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जयपुर में महिला समन्वय कार्यशाला

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Jan 10, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Jan 2006 00:00:00

परिवार, समाज, देश- महके सारा परिवेश

-सुरेन्द्र चतुर्वेदी

सामाजिक विषमता का विष समाप्त करने में संलग्न महिला संगठनों की प्रतिनिधि 17 व 18 सितम्बर को दो दिन के लिए जयपुर में एकत्र हुईं। मौका था महिला समन्वय कार्यशाला, जिसका विषय था सामाजिक समरसता में महिलाओं की भूमिका। इस कार्यशाला में भाग लेने के लिए छत्तीसगढ़ से बुधरी ताती आईं तो सुप्रसिद्ध लेखक, विचारक मृदुला सिन्हा भी आईं थीं। आतंकवादियों की धमकी से अविचलित पंजाब से लक्ष्मीकांता चावला थीं तो केरल से बिन्दू भी थीं। हर एक अपने आप में संपूर्ण। कुल मिलाकर कार्यशाला अत्यंत मुखर और विचारोत्तेजक रही।

कार्यशाला प्रभारी गीता ताई गुंडे के अनुसार देश भर में फैले राष्ट्रवादी विचारधारा के 23 संगठनों के 160 प्रतिनिधियों ने इस कार्यशाला में भाग लिया। ये महिलाएं वे हैं जो परिवार के साथ समाज को भी दिशा देने का गुरुतर भार वहन कर रही हैं। जयपुर में जुटीं ये महिला कार्यकर्ता इस बात पर एकमत थीं कि महिलाओं की भागीदारी के बिना सामाजिक विषमता की विषबेल को उखाड़ कर नहीं फेंका जा सकता। इसलिए इस समस्या से मुक्ति का रास्ता परिवार की महिलाओं से होकर जाता है। इस कार्यशाला में कन्या भ्रूण हत्या, बिगड़ती परिवार संस्था के साथ-साथ उड़ीसा और झारखण्ड की बालिकाओं को बाल श्रम के लिए महानगरों में ले जाए जाने की समस्या पर भी गहन विचार हुआ।

कार्यशाला में वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़ीं कार्यकर्ताओं ने वनवासी क्षेत्रों में पसरी गरीबी और अभावों के जो दुष्परिणाम बताए, वे भयावह थे। इन कार्यकर्ताओं ने देश भर से आईं महिला कार्यकर्ताओं को बताया कि गरीबी और पिछड़ेपन के शिकार ये वनवासी कुछ रुपयों के लालच में अपनी अबोध एवं मासूम बालिकाओं को दलालों के हाथों बेच देते हैं। यही लड़कियां महानगरों में घरेलू नौकरों के रूप में काम कर रही हैं।

इस कार्यशाला में एक तरफ जहां समाज की भीषण त्रासदी का वर्णन आया, वहीं समाज के रचनात्मक कार्यों से प्राप्त उपलब्धियों के विवरण ने प्रतिभागियों का हौसला भी खूब बढ़ाया। पूर्वोत्तर भारत की समस्याओं पर भी कार्यशाला में चर्चा चली। बोडो समस्या से जूझ रहीं नागालैंड से आई सुनीता ने बताया कि बोडो जनजातीय समाज में कई विभाजन हैं। कई समाज तो आपस में साथ-साथ रहकर भी अलग-अलग रहते हैं। राष्ट्र सेविका समिति इस समाज के बीच सम्बंध-सेतु का काम कर रही है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि पिछले दिनों शिव मंदिर की स्थापना के समारोह में समाज के सभी वर्ग एक स्थान पर आए, एक साथ प्रसाद खाया। वहां की परिस्थिति में यह एक बड़ी उपलब्धि है।

स्थानीय सरस्वती बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय में इस दो दिवसीय मातृ शक्ति सम्मेलन की शुरुआत हुई। इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए साध्वी शिवा सरस्वती ने कहा कि श्रेष्ठ व्यक्तियों के कारण राष्ट्र सबल होता है। ये व्यक्ति ही राष्ट्र का निर्माण करते हैं। उन्होंने उपस्थित मातृ शक्ति का आह्वान किया कि वे सामाजिक समरसता से युक्त अच्छे नागरिकों का निर्माण करें, जो भारत के माथे पर से जातिगत भेदभाव का कलंक दूर कर सकें।

इस अवसर पर राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका श्रीमती प्रमिला ताई मेढ़े ने कहा कि भारतीय मानस में कण-कण में ईश्वर का वास माना गया है। ऐसे भारत में छूत-अछूत और ऊंच-नीच के आधार पर व्यवहार करना ईश्वर का अपमान करना है। उन्होंने माताओं का आह्वान किया कि वे सामाजिक असमानता को जड़ से नष्ट कर दें।

इस अवसर पर पूना में स्वरूपवर्धिनी संगठन से आईं पुष्पा एवं छत्तीसगढ़ की बुधरी ताती को सामाजिक समरसता के उनके प्रयत्नों के लिए सम्मानित किया गया।

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