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मासूमों पर घात, यह कैसा जिहाद?अडनी”…हमें बचा लो” की गुहार लगाते मासूम। 12 मई को श्रीनगर के लाल चौक के पास रेसीडेंसी रोड पर स्थित एक स्कूल पर आतंकवादियों ने तब गोला दागा जब स्कूल की छुट्टी हो रही थी और बच्चे मुख्य द्वार पर ही थे। इस हमले में 10 छात्रों सहित 45 लोग घायल हुए।जम्मू-कश्मीर के घनी आबादी वाले इलाकों और स्कूलों में आतंकवादियों ने कार बमों और ग्रेनेडों से हमला करने के साथ-साथ आत्मघाती आतंकवादी तैयार करने वाले शिविरों की संख्या भी बढ़ा दी है। आत्मघातियों की बढ़ोत्तरी का कारण यह है कि इन्हें छोटी आयु से ही यह कहकर गुमराह किया जा रहा है कि वे कश्मीर के लिए बने हैं और बड़े होकर उन्हें कश्मीर के लिए ही लड़ना है। इस काम में पाकिस्तानी मदरसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन मदरसों की यह कोशिश होती है कि एक-एक कश्मीरी को इस आन्दोलन से जोड़ दिया जाए।हालांकि पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने अपने नई दिल्ली दौरे के दौरान आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं से बातचीत की और हुर्रियत को एक होकर भारत सरकार के साथ बातचीत करने की सलाह दी थी। लेकिन लगता है कि हुर्रियत को मुशर्रफ की सलाह रास नहीं आ रही। कुछ लोग अगर बातचीत के पक्ष में हैं भी तो उन पर वे लोग हावी हैं जो आतंकवाद और तोड़फोड़ पर भरोसा करते हैं। अन्तरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अल कायदा और तालिबान से भी उनकी मिलीभगत नजर आ रही है। कश्मीर घाटी के एक स्कूल में हाल ही में हुए विस्फोट से यह आभास होता है कि अमरीकी दबाव के कारण पाकिस्तान द्वारा सख्ती बरते जाने के बाद इन संगठनों के आतंकवादियों ने कश्मीर घाटी में घुसपैठ की है।उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में इन दिनों अल कायदा और तालिबान के विरुद्ध जबरदस्त छापामारी चल रही है। इनके आतंकवादियों और समर्थकों का वहां रहना मुश्किल हो रहा है। हालांकि अल कायदा और तालिबान को आगे बढ़ाने में पाकिस्तान का ही जबरदस्त हाथ रहा है, लेकिन क्योंकि अब अमरीका पाकिस्तान पर इन संगठनों के विरुद्ध कार्रवाई दबाव बना रहा है इसलिए इन संगठनों को वहां से भागने पर मजबूर होना पड़ा और ये लोग कश्मीर का रुख कर रहे हैं। पाकिस्तान भी यही चाहता है।कश्मीर घाटी में भी आतंकवादियों ने हमलों का अपना तरीका बदल दिया है। पहले वे किसी विशिष्ट व्यक्ति और सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानों और सेना के शिविरों पर हमला करते थे। लेकिन अब आतंकवादी उन स्कूलों को भी निशाना बना रहे हैं जहां मासूम बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं। विशेष रूप से उन स्कूलों को निशाना बनाया जा रहा है जिन्हें सेना की सहायता से अथवा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चलाया जा रहा है। संभवत: इन स्कूलों से उनकी दुश्मनी इसलिए है कि यहां वह शिक्षा नहीं दी जा रही है जो तालिबानी मदरसों में दी जाती है।हालांकि अमरीका पर आतंकवादी हमला तीन वर्ष पहले, 11 सितम्बर, 2001 को हुआ था लेकिन जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद 16 वर्षों से जारी है और इस आतंकवाद के शिकार होने वालों की संख्या 70 हजार से भी अधिक है। जम्मू-कश्मीर में तीन वर्षों के आतंकवाद का अगर जायजा लिया जाए तो यह पता चलता है कि 2003 में जहां 836 नागरिक मारे गए वहीं 2004 में 733 लोगों की मौत हुई। सन् 2005 के पहले चार महीनों में यानी 30 अप्रैल तक 132 व्यक्ति आतंकवाद के शिकार हो चुके हैं। सुरक्षा बलों के बलिदान की संख्या अलग है।NEWS
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