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बनर्जी की सेवाएं!बनर्जी समिति की रपट का उल्लेख करते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने अपने भाषण में चुटकी ली। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति बनर्जी ने अपनी रपट में 57 कारसेवकों को जिंदा जलाने वाले कांड को महज एक दुर्घटना करार दिया। इसे देखते हुए आजकल एक चुटकुला चल निकला है कि बनर्जी समिति की रपट से प्रभावित होकर ओसामा बिन लादेन शायद न्यायमूर्ति बनर्जी की सेवाएं लेने को उतावला हो। उसे भी लगता होगा कि वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हवाई जहाज टकराने की घटना को न्यायमूर्ति बनर्जी यह उल्लेख करते हुए एक दुर्घटना ठहरा देंगे कि विमान चालक शराब के नशे में थे, उन्हें वे इमारतें नहीं दिखीं और जहाज उनसे टकरा गए। उसमें आतंकवाद जैसा कुछ भी नहीं था।स्कोर्पीन पनडुब्बी घोटाला, “वार रूम लीक” घोटाला, बाल्को का विनिवेश घोटालाघोटालों की सरकार18,798 करोड़ रु. के सौदे में सैकड़ों करोड़ की दलाली-आलोक गोस्वामीसोमवार 20 मार्च को राजग ने सत्तारूढ़ गठबंधन पर तीखा प्रहार करते हुए स्कोर्पीन पनडुब्बी सौदे में बड़े स्तर पर आर्थिक धांधली और घूसखोरी के आरोप लगाए। पूर्व उपप्रधानमंत्री और प्रतिपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी के निवास पर आयोजित एक विशेष पत्रकार वार्ता में आडवाणी ने कहा कि 18,798 करोड़ रु. के स्कोर्पीन पनडुब्बी सौदे में बोफर्स से कहीं बड़ा घोटाला किया गया है। उन्होंने कहा कि बोफर्स घोटाला, जो अपेक्षाकृत बहुत कम स्तर पर था, के कारण कांग्रेस की सरकार गिर गई थी, इस स्कोर्पीन मामले में तो व्यापक स्तर पर धांधली की गई है जिसमें न केवल 500-700 करोड़ रु. की बिचौलियों, अभिषेक वर्मा व अन्य, को घूस दी गई है बल्कि सत्ता के कई बड़े-बड़े नाम इसमें शामिल हैं।उल्लेखनीय है कि फ्रेंच कंपनी थेल्स (स्कोर्पीन पनडुब्बी उपलब्ध कराने वाली) के साथ भारत सरकार ने 6 पनडुब्बियों की खरीद के लिए अक्तूबर 2005 में एक करार किया था। इस सौदे में बड़े पैमाने पर घूस दी गई। इतना ही नहीं, इसमें शामिल बिचौलिए व अन्य ने नौसेना की अति गोपनीय सूचनाएं तक प्राप्त कर ली थीं।पत्रकार वार्ता में आडवाणी के साथ दो पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस और जसवंत सिंह भी मौजूद थे। पहली बार आउटलुक साप्ताहिक के 20 फरवरी, 2006 अंक में इस सौदे में घोटाले का रहस्योद्घाटन किया गया था। पत्रकारों के सामने बड़े पर्दे पर उसी पत्रिका के अंश तथा अन्य नई जानकारियां दिखाई गर्इं। आडवाणी ने कहा कि राजग वोल्कर, क्वात्रोकी के साथ ही संसद के अगले सत्र में स्कोर्पीन पनडुब्बी घोटाले को बड़े स्तर पर उठाएगा। राजग ने सरकार से मुख्य चार मांगें रखीं-? स्कोर्पीन पनडुब्बी सौदा रद्द किया जाए ? उचित जांच एजेंसियों की सहायता प्राप्त एक जांच आयोग गठित किया जाए जो इसमें राजनीतिज्ञों और अन्य लोगों की मिलीभगत का पता लगाए ? अभिषेक वर्मा व अन्य बिचौलियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए ? नौसेना की अति गोपनीय जानकारियां “लीक” करने वाले विदेशियों के विरुद्ध कार्रवाई हो।घोटाले में कांग्रेस व संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और रक्षा मंत्री प्रणव मुखर्जी के नाम भी जुड़े होने के संकेत हैं। राजग की दस्तावेजी प्रस्तुति में थेल्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ज्यां पाल पेरियर और बिचौलिए अभिषेक वर्मा और उसके अन्य साथियों के बीच हुए ई-मेल संदेशों के आदान-प्रदान के साक्ष्य दिए गए जिनसे इस घोटाले में 4 प्रतिशत की दलाली, रक्षामंत्री, प्रधानमंत्री व एक “महिला” की संलिप्तता की ओर इशारा होता है। आउटलुक पत्रिका को उद्धृत करते हुए कहा गया कि अगर उस पत्रिका ने सौदे के बारे में गलत रपट छापी थी तो सरकार ने कोई स्पष्टीकरण क्यों नहीं दिया और उस पत्रिका के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? स्कोर्पीन के साथ ही नौसेना की अतिगोपनीय सूचनाओं के “लीक” होने का घोटाला भी उजागर किया गया जिसे “वार रूम लीक स्कैम” कहा गया है। इस घोटाले के तहत “प्रोजेक्ट 75” (स्कोर्पीन सौदा) से जुड़ी सूचनाएं, गोपनीय जानकारियां नौसेना मुख्यालय से “लीक” करवाई गर्इं। मई 2005 में इसका पता लग गया था, लेकिन इस पर भी न तो कोई कार्रवाई हुई, न दोषियों को ही पकड़ा गया। इस घोटाले में शामिल लोगों के नाम हैं – 1. एक कांग्रेसी परिवार का सदस्य व्यवसायी अभिषेक वर्मा, जिस पर पहले प्रवर्तन निदेशालय, सी.बी.आई. और आयकर विभाग ने आर्थिक और आपराधिक धांधली के 12 मामलों पर कार्रवाई की थी। 2. वर्मा के दो व्यावसायिक सहयोगी (क) सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी और नौसेना अध्यक्ष एडमिरल अरुण प्रकाश की पत्नी का भतीजा रवि शंकरन, तथा (ख) सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी कुलभूषण पाराशर।जसवंत सिंह ने इस घोटाले की जानकारी देते हुए बताया कि सूचनाओं के आधार पर मई 2005 में वायुसेना के गुप्तचर विभाग ने एक संदिग्ध अधिकारी विंग कमांडर सुर्वे की पड़ताल में एक पेन के आकार का यंत्र “पेन ड्राइव” खोजा जो कम्प्यूटर से गुप्त “डाटा” निकालने में उपयोग किया जाता था। उस “ड्राइव” में नौसेना मुख्यालय से चुराई गर्इं “वर्गीकृत सूचनाएं” भरी थीं। “वार रूम” नौसेना मुख्यालय में वह महत्वपूर्ण स्थान होता है जहां “अतिगोपनीय जानकारियां” एकत्र की जाती हैं। 6 जून, 2005 को वायुसेना गुप्तचर ब्यूरो को इस “लीक” की जानकारी देती है जिस पर वायुसेना जांच अदालत बिठाती है। विंग कमांडर सुर्वे स्वीकारते हैं कि वह “ड्राइव” पूर्व नौसेना अधिकारी और अब शस्त्र विक्रेता कुलभूषण पाराशर की थी। गुप्तचर ब्यूरो सुर्वे और मुम्बई स्थित एडमिरल अरुण प्रकाश के रिश्तेदार रवि शंकरन नामक शस्त्र विक्रेता के बीच सम्बंधों की पुष्टि करता है। टेलीफोन और ई-मेल रिकार्डों के जरिए ब्यूरो शंकरन, पाराशर और अभिषेक वर्मा के बीच सूत्र जुड़े होने की पुष्टि करता है। 22 जुलाई 2005 को नौसेना जांच अदालत का गठन करती है। पता चलता है कि शंकरन और पाराशर एडमिरल प्रकाश की काकटेल पार्टी में मौजूद थे जो 2004 में उनके नौसेना अध्यक्ष बनने के मौके पर दी गई थी।28 अक्तूबर, 2005 को रक्षा मंत्रालय की विज्ञप्ति में कहा गया कि 3 नौसेना अधिकारियों को बिना कोर्ट मार्शल किए राष्ट्रपति के विवेकाधिकार सिद्धान्त का प्रयोग करके बर्खास्त कर दिया गया। (जबकि अब नौसेना इससे इनकार करती है।) सच्चाई यह है कि उस घोटाले को उजागर हुए 10 माह बीत चुके हैं लेकिन किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी तो दूर पूछताछ तक नहीं की गई है। गत 21 मार्च को संसद में बयान देते हुए रक्षामंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि स्कोर्पीन पनडुब्बी सौदे में किसी को कोई दलाली नहीं दी गई है। लेकिन इस सरकार की पुरानी लीपापोती की आदत, जो उसने वोल्कर मामले में की थीं जब सभी चिन्हित व्यक्तियों, (सोनिया गांधी व नटवर सिंह) को शुरू में “क्लिन चिट” दे दी गई थी, को देखते हुए रक्षामंत्री के बयानों पर सहज भरोसा नहीं किया जा सकता।15
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