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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले

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Dec 6, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Dec 2005 00:00:00

पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहलेवर्ष 9, अंक 47 सं. 2013 वि., 18 जून, 1956 मूल्य 3आनेसम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्रप्रकाशक – श्री राधेलाल कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, गौतमबुद्ध मार्ग, लखनऊकश्मीर की वेदी पर 23 जून को बलिदान होने वालेहुतात्मा डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी(लल्लन प्रसाद व्यास)देश, जाति तथा धर्म की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को बलि चढ़ा देने वाले वीर पुत्रों के साहसी कार्यों से हमारी भारत माता का मस्तक सदैव से उन्नत रहा है। वीर पुत्रों की इसी महती परम्परा में भारत केसरी डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिन्होंने देश को अविशिष्ट एकता की रक्षा हेतु अपने जीवन का बलिदान देकर सदा के लिए देश प्रेमी जनता के समक्ष एक अनुपम आदर्श उपस्थित कर दिया।डा. मुखर्जी ने शेख अब्दुल्ला को इस आशय का एक तार भी भेजा, “मैं बिना परमिट के जन्मू आ रहा हूं। मेरा वहां आने का प्रयोजन वहां की परिस्थितियों को जान कर आंदोलन को शांत करने के उपायों को ढूंढ़ना है। यदि सम्भव हुआ तो मैं आपसे भी मिलना चाहूंगा।” किन्तु शेख अब्दुल्ला ने इसके उत्तर में लिखा, “आपके जम्मू आने से मैं कुछ उपयोगी कार्य-सिद्धि की आशा नहीं करता।” इस पर डा. मुखर्जी ने पंजाब में कहा, “मैं जम्मू जाकर वहां की परिस्थितियों का अध्ययन करना चाहता हूं। इस कारण से इसकी उपयोगिता मैं समझता हूं। यदि शेख साहब इसमें कोई लाभ नहीं समझते तो वे मुझसे न मिलें और अपना समय किसी अन्य उपयोगी कार्य में व्यतीत करें।” डा. मुखर्जी ने अपने निश्चय के अनुसार 11 मई सन् 53 को अपने साथियों सहित जम्मू को प्रस्थान किया। सभी का यह अनुमान था कि डा. मुखर्जी को भारत की सीमा के भीतर ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा क्योंकि परमिट व्यवस्था भारत सरकार ने ही चालू की थी। ऐसी दशा में बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवेश करना भारत सरकार की आज्ञा का उल्लंघन करना था। परन्तु वहां षड्यंत्र तो दूसरा ही था। इसलिए उन्हें भारत की सीमा के अन्दर न गिरफ्तार कर जम्मू में प्रविष्ट होने पर सर्वोच्च न्यायालय की पहुंच से बाहर गिरफ्तार किया गया। वहां से डा. मुखर्जी को श्रीनगर ले जाया गया और वहां एक बहुत छोटे बंगले में उन्हें नजरबंद किया गया। वहां अब्दुल्ला सरकार ने डा. मुखर्जी जैसे देश के महानतम नेता के साथ साधारण कैदियों की भांति जो लापरवाही, गैर-जिम्मेदारी तथा क्षुद्रतापूर्ण व्यवहार किया, उसकी तो एक अलग लम्बी और दर्दनाक कहानी है। इसके बाद नजरबंदी की ही अवस्था में अकस्मात् 23 जून, 1953 को जिन विचित्र तथा रहस्यमय परिस्थितियों में डा. मुखर्जी को मृत घोषित किया गया, वह आज भी हमारे लिए एक रहस्य का विषय बना हुआ।। । । ।हैदराबाद के निजाम द्वारा अरब सैनिकों का संगठनमुसलमानों की राष्ट्रविघातक कार्यवाहियां पुन: सक्रिय(निज प्रतिनिधि द्वारा)नई दिल्ली: मुसलमानों की राष्ट्रघातक मनोवृत्ति कुछ दिनों से दबी हुई प्रतीत होती थी किन्तु अब वह पुन: जोर-शोर के साथ उमड़ने लगी है। वे पुन: भारत में इस्लामी राज्य की स्थापना का स्वप्न देखने लगे हैं। मुस्लिम जमात के अध्यक्ष पद से फरुखाबाद में कलकत्ता के भूतपूर्व मेयर श्री बदरुद्दज्जा द्वारा दिया गया विषाक्त भाषण “पाञ्चजन्य” में प्रकाशित हो चुका है। अब हैदराबाद के निजाम साहब के घातक मनसूबों की कहानी भी प्रकाश में आई है। हैदराबाद के एडवोकेट श्री बी.जी. केसकर ने वहीं के एक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में निजाम साहब के मनसूबों का रहस्योद्घाटन करते हुए शिकायत की है कि वे (निजाम साहब) स्वयं की सशस्त्र सेना तैयार कर रहे हैं। श्री केसकर ने न्यायालय के समक्ष एक दस्तावेज भी प्रस्तुत किया है जिसमें भारतीय दण्ड विधि संहिता की धारा 19 के अन्तर्गत उन अपराधों की जानकारी दी गयी है, जो शस्त्रास्त्र कानून के अन्तर्गत आते हैं। दस्तावेज में बताया गया है कि नगर भर में निजाम की जो सम्पत्ति है उसकी देख-रेख के लिए नियमित 1000 पुलिस सिपाही हैं जो तरह-तरह की गैरकानूनी अस्त्रों से सज्जित हैं। ये सिपाही सर्फ-ए-खास के भीतर अपराधियों पर मुकदमे चलाते हैं और उन्हें दण्ड भी देते हैं। श्री केसकर ने यह भी बताया है कि निजाम की इस सेना में अनेक अरब सैनिक भी भर्ती किए गए हैं। ये अरब सैनिक पहले निजाम साहब की “मैसराम पल्टन” में थे। बन्दूक आदि शस्त्रास्त्रों का प्रशिक्षण देने के लिए सरकारी पुलिस का प्रयोग किया जाता है। निजाम साहब ने विशालकाय सेना तैयार करने के लिए हिटलरी तरीकों को अपनाया है।NEWS

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