्द्रा की चीखें सुनकर जब तक आस-पड़ोस के लोग हथियार आदि लेकर आते, तब तक बाघ मैदान छोड़कर भाग चुका था। मां-बेटे दोनों को तत्काल ग्रामीणों ने लोहा घाट के स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचाया, जहां चिकित्सकों ने दोनों की मरहम पट्टी की। बालक के कंधे व कूल्हे सहित कई जगहों पर बाघ के दांत गहरे घुस गए थे, जिसकी चिकित्सकों को विशेष व लम्बी चिकित्सा करनी पड़ी।इन्द्रा देवी के इस अप्रतिम शौर्य को जिसने भी सुना, मां-बेटे को देखने दौड़ा चला आया। अनेक सामाजिक संगठनों ने इन्द्रा के इस साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए प्रदेश व केन्द्र सरकार से उन्हें सम्मानित करने की अपील की है। भारत चौहान23

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