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पैदावार दमदार फिर भी गेहूं का खरीददार?गत 2 से 4 जून तक जबलपुर (म.प्र.) में स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक सम्पन्न हुई। इसमें किसानों एवं खेती से जुड़े मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की गई। बैठक में केन्द्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के विरुद्ध तीन प्रस्ताव पारित किए गए। स्वदेशी जागरण मंच ने भारत सरकार के व्यापार निगम द्वारा 12 जून को गेहूं आयात के लिए आमंत्रित निविदा में गुणवत्ता मापदंडों के प्रति लचीला रुख अपनाने की कड़ी निंदा की। मंच ने कहा कि इसमें सरकार द्वारा गेहूं में लगने वाले 31 प्रतिबंधित एवं अधिसूचित खरपतवारों से सम्बंधित मानकों में ढील दी की गई है जिससे अमरीका एवं आस्ट्रेलिया से कम गुणवत्ता वाले गेहूं का भारत में निर्यात प्रारंभ हो जाएगा। मंच ने कहा कि सरकार के इस रुख से साफ है कि वह विकसित देशों के सामने झुक रही है, जो उदारीकरण के नाम पर दबाव डालकर अपने कम गुणवत्ता वाले उत्पाद निर्यात करते हैं।स्वदेशी जागरण मंच ने कहा कि भारत के किसान इतने सक्षम हैं कि वे न केवल यहां के नागरिकों हेतु अन्न उत्पादन कर सकते हैं बल्कि अन्य देशों को भी अन्न उपलब्ध कराने की क्षमता रखते हैं। लेकिन केन्द्र सरकार की गलत कृषि नीति के कारण भारत नौ महीनों के भीतर खाद्यान्न निर्यातक देश से खाद्यान्न आयातक देश बन गया है। स्वदेशी जागरण मंच ने सरकार को चेतावनी दी है कि यदि उसने खाद्यान्न आयात से जुड़े सुरक्षा नियमों में लचीला रुख अपनाने के निर्णय पर पुनर्विचार नहीं किया तो राष्ट्रव्यापी आन्दोलन छेड़ा जाएगा। बैठक में सरकार के गलत निर्णयों तथा उससे होने वाले दुष्परिणामों को जनता के समक्ष लाने के लिए एक संघर्ष समिति गठित करने का भी निर्णय लिया गया।बैठक में पारित प्रथम प्रस्ताव में स्वदेशी जागरण मंच ने भारत सरकार से विश्व व्यापार संगठन के साथ सम्बंध समाप्त कर राष्ट्रीय हित में दीर्घकालीन विकल्पों पर विचार करने, कृषि उत्पादों के आयात पर 1995 के स्तर पर पुन: मात्रात्मक नियंत्रण लागू करने, बीज अधिनियम, कृषि उपज मंडी कानून, खुदरा एवं बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश आदि के बारे में किए गए बदलावों को अविलम्ब वापस लेने, विकासशील देशों द्वारा अपनी गैरकृषि वस्तुओं के बाजार खोलने पर रोक लगाने, भारत में पश्चिमी देशों के झांसे में न आने और कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर रखने की मांग की है।दूसरे प्रस्ताव में स्वदेशी जागरण ने मांग की है कि किसानों द्वारा आत्महत्या को राष्ट्रीय समस्या घोषित किया जाए और सरकार इसके निदान हेतु किए गए उपायों की रपट जारी करे। इसके अलावा किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने हेतु कदम उठाने, किसानों को अधिकतम 4 प्रतिशत की दर से ऋण उपलब्ध कराने, विदेशी कंपनियों को कृषि से बाहर रखने व अमरीका के साथ कृषि क्षेत्र में की गई “ज्ञान पहल परियोजना” को तत्काल बंद करने और पूर्व में किसानों द्वारा मोन्सेंटो बीज खरीद पर अधिक मूल्य चुकाने की राशि को वापस करने की मांग भी भारत सरकार से की गई।तीसरे प्रस्ताव में रोजगार सृजन को आर्थिक नीतियों में प्राथमिकता के रूप में शामिल करने, कृषि एवं कृषि ढांचागत निवेश में वृद्धि करने, पेट्रोलियम उत्पादों पर कर ढांचे को न्याय संगत बनाने और भारत में विदेशी निवेशकों के लिए तीन वर्ष न्यूनतम कालावधि की शर्त लगाने व निवेश के लाभ पर अल्पकालिक पूंजीगत लाभ कर लगाने की मांग की गई है। प्रतिनिधि18
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