एडगर केसी : "अनेक महल"-8
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एडगर केसी : "अनेक महल"-8

by
Dec 6, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Dec 2005 00:00:00

एडगर केसी : “अनेक महल”-8जीवन के अन्यान्य पहलुओं के बारे मेंहो.वे. शेषाद्रिएडगर केसी अमरीका के प्रतिष्ठित विचारकों में से एक माने जाते हैं। सुप्तावस्था और जाग्रतावस्था के संदर्भ में उनके प्रयोग और विश्लेषण बहुत चर्चित रहे हैं। उन्हीं के विचारों को संकलित करके लेखिका जीना सेर्मीनारा ने “मैनी मेन्शंस” (अनेक महल) नामक वृहत् पुस्तक की रचना की है।रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख श्री हो.वे.शेषाद्रि ने इसी पुस्तक के महत्वपूर्ण अंशों के आधार पर एक लेखमाला तैयार की है- एडगर केसी: अनेक महल। यहां प्रस्तुत है उस लेखमाला की आठवीं कड़ी। सं.-हो.वे. शेषाद्रि अ.भा. प्रचारक प्रमुख, रा.स्व.संघपुस्तक के अगले दो अध्याय (19-20)-व्यक्ति के उद्योग-कौशल, उसकी अभिरुचि, क्षमता, चयन-ऐसे विषयों से संबंधित हैं। एक विशिष्ट उद्योग के लिए आवश्यक योग्यता का बीज पिछले जन्म में भी देखा जा सकता है- यह स्पष्ट करने वाले कई संकेत केसी के वचनों में हैं। पिछली जन्मकथा के आधार पर व्यक्ति की अभिरुचि और द्वंद्व के अनुसार इस जन्म में कौन-सा उद्योग अच्छा हो सकता है, इसके बारे में केसी सूचित करता था। उसके प्रकाश में विद्यार्थियों को वैद्यकीय शास्त्र, संगीत, सौंदर्य-प्रसाधन, क्रीड़ा, व्यायाम, विज्ञान, आहार-शास्त्र, कला, पोशाक, अध्यापन, धर्मोपदेश, वक्तृत्व, ध्यान-ऐसे विभिन्न विषयों में आवश्यक प्रशिक्षण की निश्चित सूचना केसी के कथनों में रहती थी। विवाह के बाद 31 वर्ष की आयु के एक व्यक्ति को वैद्यकीय शास्त्र की पढ़ाई करने की सूचना मिली। उस समय वह एक सामान्य नौकर था।पिछले कर्म की वासना के अतिरिक्त उसकी आकांक्षा भी उद्योग की दिशा निश्चित करती है। विशिष्ट गुण और सामथ्र्य वाले अन्य व्यक्ति के सम्पर्क में आने पर एक नए उद्योग की आकांक्षा जग सकती है। व्यक्ति का भविष्य निर्धारित करने में आकांक्षा एक प्रमुख भूमिका निभाती है। धीरे-धीरे वह आकांक्षा तीव्र होकर उसके अनुरूप माता-पिता और परिसर का चयन कर अपने प्रकृति के अनुरूप एक नए आयाम का विकास करने लगती है। लेकिन उद्योग आत्मविकास का एक साधन मात्र है। व्यक्तियों के सुप्त अनुभवों के अन्दर छिपे हुए किन्तु उन्हें पता न रहने वाले विशिष्ट गुण, अभिरुचियों को केसी के कथन दर्शाते थे। उस दिशा में प्रयत्न करके प्रतिभाशाली एवं सामथ्र्य सम्पन्न बने हुए कई व्यक्तियों के उदाहरण भी केसी की पुस्तक में दर्ज हैं। उद्योग कोई भी हो, वह जीवन के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाता है; सभी के लिए अंतिम लक्ष्य एक ही है- सृष्टि की मूल चेतना की सेवा और सहजीवियों की सेवा और उसके लिए अपने शरीर मन, आत्मा को सक्रिय साधन के रूप में परिवर्तित करना। शेष बाहरी बातें जैसे आशा, आकांक्षा, धन-दौलत, कीर्ति, यश आदि दूसरे स्थान पर होते हैं।वृद्धावस्था की वैशाखीअगले अध्याय (21वां) का विषय है: मानवीय सामथ्र्य के विषय की जानकारी का महत्व। कभी भी प्रयत्न व्यर्थ नहीं होते, यह इसका मुख्य संदेश है। यह विश्वास होने पर निराशा के लिए कोई स्थान नहीं रहता। “हर पल मैं अपने भविष्य को खुद ही रूप दे रहा हूं,” इस विचार से वृद्धावस्था में एक आशादायक संदेश मिलता है। वृद्धावस्था में निष्क्रियता, मानसिक निवृत्ति, मैं निरुपयोगी बन गया हूं- ऐसी हताशा घेर लेती है। वृद्धों को समय का उपयोग कर नए-नए प्रयोग, आदतों का अभ्यास करना चाहिए। इससे अगले जन्म के लिए कुछ नई पूंजी जुटाने जैसा हो जाएगा-यह केसी का कहना है।एक अवकाशप्राप्त पुलिसकर्मी को रसायनशास्त्र पढ़ने की सूचना केसी ने दी। उसे गुप्तचर विभाग के अन्तर्गत फोरेंसिक प्रयोगशाला में काम करके समाज-सेवा में सहायता करने को कहा। वृद्धावस्था में अकेलेपन के डर और चिंता से कैसे मुक्त हो सकते हैं- यह पूछने वाले को केसी ने “असहाय लोगों की मदद करने, खुद की चिंता छोड़ देने को कहा।” दूसरों पर उपकार करते रहने से स्वयं की चिंता या भय दूर हो जाएगा, यह भी आश्वासन केसी ने दिया।उद्धरेदात्मनात्माऽनंमानवीय व्यक्तित्व के अन्दर छिपे हुए संबंधों के विश्लेषण- 22वें अध्याय का विषय है। मानव जीवन में आने वाले कई प्रकार के बाह्र और आंतरिक संघर्ष, उतार-चढ़ाव का एक ही उद्देश्य होता है-व्यक्ति के गुणों में सुधार। केसी ने कहा, “निरपराधी होने पर भी मुझ पर यह संकट क्यों आया है” ऐसा पूछने का कोई मतलब नहीं है। एक फ्रांसीसी व्यक्ति को अपने माता-पिता की हत्या करने पर मृत्यु दण्ड सुनाया गया। तब वह “मैं अब अनाथ हो गया हूं, मुझ पर दया करो”, ऐसी विनती कर रहा था। व्यक्ति को स्वयं किए हुए दुष्कर्मों की जानकारी न होने मात्र से वह दुष्कर्म नहीं किया होगा-ऐसा नहीं है।”कर्म के विभिन्न मुख” नामक 23वें अध्याय में अनुवांशिक प्रवृत्ति से संबंधित चिंतन, प्रमुख विषय है। “मैंने किसकी ओर से ज्यादा अनुवांशिक गुण प्राप्त किया है?” यह किसी एक व्यक्ति का प्रश्न था। उत्तर के रूप में “तुमने खुद अधिकतर अंश जो प्राप्त किया है, तुम्हारे घर से नहीं। घर माने बहने वाली आत्मा की नदी है- ऐसा केसी ने चित्रवत् वर्णन किया है।नीति से सम्बंधित प्रश्न का समाधानकेसी का कथन कर्म के बारे में एक मार्मिक प्रश्न का समाधान सूचित करता है। किसी देश और काल के नियमों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति व्यवहार करे तो उसमें उसका क्या अपराध है? यह था वह नैतिक प्रश्न। कर्म के सिद्धांत के अनुसार बाह्र कृति का नहीं किन्तु उसे करते समय उसके मन के दृष्टिकोण की ही प्रमुख भूमिका होती है- नैतिक दृष्टि से कोई अपराध सामूहिक रूप का हो तो भी वहां के सभी लोग उसके कर्मफल में भागीदार होते हैं। यदि उस अपराध को जानबूझकर कोई करता है तो उसका कर्मफल भी कठोर होता है। अधिक उत्साह से उस कृत्य को करने पर कर्म का फल और भी क्रूर होता है।गीता का प्रकाशसेर्मीनारा कहती है कि यह तत्व भगवद्गीता में उत्कृष्ट ढंग से प्रतिपादित हुआ है- “कर्म सिद्धान्त के केन्द्र बिन्दु को आधार मानकर एक नई संहिता तैयार करने के लिए जो इच्छुक लोग होंगे उनके लिए अध्ययन करने लायक अनेक सूक्ष्म तत्वों को समेटे हुए यह ग्रंथ है। उसका मुख्य उद्देश्य यही है: अगले नए कर्मफल का जन्म न हो अत: अनासक्त भाव से कर्म करना चाहिए। प्रेम भी निरपेक्ष हो, अनासक्त हो- नहीं तो वह भी नए बंधनों को निर्माण करता है।”….क्रमश:NEWS

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