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पंजाब की चिट्ठीराकेश सैनहरियाणा और पंजाब में फिरभावनाओं से खेल रहे हैंकांग्रेसी मुख्यमंत्रीभूपेन्द्र सिंह हुड्डाकैप्टन अमरिन्दर सिंहसिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एस.जी.पी.सी.) से अलग होकर हरियाणा के सिखों द्वारा हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एच.एस.जी.पी.सी.) के गठन के प्रयासों को लेकर खासा विवाद पैदा होता जा रहा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा द्वारा अपने राज्य के सिखों की भावनाओं के अनुरूप काम करने सम्बंधी बयान को अकाली दल (बादल) और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने सिखों के पांथिक मामलों में कांग्रेस की दखलंदाजी बताया है। एस.जी.पी.सी. की अध्यक्षा श्रीमती जागीर कौर के अनुसार कांग्रेस विभाजन कराकर प्रबंधक कमेटी को कमजोर करना चाहती है। अकाली दल की राजनीतिक मामलों की समिति ने भी एक प्रस्ताव पारित कर हरियाणा की कांग्रेस सरकार को सिखों के पांथिक मामलों से दूर रहने को कहा है।उल्लेखनीय है कि हरियाणा में सिख पंथ को मानने वालों की अच्छी खासी संख्या है और यहां से एस.जी.पी.सी. के ग्यारह प्रतिनिधि चुने जाते हैं। यहां के सिखों में आक्रोश है कि एस.जी.पी.सी. उनके साथ सौतेला व्यवहार करती है। हरियाणा के सिखों ने चार साल पहले भी एस.जी.पी.सी. से अलग होने का प्रयास किया था लेकिन तत्कालीन चौटाला सरकार ने इसे सिखों का आंतरिक मसला बताकर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। पर नए कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बयान से साफ हो गया है कि राज्य की कांग्रेस सरकार इस दिशा में गंभीर प्रयास कर रही है।ऋण में डूबे किसानसकल घरेलू उत्पाद में 24 प्रतिशत का बहुमूल्य योगदान देने वाला देश का भूमिपुत्र किसान अब कर्ज की चक्की में पिस रहा है। देश के 48.6 प्रतिशत किसान कर्ज की मार झेल रहे हैं, जिन पर 12,585 रुपए प्रति किसान कर्ज है। हैरानी की बात तो यह है कि देश के समृद्ध राज्यों में शामिल पंजाब के किसानों पर सबसे अधिक औसतन 41,576 रुपए का ऋण है, जो राष्ट्रीय औसत से साढ़े तीन गुना अधिक है।”मिनिस्टरी आफ स्टेटिक्स एण्ड प्रोगाम इप्लीमेंटेशन” द्वारा “नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनातमिलनाडु में 74.5 प्रतिशत, पंजाब में 65.4 प्रतिशत, उत्तराञ्चल में 7, अरुणाचल प्रदेश में 6 प्रतिशत और सबसे कम मेघालय में 4 प्रतिशत किसानों पर कर्ज का बोझ है। देश में आधे से अधिक ऋणी किसानों की संख्या उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में ही है। उ.प्र. में 69 लाख, आंध्र प्रदेश में 49 लाख, महाराष्ट्र में 36 लाख, पश्चिम बंगाल में 35 लाख और मध्य प्रदेश में 32 लाख किसान कर्ज से त्रस्त हैं। सर्वेक्षण में पता चला कि 11 प्रतिशत किसानों को शादी-समारोहों तक के लिए ऋण लेने पड़े हैं। पूरे देश में मिजोरम ही एक ऐसा राज्य है जहां सामान्य वर्ग के किसानों पर कोई ऋण नहीं जबकि अनुसूचित जाति से सम्बंधित किसानों पर 1,937 रुपए औसतन कर्ज है। देखा जाए तो पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, केरल और महाराष्ट्र सहित जिन राज्यों में किसानों की स्थिति दयनीय पाई गई है उन सभी राज्यों में अधिकांश समय कांग्रेस ही सत्ता में बनी रही, जो स्वयं के किसान हितैषी पार्टी होने का दंभ भरती है।हरियाणा सरकार एच.एस.जी.पी.सी. के सम्बंध में आगामी जून में होने वाले विधानसभा सत्र में प्रस्ताव लाने की तैयारी में है, जिसके बाद इसे केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा क्योंकि गुरुद्वारा अधिनियम के तहत इस तरह का निर्णय केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। हरियाणा के सिखों द्वारा बनाई गई तदर्थ समिति के महासचिव श्री दीदार सिंह नलवी का कहना है कि एस.जी.पी.सी. के इन चुनावों में विभाजन के मुद्दे पर उन्होंने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए। इनमें से सात उम्मीदवारों की धमाकेदार जीत यह सिद्ध करती है कि हरियाणा के सिख अब एस.जी.पी.सी. की नीतियों में विश्वास नहीं रखते। समिति के अन्य पदाधिकारी श्री जोगा सिंह, श्री शमशेर सिंह बिर्क, श्री एस.एस. बाजवा, श्री सतबीर सिंह संधू, श्री इंदर सिंह तथा श्री अन्तध्र्यान सिंह ने अपने संयुक्त वक्तव्य में कहा है कि हरियाणा के गुरुद्वारों से एस.जी.पी.सी. को 18 करोड़ की वार्षिक आय होती है परन्तु इस धन का अधिकतर हिस्सा पंजाब में ही खर्च कर दिया जाता है। कमेटी ने आज तक हरियाणा में उच्च शिक्षा के लिए कोई शिक्षण संस्थान तक नहीं खोला है। इतना ही नहीं गुरुद्वारों के सेवादार भी पंजाब से ही भर्ती कर हरियाणा भेजे जाते हैं, जिनमें स्थानीय सिखों का प्रतिनिधित्व नाममात्र का होता है।इस मामले में एस.जी.पी.सी. की अध्यक्ष बीबी जागीर कौर का कहना है कि कुछ सिख नेता कांग्रेस के बहकावे में आकर अनर्गल आरोप लगा रहे हैं। सच्चाई यह है कि हरियाणा में गुरुद्वारों और शिक्षण संस्थाओं के विकास पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सिखों ने बड़ी कुर्बानियां देकर 1925 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का गठन कर धार्मिक स्थलों का प्रबंधन अपने हाथों में लिया था। इसके अतिरिक्त मास्टर तारा सिंह और पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच हुए समझौते के चलते भी हरियाणा या अन्य किसी राज्य के लिए अलग से गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का गठन नहीं किया जा सकता। परन्तु हरियाणा की कांग्रेसी सरकार जानबूझकर सिखों की भावनाएं आहत कर माहौल खराब कर रही है ।उधर पाकिस्तान के गुरुद्वारों की देखरेख का काम भारत की एस.जी.पी.सी. को न देकर वहां की सिख संगत को सौंपने की वकालत कर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिखों के अन्दरुनी मामलों में हस्तक्षेप कर ही रहे थे, एच.एस.जी.पी.सी. के अलग से निर्माण की वकालत कर हरियाणा के मुख्यमंत्री ने इस मामले को और तूल दे दिया है। पहले भी कांग्रेस ने सिंखों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप कर पंजाब का माहौल खराब किया था। अब फिर कांग्रेस उसी रास्ते पर जा रही है जो भविष्य के खतरनाक संकेत है।कैप्टन ने दीनील गाय मारने की मंजूरीपंजाब सरकार द्वारा “नील गायों के सीमित शिकार” की मंजूरी देने से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की सीमा पर स्थित एशिया के सबसे बड़े इस खुले और प्राकृतिक अभयारण्य के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। पर्यावरणविदों ने इस निर्णय के विरुद्ध एकजुट होना शुरु कर दिया है। पंजाब वन्य जीव विकास सलाहकार बोर्ड के सदस्य श्री हनुमान दास विश्नोई ने बोर्ड के अध्यक्ष व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को यह निर्णय बदलने की सलाह दी है। नील गायों के शिकार की मंजूरी के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इनके कारण फसलों की भारी तबाही हो रही है। अखिल भारतीय जीव रक्षा विश्नोई सभा ने इस फैसले के खिलाफ तीनों राज्यों के पर्यावरण प्रेमियों को लामबंद करने आंदोलन करने की बात कही है।पंजाब के अबोहर-फाजिल्का, मलोट, डबवाली, हरियाणा के सिरसा, फतियाबाद तथा राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर जिलों के बीच फैले इस अभयारण्य में नील गाय कृष्ण मृग, कई प्रजातियों के खरगोश, चिंकारा, नेवले, मोर, तीतर-बटेर सहित अनेक तरह के पशु-पक्षी विचरण करते हैं। कभी-कभी यहां गीदड़, लोमड़ी जैसे जीव भी दिखाई दे जाते हैं। सरकारी अभिलेखों में इस अभयारण्य में नील गायों की संख्या 10,312 बतायी जाती है।इनके शिकार की मंजूरी के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इनसे पंजाब में फसलों को भारी नुकसान हो रहा है। यह भी कहा गया है कि शाकाहार मूल के ये जानवर फसलों के झाड़ को कम करते हैं और इनके झुण्ड फसलों को कुचलते हैं। इससे किसान परेशान रहते हैं। इनके अतिरिक्त अभयारण्य खुला रहने से ये जानवर पूरी गति से दौड़ते हुए सड़कों पर आ जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दुर्घटनाएं होती हैं। परन्तु अखिल भारतीय जीव रक्षा विश्नोई सभा इन तर्कों को गलत बताती है। उसका कहना है कि नील गाय या हिरन फसल के पौधों की कोपलें खाते हैं तो उनके तनों से कई शाखाएं निकलती हैं। और फसल का झाड़ सामान्य पौधे से अधिक होता है। सभा ने सरकार को चुनौती दी है कि वह अध्ययन करा सकती है कि नील गाय के निवास स्थलों पर प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक है या सामान्य खेतों में। विश्नोई समाज का इस क्षेत्र में पर्यावरण रक्षा का इतिहास रहा ही है। गाय, वह भी विलुप्त होती जा रही नील गाय को मारने की अनुमति देने के निर्णय से पूरा हिन्दू समाज भी आहत है। स्थानीय लोगों को भी आशंका है कि यदि एक बार शिकार करने का अनुमति पत्र जारी कर दिया गया तो उस पर नियंत्रण कौन करेगा? फिर इस बात को कौन सुनिश्चित करेगा कि शिकार सीमित ही होगा और निर्धारित संख्या से अधिक नील गायें नहीं मारी जाएंगी? इस बात की जिम्मेदारी कौन लेगा कि अन्य वन्य जीवों का शिकार नहीं होगा? दक्षिण पंजाब के कुछ भागों से जल भराव की निवासी के लिए पांच साल पहले बनाए गए सेम नाले से यह अभयारण्य पहले ही दो भागों में बंटकर सिकुड़ चुका है और अगर सीमित शिकार की भी मंजूरी दी जाती है तो इसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। आज पूरे विश्व में जंगली जीवों व पर्यावरण को बचाने की बात कही जा रही है वहीं पंजाब सरकार प्रकृति के अमूल्य खजाने को कुछ लोगों के मुंह का स्वाद बदलने के लिए लुटाना चाहती है।NEWS
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